• Monday, 06 May 2024
छठ व्रत को भगवान राम और माता सीता ने सबसे पहले कब और क्यों किया था शुरू, जानिए

छठ व्रत को भगवान राम और माता सीता ने सबसे पहले कब और क्यों किया था शुरू, जानिए

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छठ व्रत को भगवान राम और माता सीता ने सबसे पहले कब और क्यों किया था शुरू, जानिए

गणनायक मिश्र/संपादक मंडल

  • बिहार में सर्वाधिक लोकप्रिय इस पर्व को सांस्कृतिक विस्तार ने देश भर में बनाया प्रचलित
  • नहाय खाय से चार दिवसीय लोक आस्था के महापर्व छठ की आज होगी शुरुआत
  • कोरॉना महामारी के बाद व्रतियों और श्रद्धालुओं का उमड़ेगा हुजूम छठ घाट पर ।

चार दिवसीय अनुष्ठान

सदियों से चली आ रही साक्षात ब्रह्म माने जाने वाले भगवान आदित्य के आराधना का पर्व चार दिवसीय छठ व्रत का आरंभ ‘नहाए खाए’ के साथ आज से प्रारंभ हो गया । मूल रूप से बिहार में सर्वाधिक लोकप्रिय रूप में प्रचलित इस पर्व की लोकप्रियता ने आसपास के पड़ोसी राज्यों में बिहारियों के बसने के बाद हुए सांस्कृतिक विस्तार के फल स्वरुप इस पर्व को अपनी लोक आस्था से अन्य लोगों को भी प्रभावित किया है जिससे इसकी लोकप्रियता देशभर में प्रचलित हो गई है।

छठ व्रत का इतिहास /मान्यताएं

हिंदू धर्म की मान्यताओं के अनुसार एक निः संतान राजा प्रियमवद काफी प्रयास के बाद एक पुत्र हुआ जो होते हैं मृत हो गया। श्मशान में गहरे विषाद में उसने जब वह अपने इस लीला को समाप्त करने का निर्णय लिया तो उसी समय सृष्टि संचालक भगवान ब्रह्म की मानस पुत्री देवसेना अवतरित होकर सृष्टि के छठे रूप जिन्हें षष्टी के नाम से जाना जाता है, की आराधना कर पुत्र प्राप्ति का उपाय बताया । राजा प्रियमवद ने कार्तिक शुक्ल पक्ष के षष्ठी तिथि को सूर्य की बहन मानी जाने वाली मां सष्टि की पूजा बताए गए विधान के अनुसार की तभी से यह परंपरा का आरंभ माना जाता है।

भगवान राम, द्रौपदी, और कर्ण ने भी किया था छठ

धार्मिक कथाओं और विश्वास के अनुसार 14 वर्ष के वनवास काटने के बाद मां सीता के साथ सकुशल लौटने पर भगवान राम और माता सीता ने भी भगवान सूर्य की आराधना कार्तिक शुक्ल पक्ष षष्ठी तिथि को है किया था । जबकि महाभारत काल में राज पाठ छीन लिए जाने के बाद जंगल जंगल भटकने के बाद पांडवों की स्थिति सुधार हेतु द्रौपदी के द्वारा भी छठ व्रत के करने की कथा धार्मिक पुस्तकों में वर्णित है । भगवान सूर्य के मानस पुत्र माने जाने वाले कर्ण के सूर्य उपासना की कथा भी इसी प्रकार से प्रचलित है। इस प्रकार द्वापर सतयुग के सदियों से चली आ रही लोक आस्था के यह पर्व की लोकप्रियता पर किसी प्रश्न चिन्ह का कोई सवाल नहीं ।

लोकप्रियता का क्षेत्र बिहार उत्तरप्रदेश क्यों ?

