
मानवता कैसे शर्मसार हुई और इतना निर्मम कैसे होता है कोई, ओह

शेखपुरा
मानवता को झकझोर देने वाली यह तस्वीर सदर अस्पताल शेखपुरा की है। इसमें एक भाई अपने मृत भाई की लाश को गोदी में उठाए सदर अस्पताल से घर के लिए जा रहा है और उसके साथ मृतक बच्चे की मां विलाप कर रही है।
दरअसल सदर अस्पताल में इलाज के दौरान नगर के जमालपुर मोहल्ला निवासी दिलीप शर्मा के 12 वर्षीय पुत्र संजू कुमार की मौत हो गई।
संजू कुमार को गंभीर अवस्था में तब लाया गया जब पहले उसका इलाज झोलाछाप डॉक्टर के द्वारा मोहल्ले में ही की गई थी। स्थिति गंभीर होने पर उसे सदर अस्पताल लाया गया जहां उसकी मौत हो गई। मौत के बाद जहां नियमानुसार लाश को लाश वाहन पर घर भेजने की व्यवस्था है वही सदर अस्पताल में ऐसा नहीं किया गया। अस्पताल में कहने को तो अस्पताल मैनेजर से लेकर चिकित्सक और कई अधिकारी है पर किसी की संवेदना नहीं जगी। इतना ही नहीं लाश को ले जाने के लिए स्ट्रेचर भी नहीं दिया गया।
मृतक की लाश को परिवार वाले गोदी में उठाकर बाहर ले गए और फिर मृतक बच्चे के पिता को बाइक लेकर बुलाया गया। रोते, विलाप करते सभी परिवार के लोग बच्चे की लाश को बाइक पर बिठाने लगे। लाश जब बाइक पर ले जाने में संभव नहीं हुआ तो सभी चित्कार करने लगे पर बगल में खड़े एम्बुलेंस चालक की संवेदना नहीं जगी।
सदर अस्पताल के कई कर्मचारी और चिकित्सक यह अमानवीय नजारा देख रहे थे। बगल में ही कई एंबुलेंस और लाश ले जाने वाले वाहन भी लगे थे पर किसी की भी संवेदना नहीं जगी।
बाद में निजी एंबुलेंस चालक आकर संपर्क करता है और मोटी रकम लेकर घर तक लाश पहुंचाने की बात करता है। इसी बीच निजी एंबुलेंस से लाश को घर पहुंचाया जाता है।

इस संबंध में पूछे जाने पर सिविल सर्जन डॉ वीर कुंवर सिंह इसे गंभीर मुद्दा नहीं मानते है। उनकी नजर में यह स्वभाविक बात है। कुरेद जाने पे वे कहते है कि सदर अस्पताल से मृतक की लाश को घर तक पहुंचाने के लिए लाश वाहन की व्यवस्था है। वहां कपड़े भी लाश को लपेटने के लिए दी जाती है। इस तरह की लापरवाही कैसे हुई है इसकी जांच कराई जाएगी। इस अमानवीयता को देख तो कहा जा सकता है
“पत्थर की दीवार, पत्थर की सड़क, पत्थर का घर है!
पत्थर का आदमी और पत्थर का ही शहर है!!”
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