
संस्थाओं को इसी तरह मार दिया जाता है...!

संस्थाओं को इसी तरह मार दिया जाता है...!
बिहार के प्रथम मुख्यमंत्री डॉ. श्रीकृष्ण सिंह और उनकी पत्नी के नाम पर बरबीघा के शिक्षाविद एवं स्वतंत्रता सेनानी लाला बाबू ने बिहार केसरी की मर्जी के विरुद्ध कॉलेज की स्थापना की। इसमें जनसहयोग भी रहा। लेकिन पिछले एक-डेढ़ दशक में जानबूझ कर इस कॉलेज को खत्म कर देने की स्थिति बना दी गई । या कहें, इसे धीरे-धीरे मरने के लिए छोड़ दिया गया।
स्थिति इतनी भयावह हो गई कि कॉलेज का भवन खंडहर बन गया। पढ़ाई के नाम पर सब कुछ शून्य हो गया। कुव्यवस्था ऐसी हो गई कि कोई किसी की सुनने वाला नहीं रहा।

मुझे तो कुछ माह पहले जानकर आश्चर्य हुआ कि एक प्राचार्य वर्षों तक प्राचार्य कक्ष में नहीं बैठे। वही कक्ष, जो कभी कॉलेज की आन-बान-शान हुआ करता था। जब हम लोग पढ़ते थे, तब उस कक्ष में जाने का साहस किसी का नहीं होता था।
प्राचार्य कक्ष में बिहार केसरी की एक अनुपम तस्वीर लगी रहती थी। वहीं लाला बाबू की भी एक भव्य तस्वीर होती थी। धीरे-धीरे इन प्रतिमाओं को भी किनारे कर दिया गया।


खंडहर हो चुके कॉलेज को लेकर कई बार चिंता जताई गई, लेकिन कुछ भी नहीं बदला। अब नवप्राचार्य के रूप में नवादा जिला के कटौना निवासी डॉ. संजय कुमार ने पदभार संभाला है। आज जब उनसे मिलने कॉलेज गया तो रास्ते में ही बदलाव की झलक दिख गई । कॉलेज के आसपास की झाड़ियाँ साफ की जा रही थीं, और बिहार केसरी की क्षतिग्रस्त प्रतिमा स्थल का पुनर्निर्माण हो रहा था।
डॉ. संजय कुमार से मिलकर लगा कि वे बदलाव के बड़े वाहक बनने का साहस कर रहे हैं। इसके लिए सभी का समर्थन भी मांग रहे हैं। उम्मीद करता हूँ कि वे इस धरोहर को पुनर्जीवित करेंगे।




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