• Saturday, 23 November 2024
विशेष आलेख: क्या नीतीश कुमार उपहास के पात्र है...?

विशेष आलेख: क्या नीतीश कुमार उपहास के पात्र है...?

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क्या नीतीश कुमार उपहास के पात्र है...?

अरुण साथी

पीएम नरेंद्र मोदी के रोड शो में सीएम नीतीश कुमार की उपस्थिति थी। इसमें सीएम के भाव भंगिमा को लेकर सोशल मीडिया पर उपहास उड़ाया जा रहा। सीएम निश्चित रूप से असहज थे। वे बीमार है, उसी दिन लगा। पिछले कई महीनों से वे बीमार चल रहे है। बीमार कोई, कभी भी हो सकता है। इस पर किसी का वश नहीं। अब सीएम नीतीश कुमार के बीमारी के बहाने कुछ लोग उनका उपहास उड़ा रहे। 

उपहास तो उनके विधान मंडल में स्त्री को लेकर दिए बयान पर भी हुआ। फिर चार हजार पार। फिर कुछ अलग अलग घटनाएं।

जो भी हो। सीएम नीतीश कुमार गंभीर रूप से बीमार है। बीमारी का असर मस्तिष्क पर है। 

अब इस वजह से बिहार को जंगल राज से निकाल कर गढ़ने में उनका, सिर्फ उनका योगदान खारिज तो नहीं हो जा सकता।

लालू के लाल तेजस्वी यादव इस समय बिहार की राजनीति में विपक्ष की एक मात्र धूरी है। ऐसा इसलिए नहीं कि और कोई है ही नहीं। बल्कि, ऐसा इसलिए की कन्हैया कुमार, पप्पू यादव जैसे कितने की राजनीतिक हत्या इसी धूरी को बनाने के लिए की गई।

आज फिर जातिवादी और अपराध के मोहरे बिहार के राजनीतिक शतरंज की बिसात पर चल दिए गए है। हर बार चला जाता रहा। इसमें पिता से एक कदम आगे पुत्र तेजस्वी है। इस बार गठबंधन में तेजस्वी यादव ने केवल और केवल अपने भविष्य को लेकर प्लान के अनुसार काम किया। धन जोड़े। अधिकारी बैठाओ। जातिवादी और धर्म का कार्ड खेलाे। राम चरित्र मानस विवाद, मनुस्मृति जलाना इत्यादि याद होगा। पिता से दस कदम आगे।

नीतीश कुमार ने इसे हमेशा बुद्धिमानी से तोड़कर, बिहार गढ़ा।

बनते और चमकते बिहार में कुछ कृतघ्न लोग इसे खारिज करते है। नीतीश कुमार ने अपराध, रोड, बिजली, पानी, सड़क, स्वास्थ्य इत्यादि से अलग भी बहुत कुछ किया है। शराबंदी, एक नेक फैसला था। अब नहीं है। 

नीतीश कुमार ने जो किया उसका कुछ उदाहरण दूंगा। 

बिहार के हर जिला में मेडिकल कॉलेज, इंजीनियरिंग कॉलेज, पोलिटेकनिक कॉलेज, नर्सिंग कॉलेज, आईटीआई कॉलेज बिहार में खुले। यह अकल्पनीय लगता है। शायद देश का कोई ऐसा राज्य हो। 

बिहार का वह दौर चरवाहा विद्यालय का था। यह दौर नया है। 

अब सत्रह महीने साथ रहकर नौकरी और विकास का दावा करने वाले तेजस्वी यादव केवल झूठ फैला रहे। 

सच यह है कि के के पाठक और अतुल कुमार जैसे अधिकारी को नीतीश कुमार नहीं बैठाते तो क्या होता, सबको पता है। एक नहीं चली। कलबला के रह गए।

अब देखिए। बिहार में पुलिसिंग बदल गई। कल्पना नहीं किए थे कभी।

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112, डायल सेवा पुलिसिंग में क्रांति है। सड़क पर मरते आदमी की जान बचाने, आग बुझाने, घरेलू झगड़ा। सब में आपके पास आधा घंटा में पुलिस पहुंच रही। एक दम आधुनिक व्यवस्था।

आज बिहार के थाना भवन, थाना पुलिस की गाड़ी, सब सिनेमा जैसा लगता है। 

आज सरकारी अस्पताल में भले समय पर डॉक्टर नहीं आते। मन से इलाज नहीं करते। पर अस्पताल बदल गया, एक दम से। 

जैसे देखिए। सभी प्रखंड अस्पताल में सभी जांच, प्रसव, एक्सरे और सभी दवाई। सब कुछ है। जिला अस्पताल में डायलिसिस, अल्ट्रासाउंड की सुविधा।

बहुत नजदीक से इस बदलाव को महसूस कीजिए। आज बिहार में कोई सड़क हादसा या अपराध में घायल हो। संपन्न आदमी भी सरकारी एंबुलेंस से सबसे पहले सरकारी अस्पताल जा रहा। पहले निजी क्लीनिक जाते थे। रेफर होकर भी सरकारी एंबुलेंस से मेडिकल कॉलेज जा रहे। वहां भी आधुनिक सुविधाएं है। थोड़ी लचर ही सही।

जल जीवन हरियाली। पर्यावरण के लिए वरदान। तालाब की खुदाई का क्रांतिकारी कदम। खेत सिंचाई के लिए नहर खुदाई। हर खेत पानी।

बहुत कुछ है। कितना लिखे। जो पहले देखा। वही जानता। जो अभी देख रहे उनको भी देखना चाहिए। सड़क, बिजली ही नहीं कॉलेज, पुलिसिंग, खेत, अस्पताल भी नीतीश कुमार ने दिए है। पहले पच्चास हजार घूस देने के लिए चंदा होता था तभी जला हुआ ट्रांसफार्मर पन्द्रह दिन बाद लगता था । आज चौबीस घंटे में बदलना तय है।

हां, कई राजनीतिक निर्णय, गलत, सही हो सकते है। यह सब राजनीति का हिस्सा है। राजद को पुनर्जीवन देकर पुनः बिहार को पीछे ढकेलने का रास्ता बनाने का श्रेय नतीश कुमार को ही है। तब भी, नीतीश कुमार के कामों को खारिज नहीं किया जा सकता। उपहास तो बिल्कुल ही उड़ाया नहीं जा सकता । इतना ही..

 

(यह आलेख वरिष्ठ पत्रकार अरुण साथी के फेसबुक से साभार प्रकाशित किया गया है।)

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