• Tuesday, 14 October 2025
शेखपुरा में चुनावी सरगर्मी तेज, लेकिन बाढ़ और अवैध खनन नहीं बन रहे मुद्दे

शेखपुरा में चुनावी सरगर्मी तेज, लेकिन बाढ़ और अवैध खनन नहीं बन रहे मुद्दे

Vikas

शेखपुरा में चुनावी सरगर्मी तेज, लेकिन बाढ़ और अवैध खनन नहीं बन रहे मुद्दे

 

 

शेखपुरा।

जिले के दोनों विधानसभा क्षेत्रों में शुक्रवार से नामांकन प्रक्रिया शुरू होते ही चुनावी माहौल पूरी तरह गरमा गया है। राजनीतिक दलों की टिकट बंटवारे की हलचल और गठबंधन की जोड़-तोड़ के बीच आम जनता के असली मुद्दे फिर एक बार हाशिए पर चले गए हैं।

 

 मुख्य चिंता: बाढ़ प्रभावित क्षेत्र की अनदेखी 

 

शेखपुरा जिले के घाटकुसुंभा और उससे सटे इलाकों में हर साल बाढ़ का संकट गहराता जा रहा है, लेकिन अब तक इन क्षेत्रों को बाढ़ प्रभावित क्षेत्र घोषित नहीं किया गया है। किसानों की फसलें तबाह हो जाती हैं, लेकिन राहत और पुनर्वास के सरकारी प्रावधान यहां तक नहीं उस स्तर तक नहीं मिलता। ग्रामीणों का कहना है कि यह मुद्दा बार-बार उठाया गया, परंतु नेता इसपर चुप्प है।   

 

 दूसरा बड़ा मुद्दा: पहाड़ों से अवैध खनन 

 

शेखपुरा के पहाड़ी इलाकों में अवैध खनन लगातार जारी है। इसने न केवल पर्यावरण को नुकसान पहुंचाया है, बल्कि जिले का तापमान भी साल-दर-साल बढ़ता जा रहा है। प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की रिपोर्ट में कई बार शेखपुरा का एक्युआई स्तर (AQI) राज्य में सबसे खराब दर्ज किया गया है। बावजूद इसके, राजनीतिक दलों की चर्चाओं में यह मुद्दा कहीं दिखाई नहीं दे रहा।

 

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रेल, खेती और स्थानीय सुविधाएं भी उपेक्षित 

 

रेल सुविधाओं की बात करें तो शेखपुरा जंक्शन पर वंदे भारत और हमसफर जैसी प्रमुख ट्रेनों का ठहराव नहीं है। स्थानीय संगठनों ने कई बार इस मांग को उठाया, लेकिन अब यह चुनावी बहस से गायब है। किसान यूरिया की कालाबाजारी, ईख और परवल की खेती में गिरते मुनाफे, और गुलाबी प्याज की पहचान बचाने के लिए सरकारी पहल की कमी से परेशान हैं।

 

बरबीघा विधानसभा क्षेत्र में लाला बाबू चौक पर प्रतिमा की स्थापना, बरबीघा को अनुमंडल बनाने की पुरानी मांग, और उच्च विद्यालय का नाम राष्ट्रकवि दिनकर के नाम पर रखने का प्रस्ताव—सभी मुद्दे इस बार भी ठंडे बस्ते में हैं। नगर में जल निकासी की समस्या और ग्रामीण इलाकों में बुनियादी सुविधाओं की कमी पर भी किसी पार्टी की स्पष्ट नीति सामने नहीं आई है।

 

कुल मिलाकर, शेखपुरा में चुनावी चर्चा इस बार भी दलों के समीकरणों और प्रत्याशियों के नामों तक सिमट गई है, जबकि जनता के सामने बाढ़, अवैध खनन और पर्यावरण संकट जैसे गंभीर सवाल अब भी अनुत्तरित हैं।

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