
क्या आप जानते है उत्तर भारत का तिरुपति कहाँ है? कहाँ है भगवान विष्णु की दुनिया की सबसे ऊंची प्रतिमा?

शेखपुरा/बरबीघा
शेखपुरा जिला के बरबीघा के सामस गांव में उत्तर भारत के तिरुपति कहे जाने वाले विष्णु धाम स्थापित है। इस विष्णु धाम में दुनिया की सबसे ऊंची प्रतिमा स्थानिक मुद्रा में स्थापित है। इसकी ऊंचाई 7.5 फिट है।
पाल कालीन, काले ग्रेनाइट से बने भगवान विष्णु की इस प्रतिमा को देखने के लिए दूर-दूर से पर्यटक आते हैं यहां भव्य मंदिर का निर्माण कार्य भी चल रहा है।
महोत्सव का किया जा रहा है आयोजन
देवोत्थान मेला के अवसर पर प्रत्येक साल यहां पांच दिवसीय देवोत्थान मेला सह विष्णु धाम महोत्सव का आयोजन किया जाता है। इसकी जानकारी देते हुए विष्णु धाम मंदिर के अध्यक्ष एवं डॉ कृष्ण मुरारी एवं सचिव अरविंद मानव ने बताया कि विष्णु धाम महोत्सव की तैयारी पूरी कर ली गई है। 19 तारीख को इसका शुभारंभ संध्या 4:00 बजे से किया जाना है। दोपहर से संगीतमय सांस्कृतिक जागरण का आयोजन है जो संध्या तक चलेगी। उसके बाद भव्य रासलीला का आयोजन होगा एवं आए हुए संत मुनियों के द्वारा प्रवचन भी किए जाएंगे। 23 को इसका समापन होना है।
लगता है भव्यमेला
प्रत्येक साल देवोत्थान मेला के अवसर पर यहां भव्य मेला का आयोजन किया जाता है। यहां दूर-दूर से श्रद्धालु मेला में शामिल होते हैं वही पूजा करने के लिए भी बड़ी संख्या में लोग आते हैं।
किया जा रहा है मंदिर का निर्माण।
विष्णु धाम सामस में भव्य मंदिर का निर्माण कार्य लोगों के सहयोग से किया जा रहा है। मंदिर समिति के अध्यक्ष डॉक्टर कृष्ण मुरारी कहते हैं कि आम लोगों के सहयोग से यहां भव्य मंदिर बनाया जा रहा है जो तिरुपति बालाजी के जैसा ही एक भव्य मंदिर बनेगा और इस स्थान को उत्तर भारत के तिरुपति के रूप में प्रतिष्ठित किया जाएगा।
क्या है खूबी, जान लीजिए ऐतिहासिकता को
विष्णुधाम मंदिर में भगवान विष्णु की 7.5 फीट ऊंची व 3.5 फीट चौड़ी भव्य मूर्ति स्थापित है। भगवान विष्णु के चार हाथों में शंख, चक्र, गदा तथा पद्मम स्थित भी है।

सितादेव मूर्तिकार ने बनाया
मूर्ति की वेदी पर पाल कालीन देवनागरी में अभिलेख ‘ऊं उत्कीर्ण सूत्रधारसितदेव:’ उत्कीर्ण है। पाल कालीन लिपि में आकार, इकार और ईकार की मात्रा विकसित हो गई है। ब्राह्मी लिपि में छोटी खड़ी लकीर के स्थान पर यह पूरी लकीर बन गई है।
विष्णुमूर्ति के दांए व बांए दो और छोटी मूर्तियां हैं। यह स्पष्ट रूप से पता नहीं चल पाया है कि ये मूर्तियां शिव-पार्वती की हैं या शेषनाग और उनकी पत्नी हैं।
शील बाबा के रूप में पूजा
यह दुर्लभ मूर्ति 5 जुलाई 1992 में तालाब से युवाओं ने खुदाई कर निकाली। पहले मूर्ति का अग्र भाग दिखाई देता था जिसकी पूजा गांव के लोग शील बाबा के रूप में करते थे। सामस जगदंबा स्थान में भी कई मूर्तियां रखी हुई है जो पालकालीन बताई जाती है।
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