
चुनावी विश्लेषण: भक्त नाराज है..मन की बात कहिये नहीं, मन की बात सुनिए..

बीजेपी के विरोध में पोस्ट करते थे तो जो भक्त मित्र तर्क कुतर्क के साथ लड़ाई झगड़े पे आ जाते थे आज वे नाराज है। वे सवर्ण समाज के मित्र है। चाय चौकड़ी से लेकर गांव के दालान तक वे मोदी जी के लिए झगड़ते थे पर साढ़े चार साल बाद वे हताश है।
एससी एसटी मुद्दे पे कांग्रेसी सियासी शतरंजी चाल में फंसी बीजेपी शाहबानो की ही तरह अपने पैर पे कुल्हाड़ी मार ली। वोट बैंक बड़ा भले न हो पर भोकल वोट बैंक को खोना भारी पर गया। रही सही कसर आरक्षण के मुद्दे पे अंदर अंदर हवा देकर विपक्ष ने आग जलाए रखी।
पॉइंट एक प्रतिशत से हार हुई है जबकि नोटा को डेढ प्रतिशत वोट मिला।
हार का कारण कई होते है। एक कारक कभी नहीं होता। पर उसी में मुख्य कारक है सवर्णों की नाराजगी। उधर दलितों में पैदा की गई बीजेपी विरोध को अध्यादेश के माध्यम से कम नहीं किया जा सका। सोशल मीडिया से लेकर गांव चौपाल तक। सवर्ण और दलित दोनों खुश है। दोनों को लगता है बीजेपी को हरा दिया। कांग्रेस को जिता दिया ऐसा कम सवर्ण सोंचते है।
उधर व्यपारियों को जीएसटी और नोटबन्दी से जो परेशानी हुई उसका भी व्यापक असर है। ये कैडर वोटर थे। आज कमोवेश नाराज है। इसका कारण भी है। जीएसटी और नोटबन्दी ने इनकी कमर तोड़ दी है। आजतक परेशान है।
और इधर उज्जवज योजना, फ्री बिजली योजनाओं का झूठ भी है। कहा जाता है कि फ्री रसोई गैस और बिजली दी जा रही। यह पूरी तरह झूठ है। रसोई गैस और बिजली कनेक्शन फ्री नहीं इंस्टॉलमेंट पे दिया जा रहा। जो राशि एक मुश्त लेनी थी उसे सब्सिडी से काट लिया जाता है। बिजली बिल में हर माह जोड़ कर बसूली होती है।
किसानों की कमर तोड़ दी गयी। बातें बड़ी-बड़ी भले हो पर लाभ नहीं मिल रहा। फसल बीमा फैल है। लाभ नहीं मिल रहा। समर्थन मूल्य की घोषणा हवा हवाई। ऊपर से दलहन और तेलहन की कीमत विदेश के अनाज आयात करने से नीचे चली गयी। किसान को लागत से आधे दाम पे फसल बेचनी पड़ी। किसान प्याज फेंक रहे है।
जनधन का फूटा ढोल
जनधन योजना में खाता खोलने को बड़ी उपलब्धि बताई जाती है। यह फूटा ढोल है। ज्यादातर खाते बेकार हो गयी। इसके माध्यम से मिलने वाला जीवन बीमा का लाभ भी पैसे के अभाव में नहीं मिलता। महज 12 रुपये खाता में नहीं होने से जीवन बीमा का लाभ नहीं मिल पाता। सरकार क्या 12 रुपये प्रति व्यक्ति नहीं दे सकती ताकि सभी को बीमा का लाभ मिले!
बड़े मुद्दे भी है
हर साल रोजगार नहीं मिलना और पकौड़ा को रोजगार बताना बेरोजगार नौजवान के मुँह पे एक तमाचा था। वे हताश हो गए। कालाधन की वापसी नहीं। लोकपाल जैसे मुद्दे गौण होना। राफेल घोटाला पे पारदर्शी स्पष्टीकरण नहीं देना। मन की बात कहना, और मन कि बात नहीं सुनना कारण है।
पेट्रोल, डीजल की मंहगाई से भारी मार पड़ी है और इसे सरकार मजाक में उड़ा देती है।

एक बड़ा कारण राम मंदिर बनाने जैसे मुद्दे पे बीजेपी को घेर कर यह बताया जा की वादा नहीं निभाया, एक बड़ा कारण है। भक्त राम मंदिर मुद्दे पे बीजेपी द्वारा छल करने की बात सरेआम कहने लगे है।
हार के कारण कई है इसपे आत्ममंथन की जरूरत है और आत्ममंथन इस बात पे भी हो कि हार का कारण कई लोग अहंकार क्यों बता रहे…?
कई कारण है। सबसे बड़ा कारण एन्टी इनकंबेंसी भी हो सकता है। फिर भी 2019 में बहुत कठिन है डगर पनघट की।
अरुण साथी के ब्लॉग chauthaakhmbha.blogspot.com से साभार
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