जब कामदेव सिंह ने देश पहली बार बूथ लूटने का लिया था ठेका। तब, गोली, बम, बारूद को किसने रोका, जानिए
जब कामदेव सिंह ने देश पहली बार बूथ लूटने का लिया था ठेका। तब, गोली, बम, बारूद को किसने रोका, जानिए
शिवकुमार
प्रखर समाजवादी नेता
चुनाव तब का - हार और जीत कोई खास माने नहीं रखता था । लोकसभा चुनाव का दो चरण अब वाकि रह गया है । 1जून को अंतिम चरण का मतदान समाप्त हो जायेगा और सभी को 4जून का इंतजार रहेगा ।
चुनाव के इस समर के बीच पुराने कईक योद्धा याद आते है । जों चुनाव हार कर भी जीतने वाले से बहुत बड़े कद के हो गये थे ।
1980 में जनता पार्टीअपनी अंदरुनी कलह से टूट गई थी ।चौधरी चरण सिंह के नेतृत्व में लोकदल बना था । पूर्व विदेश मंत्री श्याम नंदन मिश्र बेगुसराय लोकसभा क्षेत्र से लोकदल के उम्मीदवार थे । श्रीमती कृष्णा शाही कांग्रेस की उम्मीदवार थी । श्रीमती शाही के चुनाव प्रचार में तत्कालीन गृहमंत्री जैल सिंह बेगुसराय आये थे ।
बेगुसराय के अपराध कि दुनिया के बेताज बादशाह कामदेव सिंह को जैल सिंह ने भरोसा दिया कि आपके केस खतम करबा दिया जायेगा ।आप श्रीमती शाही को मदत कर दे। कामदेव सिंह ने एक सौ मतदान केंद्र कब्जा करने का जिम्मा ले लिया था । बेगुसराय बीहट गांव के एक शुभचिंतक ने एक पत्र के माध्यम से इसकी सूचना भेजी थी । पत्र मिलते ही हमारी बेचैनी बढ़ गई । श्याम बाबू के दौरे का कार्यक्रम उस दिन सिकंदरा में था ।मै तीन चार साथी के साथ रात साढ़े ग्यारह बजे पहूंचा तो श्याम बाबू से मुलाकात हुई ।मैने उनके सामने पत्र रख दिया और कहा कि आपको भी इंतजाम करना चाहिए । बिना हथियार के ,बम के कैसे लोग लड़ेंगे । श्याम बाबू की मुखमुद्रा गम्भीर हो गई । बोले यह मुझ से नहीं हो सकता है ।" कोई उतरी पहने और हम माला पहने ऐसी जीत को जुते की ठोकर मारता हूं"। मै स्तब्ध रह गया ।मन में उनके प्रति गुस्सा भी पैदा हुआ ।
उन्होंने चुनाव जीतने के लिए न अपराधियों से सम्पर्क साधा और न ही गोली ,बम -बारूद का इंतजाम ही किया । चुनाव हारे पर जमीर नहीं हारे ।
1980 में ही कुछ दिनों के बाद विधानसभा चुनाव हुआ । समाजवादी नेता कपिलदेव बाबू लखीसराय से लोकदल के उम्मीदवार थे । उनके अपने मौसरे भाई भाजो सिंह जों बड़हिया के बड़े रंगबाज थे ,उनके विरोध में पुरे जोर- शोर से लगे थे ।उनका आरोप था कि बड़हिया गोलीकांड में कपिलदेव बाबू ने उनकी कोई मदत नहीं किया । उस गोलीकांड के सूत्रधार में भाजो सिंह के बड़े भतीजे देवन सिंह का नाम जुड़ा था जिसमें उन्हें जेल जाना पड़ा था । मैं उन्हें मनाने गया था ।हमारे पिताजी के मौसेरे भाई कपिलदेव बाबू और भाजो सिंह दोनों ही थे । बहुत तरह से समझाया पर वे मान नहीं रहे थे । कांग्रेसी नेता राजो सिंह उन्हें पुरी तौर से टाईट किये हुए थे । हम सभी घर -परिवार और शुभचिंतक कपिलदेव बाबू पर दबाब बनाते कि एक बार वे बात कर ले पर वे बात करने को कतई तैयार नहीं थे । एक शाम कपिलदेव बाबू के मंझले भाई मदन बाबू ने भाजो सिंह को बौउस कर लाये ।वे कपिलदेव बाबू के आगे आधे घंटे तक खड़े रहें पर कपिलदेव बाबू ने एक शब्द भी बात नहीं किया । चुनाव में बुथ लूट से कपिलदेव बाबू को भारी नुकसान हुआ और वे चुनाव हार गये ।
चुनाव रिजल्ट की रात ही मुझे पटना भेजे कि विधायक निवास कल खाली कर देना है । कल होकर शाम तक खाली हो गया ।
परसो होकर कपिलदेव बाबू ने बड़हिया में आम सभा रखबाया और बड़हिया के लोगो को चुनाव में हराने के लिए धन्यवाद दिया । उन्होंने कहा कि हम अब रचनात्मक काम पांच साल करेगे । 1969 में हारे तो गांव में लड़कियों की पढ़ाई के लिए प्राथमिक से हाईस्कूल तक के लिए एक ही परिसर में विधालय खुलाबाये अब उसी परिसर में डीग्री तक लड़कियों के लिए कांलेज खोलेगे ।आज एक परिसर में अवस्थित प्राथमिक से डीग्री तक का यह बड़हिया महिला महाविद्यालय उनकी कृतिगाथा गा रहा है ।
शायद राष्ट्रकवि दिनकर ने ऐसे लोगो के लिए ही लिखा होगा - "हार जीत क्या चीज
वीरता की पहचान समर है
जहां हार कर भी नहीं हारता नर है ।"
लेखक प्रखर समाजवादी नेता है। 1974 के छात्र आंदोलन में राजनीति से जुड़े। कपिलदेव बाबू, श्यामनंदन मिश्र के सानिध्य में रहे। स्पष्टवादी होने की वजह हमेशा चर्चित रहे है।
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