• Sunday, 19 May 2024
कौन थे डॉ श्री कृष्ण सिंह जो अंग्रेज से लड़े और उनको बिहार केसरी कहा जाने लगा..

कौन थे डॉ श्री कृष्ण सिंह जो अंग्रेज से लड़े और उनको बिहार केसरी कहा जाने लगा..

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न्यूज़ डेस्क

पूरा नाम – श्री कृष्ण सिंह

जन्म : 21 अक्टूबर, 1887

मृत्यु: 31जनवरी, 1961

बिहार केसरी डा. श्री कृष्ण सिंह अंग्रेजों से लोहा लेने में अग्रणी पंक्तियों में खड़े रहने वाले जुझारू और कर्मठ महापुरुष थे।

बिहार केसरी का जीवन राजनीति में नैतिकता और ईमानदारी के लिए जाना जाता है । साथ ही गांधीजी के आह्वान पर स्वतंत्रता के संघर्ष में कूदे बिहार केसरी ने बेगूसराय के गढ़पुरा नमक आंदोलन के दौरान खौलते हुए कड़ाहे से अपनी छाती लगा कर अंग्रेज सिपाहियों को नमक बनाने से रोकने का विरोध किया और अपने साहस का परिचय दिया । वही अपने जीवन के अंतिम क्षण में बिहार केसरी ने अपने एक साधारण कार्यकर्ता और अपने एक नौकर के लिए दो लिफाफे में राशि छोड़कर पत्र रखकर उसे सहयोग की अपील करके राजनीति में शुचिता का भी परिचय दिया। बिहार के प्रथम मुख्यमंत्री को लोग उनके साहस के लिए बिहार केसरी के नाम से जानते हैं जबकि उनके जन्म भूमि और उनके करीबी लोग उन्हें श्री बाबू के नाम से आज भी पुकारते हैं।

बिहार केसरी का जीवन का प्रारंभिक जीवन

श्री बाबू का जन्म 21 अक्टूबर 1887 को बिहार के शेखपुरा जिले के बरबीघा के माउर गांव में हुआ।

उनके पिता हरिहर सिंह भुमहार परिवार के एक धार्मिक व्यक्ति थे। उनकी मां धार्मिक विचारधारा वाली महिला थी।

श्री बाबू की प्रारंभिक पढ़ाई गांव के स्कूल में और मुंगेर के जिला स्कूल में हुई। 1906 में वह पटना कॉलेज में शामिल हो गए, जो तब कलकत्ता विश्वविद्यालय का एक सहयोगी था। उन्होंने कानून का अध्ययन किया और 1915 से मुंगेर में अभ्यास करना शुरू किया।

बिहार का प्रथम सत्याग्रही

बिहार केसरी की जन्म कुंडली और जन्म स्थान (गर्भगृह)


वर्ष 1927 में वह विधान परिषद के सदस्य बने और 1929 में बिहार प्रदेश कांग्रेस कमेटी के महासचिव बने। 1930 में सिन्हा ने गढ़पुरा में नमक सत्याग्रह में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। गिरफ्तार किए जाने पर उन्हें अपने हाथों और सीने में गंभीर जख्मी की चोटों का सामना करना पड़ा, उन्हें छह महीने तक कैद कर दिया गया और फिर उन्हें फिर से गिरफ्तार कर लिया गया और सिविल अवज्ञा आंदोलन के दौरान दो साल तक कैद कर दिया गया। उन्हें गांधी-इरविन संधि के बाद रिहा कर दिया गया और फिर उन्होंने अपने राष्ट्रवादी काम के साथ शुरू किया और किसान सभा के साथ काम किया। 1941 के व्यक्तिगत सत्याग्रह के लिए गांधीजी ने उन्हें बिहार का प्रथम सत्याग्रही नियुक्त किया था।

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बिहार के विश्वकर्मा

श्रीकृष्ण सिंह बिहार के पहले मुख्यमंत्री थे और 1937 में पहली बार कांग्रेस के मंत्रालय से 1961 में उनकी मृत्यु तक सत्ता में थे। श्रीबाबू के कार्यकाल में बिहार में जहां जमींदारी प्रथा समाप्त हुई, वहीं उनके कार्यकाल में बिहार में एशिया का सबसे बड़ा इंजीनइरिंग उद्योग, हैवी इंजीनीयरिंग कॉरपोरेशन, भारत का सबसे बड़ा बोकारो इस्पात प्लांट, देश का पहला खाद कारखाना सिंदरी में, बरौनी रिफाइनरी, बरौनी थर्मल पॉवर प्लांट, पतरातू थर्मल पॉवर प्लांट, मैथन हाइडेल पावर स्टेशन एवं कई अन्य नदी घाटी परियोजनाएं स्थापित किया गया। वह एक नेता थे जिनकी दृष्टि कृषि और उद्योग दोनों के संदर्भ में बिहार को पूरी तरह से विकसित राज्य के रूप में देखना था। वास्तव में, बिहार देश के पहले पांच साल की योजना में उनके तहत अच्छा प्रदर्शन करने वाला शीर्ष राज्य बन गया।

सांस्कृतिक एवं सामाजिक विकास में योगदान

सिंह ने राज्य के सांस्कृतिक और सामाजिक विकास में एक बड़ा योगदान दिया। उन्होंने बिहार के छात्रों के लिए कलकत्ता में राजेंद्र छात्र निवास, पटना में अनुग्रह नारायण सिन्हा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल स्टडीज, बिहार संगीत नृत्य नाट्य परिषद, पटना में संस्कृत कॉलेज, पटना में रविंद्र भवन, राजगीर वेणु वान विहार में भगवान बुद्ध की प्रतिमा इत्यादि जैसे अनेक निर्माण करवाए थे।

नव बिहार के निर्माता के रूप में बिहार केसरी डा. श्रीकृष्ण सिंह का उदात्त व्यक्तिगत, उनकी अप्रतिम कर्मठता एवं उनका अनुकरणीय त्याग़ बलिदान हमारे लिए एक अमूल्य धारोहर के समान है जो हमे सदा-सर्वदा राष्ट्रप्रेम एवं जन-सेवा के लिए अनुप्रेरित करता रहेगा। आज का विकासोन्मुख बिहार डा. श्रीकृष्ण सिंह जैसे महान शिल्पी की ही देन है जिन्होंने अपने कर्मठ एवं कुशल करो द्वारा राज्य की बहुमुखी विकास योजनाओं की आधारशिला रखी थी।

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