• Wednesday, 15 May 2024

राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर ने लाला बाबू को क्यों कहा था दधीचि: जयंती पर विशेष

राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर ने लाला बाबू को क्यों कहा था दधीचि: जयंती पर विशेष

राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर ने लाला बाबू को क्यों कहा था दधीचि: जयंती पर विशेष

 

शेखपुरा

 

राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर बरबीघा उच्च विद्यालय के संस्थापक प्रधानाध्यापक बने। उस समय इसके संरक्षक प्रखर स्वतंत्रता सेनानी एवं बरबीघा के तेउस गांव निवासी श्री कृष्ण प्यारे मोहन सिंह उर्फ लाला बाबू से थे। उस दौरान दिनकर जी को लाला बाबू का सानिध्य मिला। लाला बाबू के द्वारा जात पात से ऊपर उठकर सभी जाति के गरीब विद्यार्थियों की सेवा से प्रेरित होकर दिनकर जी ने एक पत्र लाला बाबू को लिखा जिसमें उन्होंने लाला बाबू को दधीचि बताया।

 

 दरअसल, लाला बाबू को दधीचि बताने का एकमात्र कारण यह था कि लाला बाबू अपने लिए कुछ नहीं रखते थे। राज्यसभा सांसद, बरबीघा से पहला विधायक और 12 साल तक लगातार विधान परिषद का सदस्य रहते हुए भी उनकी जेब खाली रही।

 

 इसका एकमात्र कारण यह था कि वह दर्जनों छात्रों को जो गरीब होते थे उनको प्रत्येक महीना अपने जेब खर्च से छात्रवृत्ति देते थे । खाने के लिए मेस में उसका खर्च देते थे और रहने के लिए भी व्यवस्था करते थे। कई शैक्षणिक संस्थानों की स्थापना में भी उन्होंने अपना सर्वस्व लगा दिया। राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर ने इसीलिए लाला बाबू को दधीचि कहा।

 

 

आजादी की लड़ाई में गांधीजी के आह्वान पर कूदने के बाद लगातार जेल में अंग्रेजों ने इनको बंद रखा । उसके बाद भी वे संघर्ष करते रहे और कई आंदोलनों में हिस्सा लिया। जमींदार घराने में पैदा होकर भी गरीबों के दुख दर्द को महसूस कर उसके निराकरण में लग जाने वाले लाला बाबू को आज भी लोग इसी लिए याद करते हैं।

 

लाला बाबू के प्रसंग को याद करते हुए समाजवादी नेता शिवकुमार बताते हैं कि उन्हें जेपी आंदोलन में कॉलेज में छात्रों का बहिष्कार उनके द्वारा कराया गया था। लाला बाबू उनके पड़ोसी थे। उनको बुलाकर वह काफी भड़के थे। उसके बाद अगले दिन जब मैं जेल चला गया और जेल से छूटकर आया तो लाला बाबू ने उन्हें बुलाया और अपने गुस्से के लिए माफी मांगी। यह दर्शाता है कि वे लोकतंत्र में पूरी आस्था रखते थे।  

 

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लाला बाबू के प्रसंगों के बारे में बताते हुए उनके पौत्र सुखेंदु मोहन कहते हैं कि वह निर्धन छात्रों की पढ़ाई को सबसे अधिक प्राथमिकता देते थे और प्रत्येक महीना कई विद्यार्थियों को वे नियमित रूप से अपने जेब से पढ़ाई का खर्च देते थे। राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर ने लाला बाबू को इसलिए दधीचि बताया है।

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लाला बाबू का जीवन वृत्त

 

जन्म स्थान -तेउस, बरबीघा

पिता - द्वंद बहादुर सिंह

जन्म- 4 जनवरी 1901

मृत्यु- 9 फरवरी 1978

 

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बरबीघा के पहले विधायक बने लाला बाबू

 

लाला बाबू ने 1911 में बीएन कॉलेजिएट हाई स्कूल से मैट्रिक पास की फिर महात्मा गांधी के आह्वान पर स्वतंत्रता आंदोलन में कूद गए । 1928 में बीएन कॉलेज से पुन: वकालत की पढ़ाई प्रारंभ की। 1933 में जिला परिषद के सदस्य बने। 1948 में जिला परिषद के उपाध्यक्ष बने। 1952 से 57 तक बरबीघा के विधायक रहे। 1957 से 58 तक लगभग 1 वर्ष राज्यसभा के सदस्य रहे। 1958 से 12 वर्षों तक लगातार बिहार विधान परिषद के सदस्य रहे।

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लाला बाबू की जेल यात्रा

1930 में 5 माह

1932 में 6 माह 

1941 में 4 माह 

1942 में 6 माह 

1943 में 5 माह

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शैक्षणिक संस्थानों की स्थापना और मार्गदर्शन

 

आरडी एंड डीजे कॉलेज, मुंगेर 

आरडी कॉलेज, शेखपुरा

केकेएम कॉलेज, जमुई 

केएसएस कॉलेज, लखीसराय 

गोड्डा कॉलेज, गोड्डा

देवघर कॉलेज, देवघर

 एसपी कॉलेज दुमका 

नालंदा कॉलेज, बिहारशरीफ 

टीपीएस कॉलेज, पटना 

एसकेआर कॉलेज, बरबीघा, संस्थापक सचिव 

उच्च विद्यालय, बरबीघा

उच्च विद्यालय कटारी, शेखपुरा

उच्च विद्यालय मालदह, बरबीघा

उच्च विद्यालय बभनबीघा, बरबीघा

श्री कृष्ण सेवा सदन, मुंगेर 

बालिका विद्यापीठ, लखीसराय

राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर ने लाला बाबू को क्यों कहा था दधीचि: जयंती पर विशेष
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