भगवान राम के जन्म स्थान अयोध्या (उप्र) और मां सीता की जन्म स्थान बिहार से सटे जनकपुरी (नेपाल) में होने के कारण बिहार और उत्तर प्रदेश में इस व्रत की लोकप्रियता मौलिक रूप से ज्यादा मानी जाती है।लेकिन कालांतर में यहां के लोगों के पलायन कर अन्य राज्यों में बसने के बाद यह परंपरा सांस्कृतिक विस्तार के साथ वहां भी पहुंच गई और आस्था से लोगों के जुड़ने के बाद धीरे-धीरे इसका स्वरूप अब राष्ट्रीय होता जा रहा है । जिसे दिल्ली और मुंबई पाश्चात्य एवं विविध संस्कृति वाले क्षेत्रों में भी इसकी लोकप्रियता देखी जा सकती है।

क्यों है आस्था ?

सनातन धर्म प्रायः मनुष्य जीवन के पारिवारिक सामजिक जीवन के सफल जीवन यापन के आध्यात्मिक सफलता से सम्बद्ध मानी जाती रही है। इसीलिए आरोग्य निरोग, धनधान्य से समृद्धि, नि:संतानों को संतान, संतान वालों के लिए उनका दीर्घ और स्वस्थ जीवन, सौभाग्य आदि की मनोकामना से यह पर्व साक्षात ईश्वर माने जाने वाले भगवान सूर्य की आराधना की जाती रही है ।

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क्या है परम्परा

चार दिवसीय लोक आस्था का यह छठ पर्व नहाय खाय के विधान से आरम्भ होता है । पुनः दूसरे दिन 24 घंटे के पश्चात सूर्य उपासना कर के शाम में व्रत प्रसाद ग्रहण कर व्रत तोड़ती है ।पुनः उस रात लगातार 36 घंटे के बाद निर्जला उपवास आरम्भ होता है जिसमें तीसरे दिन शाम में अस्ताचल सूर्य को परिजनों साथ घाट पर प्रसाद सुसज्जित सूप रख अर्घ्य निवेदित किया जाता है ।तथा चौथे दिन उदयाचल सूर्य को इसी तरह अर्घ्य समर्पित कर पारण किया जाता है । इसी तरह व्रत की समाप्ति हो जाती है ।

सामाजिक सौहार्द और प्रेम सामंजस्य का है प्रतीक

छठ व्रत को केवल धार्मिक ही नहीं बल्कि सामाजिक तौर पर भी लोकप्रियता इसलिए भी प्राप्त है क्योंकि खा लेना और पारण के दिन के प्रसाद वितरण हेतु सामाजिक सौहार्द भाईचारा प्रेम जिस पवित्रता के साथ निभाया जाता है वह अन्य पर्व में इसके समान दुर्लभ होता है। घाटों पर भी श्रद्धालुओं के हुजूम के द्वारा हर एक व्रती को पूर्ण सहयोग और श्रद्धा का पात्र माना जाता है ।

मूर्ति पूजा नहीं होने के कारण अन्य धर्मावलंबी भी करते हैं छठ

लोक आस्था के इस पर्व में किसी देवता के स्वरूप को नहीं पूजे जाने के कारण कुछ क्षेत्रों में अन्य धर्मावलंबियों के द्वारा भी इस पर्व को पूरी श्रद्धा के साथ करने का उदाहरण प्राप्त होता रहा है । इस उदाहरण से इस पर्व में लोगों की आस्था कितनी है इसका उत्तर मिल मिल जाता है । विज्ञान के दृष्टिकोण से भी सूर्यास्त और सूर्योदय के समक्ष ऊष्मा के प्रचंड स्रोत सूर्य को सबसे सक्षम माना गया है जिससे संपूर्ण सृष्टि संचालित होती है। और हर धर्म सृष्टि संचालक को ही ब्रह्म मानता है ।


कोरोना काल के बाद उमड़ेगा छठ घाटों पर हुजूम

विगत 2 वर्षों से वैश्विक महामारी कोरोना काल के कारण लोक आस्था के इस पर्व को लोग मजबूरन अपने ही घर में किसी तरह से मनाने के लिए मजबूर थे । लेकिन केंद्र एवं राज्य सरकार के द्वारा वैक्सीनेशन की प्रक्रिया को सराहनीय स्तर पर कर दिए जाने के बाद 2 वर्षों के महामारी काल के बाद छठ घाटों पर श्रद्धालुओं के हुजूम उमड़ने के आसार जगे हैं।

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