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                शंकराचार्य के द्वारा एक दलित सांसद को पैर नहीं छूने देने का वायरल सच
प्रियदर्शन शर्मा / मोकामा
इस तस्वीर को लेकर आजकल एक नया विवाद छेड़ा जा रहा है कि दलित होने के कारण शंकराचार्य ने सांसद को पैर छूने से मना कर दिया। अब आपबीती सुनाता हूं।
2017 के दिसम्बर महीने में पटना से जोलारपेट (तमिलनाडु) के लिए ट्रेन पकड़ा। एसी 3 के बी4 में रिजर्वेशन था। उसके ठीक बाद ए1 कोच था यानी एसी 2 क्लास। तो द्रुत गति से अपने गंतव्य की ओर भागती ट्रेन करीब 27 घँटे बाद राजमुंदरी (आंध्र प्रदेश) पहुंची। शाम के 6 बजे रहे थे। और राजमुंदरी स्टेशन की कॉफी मुझे हमेशा प्रिय है। तो अपनी पसंदीदा कॉफी को पीने की चाहत से हम भी राजमुंदरी के प्लेटफार्म नंबर एक पर थे।
हालांकि इसके पहले कि हमारे कदम पसंदीदा कॉफी स्टॉल तक पहुंच पाते नजरें कुछ और देख रही थी। सैंकड़ों लोगों की भीड़ किसी व्यक्ति को ट्रेन में चढ़ाने के लिए मौजूद थी। अमूमन सबके हाथ में फूलों की माला। हर ओर गोवर्धन पीठ के जयकारे तेलुगू में गूंज रहे थे। और तो और दर्जनों पुलिस वाले भी उस व्यक्ति की सुरक्षा में तैनात थे। पल भर में ही कॉफी पीने के लिए बढ़े पांव उस बगल वाले ए1 कोच की ओर बढ़ चले। नजदीक आने पर यह महसूस हो गया कि कोई संत महात्मा हैं जिनके अनुयायी उन्हें विदाई देने आए हैं। ऐसे उत्कंठा होने लगी कि जरा देखूं तो वे कौन संत हैं जिनके लिए इतनी जबरदस्त व्यवस्था है। खासकर दर्जनों पुलिस वाले।
तो हम भी ए2 कोच में सवार हो गए। ट्रेन अब राजमुंदरी से खुल चुकी थी और हम ए2 से ए1 कोच में थे। वहां भी सुरक्षा में गेट पर ही कुछ पुलिस वाले तैनात थे। उन्होंने मुझे चलती ट्रेन में उस कोच में जाते देखा तो विनम्रता से लेकिन सख्त लहजे में पूछा इसमें आपकी सीट है। हमने बताया, नहीं इसके बाद के बी4 कोच में।
खैर ए1 कोच में प्रवेश करते ही चंदन और बेली के फूलों की खुशबू से पूरा कोच गमगमा रहा था। चूंकि दक्षिण भारत के कई संतों से पहले भी मिल चुका था तो चंदन की उस जानी पहचानी गंध से यह समझने में ज्यादा देर नहीं हुआ कि कोई संत महात्मा सफर कर रहे हैं। अगले ही पल वहां पहुँच गया था जहां एक संत सीट पर बैठे थे और करीब आधा दर्जन अन्य संत महात्मा खड़े। शायद उनलोगों के कोच में प्रवेश के बाद मैं पहला ही व्यक्ति था जो उनके सामने था।
वहीं ठिठककर सीट पर बैठे संत पुरुष को देखते हुए महसूस हुआ कि इन्हें मैं जानता हूं। इसके पहले कि मुझसे वे लोग कुछ बोलते या पूछते सवालिया लहजे में थोड़ी ऊंची आवाज में मैंने ही पूछा... आप शंकराचार्य हैं? सामने से जवाब आया ... हाँ। मेरा अगला सवाल था... पुरी वाले हैं न आप। फिर जवाब आया... हाँ। खैर इन सवालों के बीच ही मुझे लगा कि इस तरह से मैं कुछ बहकी बातें तो नही बोल रहा। तो भाषा शैली बदलते हुए फिर मैंने आग्रह किया। आपको कई बार टीवी-अखबार में देख चुका हूं लेकिन पहचानने में कुछ संशय था।
 
                                
                                
                                                
अब सवालों की बारी शंकराचार्य जी की थी। उन्होंने मुझसे मेरा पूरा नाम, पता, ठौर-ठिकाना जान लिया। मेरे 'प्रिय दर्शन' नाम को श्री कृष्ण का एक नाम और मेरे माता-पिता जी के नाम क्रमशः कृष्णा देवी-बाल मुकुंद शर्मा जानकर उन्होंने इसे कृष्ण के नामों का अनोखा संयोग बताया। तो अब अपनी संस्कृति और संतो के सम्मान की परंपरा के तहत मैंने अनुरोध किया कि आपका आशीर्वाद चाहता हूं। आपको प्रणाम करना चाहता हूं। उन्होंने अनुमति लेकिन कहा पैर नहीं छूना। दरअसल, शंकर परंपरा में आचार्य के पैर कोई नहीं छूता। चाहे ब्राह्मण हो या दलित कोई भी उनके चरण नहीं छूता। तो हमने भी वहीं शाष्टांग दंडवत किया और जाने लगा तो शंकराचार्य जी ने फिर रोका। अपने एक सहयात्री संत को उन्होंने फलों और सूखे मेवों की एक टोकरी मुझे देने का इशारा किया। खुशी खुशी टोकरी ग्रहण कर पुनः उन्हें शीश नवकार हम भी अपने कोच की ओर चल दिये। शंकराचार्य जी को विजयवाड़ा जाना था।
इन दिनों जब दलित सांसद को पैर नहीं छूने देने वाली बातें सुना तो सहसा अपनी आपबीती का स्मरण आया। शंकर परंपरा में आचार्य के पैर कोई नहीं छूता इसे जाने बिना ही लोग चिढ़वश क्या क्या आरोप नहीं लगा देते। जबकि कहा जाता है कि जहां और जिसके प्रति आस्था को वहां व्यक्ति अपमान महसूस ही नहीं कर सकता।
खैर भारतीय उपमहाद्वीप के सम्पूर्ण पूर्व भाग को श्री गोवर्धन पीठ का क्षेत्र माना जाता है। यानी ओडिशा के जगन्नाथ पुरी स्थित गोवर्धन मठ के अंतर्गत ही बिहार, झारखंड, छत्तीसगढ़, राजमुंदरी तक आंध्र प्रदेश, ओडिशा, पश्चिम बंगाल, असम, अरुणाचल प्रदेश, मणिपुर, सिक्किम, मेघालय, त्रिपुरा, मिजोरम और प्रयाग तक उत्तर प्रदेश के भारतीय राज्य शामिल हैं। साथ ही नेपाल, बांग्लादेश और भूटान देश भी इस मठ का आध्यात्मिक क्षेत्र माना जाता है। इस मठ के अंतर्गत पुरी, इलाहाबाद, पटना और वाराणसी आदि पवित्र स्थान आते हैं। इन सबके महामहिम जगतगुरु स्वामी श्री निश्चलानंद सरस्वती हैं, जो गोवर्धन पीठ के शंकराचार्य हैं।
 
            
            
                                    
                 
            
            
                                    
                 
            
            
                                    
                 
            
             
	        
आलेख वरिष्ठ पत्रकार प्रियदर्शन शर्मा के फेसबुक वॉल से साभार
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