• Friday, 29 March 2024
Good News: बिहार के लिए गोल्ड मेडल जीतने वाली बेटी संध्या के संघर्ष और साहस की कहानी

Good News: बिहार के लिए गोल्ड मेडल जीतने वाली बेटी संध्या के संघर्ष और साहस की कहानी

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Good News: बिहार के लिए गोल्ड मेडल जीतने वाली बेटी संध्या के संघर्ष और साहस की कहानी

 

शेखपुरा

 

बेटियों को आज भी समाज कमतर माना जाता है और बेटियां अपने संघर्ष, साहस और स्वावलंबन से समाज के लिए प्रेरणा बनती है। ऐसी ही एक बेटी संध्या समाज के लिए प्रेरणा बनी है । शेखपुरा जिले के बरबीघा प्रखंड अंतर्गत बाजार के बुल्लाचक मोहल्ला निवासी बृजमोहन मिस्त्री और सुशीला देवी की बेटी संध्या कुमारी ने अपने माता-पिता का मान सम्मान बढ़ाते हुए समाज और बिहार का मान सम्मान बढ़ाया है। संध्या ने बिहार को रग्बी खेल में गोल्ड मेडल दिलाया। संध्या को इसलिए बिहार सरकार के द्वारा सम्मानित किया गया खेल दिवस पर संध्या को सम्मानित किया गया।

अपनी मां के साथ संध्या

संध्या को यह सम्मान बिहार सरकार के खेल मंत्री के द्वारा प्रदान किया गया इस अवसर पर एक प्रशस्ति पत्र और ₹83000 पुरस्कार राशि भी दी गई। संध्या ने जून महीने में नवमी राष्ट्रीय रग्बी खेल प्रतियोगिता में बिहार के लिए गोल्ड मेडल जीतकर बिहार को पहली बार रग्बी खेल में गोल्ड मेडल जीतने का गौरव प्राप्त कराया।

 

बुल्ला चक मोहल्ला निवासी बृजमोहन मिस्त्री और सुशीला देवी की बेटी अपने तीन भाई और सात बहनों में सबसे छोटी है। संध्या के पिता मामूली लोहा के मिस्त्री हैं और किसी तरह अपना जीवन यापन करते हैं और परिवार का भरण पोषण करते हैं वही संध्या का रग्बी खेलना संघर्षों का दौड़ रहा है। आर्थिक अभाव के बीच संघर्ष करते हुए संध्या को माता-पिता का भी सहयोग मिला और गरीबी में भी उसे खेल में सहयोग किया जिसकी वजह से संध्या ने आज इस मुकाम को हासिल किया। संध्या की माता सुशीला देवी कहती है कि संध्या का यहां तक पहुंचना काफी संघर्षों भरा रहा है। आर्थिक तंगी के बीच संघर्ष करते हुए बेटी ने इस मुकाम को हासिल किया है।

 

 

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हालांकि संध्या के राष्ट्रीय स्तर पर बिहार के लिए गोल्ड मेडल जीतने में संघर्ष तो हुए परंतु इसमें सरकारी उपेक्षा से संध्या दुखी भी है संध्या बताती है कि बेहतर खेल के बावजूद जिला से किसी तरह का सहयोग संध्या को नहीं मिला। बताया कि सरकारी सहायता को लेकर कई बार प्रयास भी किए गए परंतु कहीं से कोई सकारात्मक सहयोग नहीं मिला जिससे उसे थोड़ी निराशा हुई परंतु निराशा से उबर कर अपने दम पर रग्बी के खेल में उसने परिश्रम किया। नियमित प्रयास और नियमित रूप से अभ्यास की वजह से यह सफलता हासिल हुई।

 

 

 

 

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