
राष्ट्रकवि दिनकर जी के कनिष्ट सुपुत्र और कवि केदार चा नहीं रहें

शिवकुमार/समाजवादी नेता
कल दिल्ली के एक अस्पताल में लम्बी बीमारी के बाद उनका देहान्त हो गया ।आज उनका पार्थिव शरीर पटना लाया गया और अपराह्न तीन बजे के लगभग विधुत शवदाह गृह में अंतिम संस्कार सम्पन्न हुआ । बड़ी संख्या में उनके परिजन और उनको चाहने वाले हम सब उपस्थित थे। सबों ने भींगी आंखों से उन्हें विदाई दिया ।
राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर के दो सुपुत्र मे बड़े रामसेवक जी तो दिनकर जी के जीवन काल में गुजर गये थे ।केदार बाबू भी आज पितरलोक में चले गये ।
इधर, पन्द्रह सोलह सालो से हमारा केदार चा से गहरा जुड़ाव हो गया था । हम , कवि और लेखक रविन्द्र भारती जी केदार चा के घर पर अक्सर बैठकी घंटों किया करते थे । साहित्य ,समाज , राजनीति सब पर चर्चा होती ।कुछ लोग पूछ भी लेते थे कि केदार बाबू आपके चाचा कैसे लगते है? दरअसल केदार बाबू मेरे पिता जी को रामजी दा कह कर ही संबोधित सदैव करते थे । यहीं सुनकर हम उन्हें चाचा पुकारते थे। उनका हमारे घर पर बरबीघा आना जाना लगा रहता था।
उन्होंने ने भी मुझे बराबर पुत्रवत स्नेह दिया । मेरे करीबी लोग और मुझ से फायदा उठाने वाले भी जदयू का टिकट नहीं मिलने पर मुझसे दूर हो गये थे, तब 2010 में जब मैं निर्दलीय विधानसभा चुनाव लड़ा तो वह मेरे नामांकण और प्रचार में भारती जी और प्रो बाल्मीकि बाबू के साथ भीषण गर्मी में आये और बरबीघा के अनेक गांवों मे प्रचार में गये थे।
यह था उनका मुसीबत के वक्त अपनों के बगल में मजबूती से खड़े रह कर उसे ताकत देने का उनका उच्चतर मानवीय स्वभाव। उनके जैसा सज्जन व्यक्ति मैंने कम ही देखा है।
जाड़े के मौसम मे हमारे चक्की ,भुरा और गुड़ का उन्हें इंतजार रहता था । हमें काल करते और पूछते, कब पटना आना है और इसे लाने की याद दिला देते। पूरे पटना में प्रचार करते कि शिवकुमार ने जो चक्की ,गुड़ और भुरा दिया है वह लाजबाब है।
पिछली मुलाकात में ही उन्होंने सिमरिया हमें और भारती जी को ले चलने को कहा था ।मक्के की रोटी खिलाने की भी बात कही थी ।अचानक यम ने उन्हें हमारे बीच से उठा लिया ।
अभी काफी कुछ उन्हें करना था ।वह अधुरा ही रह गया ।दिनकर जी पर संस्मरण का एक ही किस्त लिख सके थे । अस्पताल की शय्या से ही नयी कविता सग्रह " थोड़ा थोड़ा पुण्य, थोड़ा थोड़ा पाप " का विमोचन भारती जी से कराया ।
कईक बरस पहले उनका संभवतः पहला कविता संग्रह "आका सुरज बाका सुरज "प्रकाशित हुआ था ।एक लघू काव्य स़ग्रह पिछले साल की गर्मी के मौसम में प्रकाशित हुआ जिसे उन्होंने मुझे बड़े स्नेह से भेंट किया था । जब केदार चा कविता पाठ करते थे तो लगता कि दिनकर जी ही पाठ कर रहें है।

कईक साल पहले दिनकर जी के पुण्यतिथि पर बरबीघा के नवजीवन अशोक पुस्तकालय में उन्हें आमंत्रित किया था ।वह भारती जी के साथ आये थे । रश्मिरथी और कुरूक्षेत्र का जब पाठ करने लगे तो लोग सुनकर अचंभित हो गये थे।
बरबीघा उच्च विद्यालय में मेरे प्रयास से जब दिनकर जी प्रतीमा लगी तो केदार चा ने मुझे खूब शाबाशी दिया था । बरबीघा से उन्हें एक लगाव था । इसका कारण यह भी रहा होगा कि दिनकर जी बरबीघा उच्च विद्यालय के संस्थापक प्रधानाध्यापक रहें थे और इस इलाके में उनके नाते -रिश्तेदार भी थे।
आज एक खालीपन महसूस कर रहा हूं जिसकी भरपाई अब संभव नहीं।
उनके यशस्वी पिता राष्ट्रकवि दिनकर जी की कविता "कवि की मृत्यु" की इन पंक्तियों से श्रद्धांजलि देते हैं
"नीचे की महफ़िल उजड़ गई ,ऊपर कुछ और चमक उठी होगी सभा सितारों की ।
शत-शत नमन ।।
लेखक बरबीघा, शेखपुरा निवासी है। लेखक समाजवादी आंदोलन के सक्रिय नेता रहे। राजनीति में भी सक्रिय भागीदारी है। सामाजिक, राजनीतिक और साहित्यिक गतिविधियों में लेखक की सहभागिता रहती है। आलेख लेखक के फेसबुक से साभार




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