• Wednesday, 15 May 2024
सत्यकथा: भागीरथ दारू पीकर कभी थाना चौक, कभी हटिया मोड़ में पलटा रहता

सत्यकथा: भागीरथ दारू पीकर कभी थाना चौक, कभी हटिया मोड़ में पलटा रहता

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डॉ भावेश चंद्र पांडेय

भागीरथ अव्वल दर्जे का शराबी था। शराब पीकर दिन दहाड़े ताण्डव करता। उसकी इसी आदत के कारण उसका तबादला मेरे कॉलेज में कर दिया गया था। मगर उससे उसकी आदत नहीं सुधरी। यहाँ भी वह दिन दहाड़े शराब पीकर हंगामा करता। जिस तिस तो गलिया देता। जहाँ तहाँ लुढ़क जाता।  जिस दिन वेतन मिलता वो महाराजा बन जाता। दारू, मुर्गा, रसगुल्ला के साथ दोस्तों के बीच चकल्लस करता। दिन रात उत्पात मचाता। जब पैसा खत्म हो जाता तो भागीरथ गाय बन जाता। एकदम सीधा। फिर वह पैसे पैंचा मांगता, जिस तिस से कर्ज़ा लेता। सूदखोर तो ऐसे मुल्ले तलाशते रहते हैं जिनसे रातो रात एक का दो बना लिया जाय। जो उसको कर्ज़ा देता वो भी प्रायः उसी के पैसे से ऐश करता। आये दिन भागीरथ दारू पीकर कभी थाना चौक, कभी हटिया मोड़, तो कभी कॉलेज में पलटा रहता। उसके मुँह से लार टपकती।
शराबबंदी में भी खुले आम दारू पीता। पुलिस उसे पकड़कर करे भी तो क्या?
धीरे धीरे वह हमारी नाक में दम करने लगा था। वह जब तब जिस तिस को बेइज्जत कर देता। लोग उसे मार पीट भी करते किन्तु उसका कोई असर नहीं होता। विश्वविद्यालय भी कोई एक्शन नहीं लेता।
इतने के बावजूद कुछ था उसमें कि उससे नफ़रत नहीं होती।
होश में रहने पर भागीरथ हमारे पाँव छूता, माफी भी मांगता। सभी शिक्षकों को पापाजी बुलाता। इतनी तंगी में भी कॉलेज का कोई सामान इधर से उधर नहीं करता।
जब भी कॉलेज में लाउडस्पीकर बजता भागीरथ मचलने लगता। वह सहज उल्लास में मोर जैसा नाचता और रोकने से भी नहीं रुकता।
एक दिन का वाकया नहीं भूलता हूँ।

भागीरथ टुन्न होकर हटिया मोड़ पर लुढ़का था।

मैं देर शाम बाज़ार से लौट रहा था। मैंने उसे देखकर हाथ पकड़कर उठाया और घर जाने को कहा।
मैं उससे कुछ दूरी बनाकर चल रहा था और देख रहा था कि वह पीछे आ रहा है।
मेरे लिए एक अजीब स्थिति तब बन गयी जब भागीरथ पीछे से जोर से बोलने लगा: ‘साइलेंट! कोई कुछ नहीं बोलेगा, सामने मेरा पापाजी जा रहा है।’
मैं क्या करता? उसको चुप करना संभव न था। इसलिए अपनी चाल तेज कर दी।
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मैं मन ही मन अपना कान पकड़ रहा था कि फिर कभी नशे की हालत में उसे नहीं टोकूँगा।
जानकर दुख हुआ कि भागीरथ एक दिन दारू पीकर आया ही था कि उसके शरीर से बहुत पसीना चलने लगा।
अस्पताल जाते जाते वह हमेशा के लिए लुढ़क गया था।
लेखक श्री कृष्ण राम रुचि कॉलेज बरबीघा में अंग्रेजी के प्राध्यापक हैं एवं मुंगेर विश्वविद्यालय में निरीक्षक के पद पर कार्यरत हैं।
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