• Sunday, 05 May 2024
सबसे खतरनाक है शेखपुरा जिला में पर्यावरण की स्थिति, एक प्रतिशत भी वन क्षेत्र नहीं

सबसे खतरनाक है शेखपुरा जिला में पर्यावरण की स्थिति, एक प्रतिशत भी वन क्षेत्र नहीं

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सबसे खतरनाक है शेखपुरा जिला में पर्यावरण की स्थिति, एक प्रतिशत भी वन क्षेत्र नहीं
  • श्रीनिवास, वरिष्ठ पत्रकार

आज 5 जून विश्व पर्यावरण दिवस है । याद आ गई की सरकार पर्यावरण की रक्षा के लिए वृक्षारोपण का कार्यक्रम चलाते रहती है । पर्यावरण को हरा-भरा करने के लिए तथा जंगल क्षेत्र को बढ़ाने के लिए कई कार्यक्रम भी चला रही है । बिहार सरकार ने जल- जीवन -हरियाली भी चला रखी है लेकिन यह कहते हुए काफी निराशा हो रही है कि बिहार के सबसे छोटे जिले शेखपुरा में वन का क्षेत्रफल अभी भी 1% से कम है, जबकि संतुलित पर्यावरण के लिए 17 पर्सेंट वन का होना आवश्यक है। शेखपुरा में बड़ी संख्या में खनन के कारोबार फल- फूल रहे हैं, सैकड़ों व्यक्ति खनन के कारोबार  से अरबपति बन चुके हैं लेकन त्रासदी यह है कि पर्यावरण की रक्षा के लिए उन कारोबारियों ने कुछ भी नहीं किया। पत्थर क्रशर एवं खनन का लाइसेंस निर्गत करने के पूर्व पट्टे धारियों के द्वारा यह शपथ पत्र दिया जाता है कि वह खनन इलाके में वृक्ष लगाएंगे और उसकी रक्षा करेंगे तथा हरियाली को मेंटेन रखेंगे लेकिन इससे अलग हकीकत यह है कि पहाड़ के इलाकों में वृक्ष नहीं के बराबर है ।

स्थानीय प्रशासन भी इस ओर ध्यान नहीं देती। अवैध लोडिंग तथा अवैध खनन को रोकने के लिए जिले में हर जिलाधिकारी के द्वारा टास्क फोर्स बनाकर गाड़ियां पकड़ी जाती है और भारी जुर्माना भी वसूला जा रहा है ।राजस्व को फायदा हो रहा है इसमें कोई शक नहीं है लेकिन इसका काला सच भी है कि पर्यावरण को भारी नुकसान पहुंचाया जा रहा है और उस नुकसान को देखने के लिए जिला प्रशासन का कोई अधिकारी आगे नहीं आ रहा है। वृक्षारोपण की बात की जाए तो शेखपुरा के आरडी कॉलेज मोड़ से गिरिहिंडा, मखदुमपुर होते हुए तरछा मोहल्ले तक का जो पहाड़ी इलाका है उस पर खनन कार्य प्रतिबंधित है। कायदे से पहाड़ के इर्द-गिर्द काफी जमीन भी है अगर उन इलाकों में पेड़ लगा दिया जाता है तो एक तो शहर की खूबसूरती बढ़ जाती दूसरी ओर जिले में जंगल का प्रतिशत भी बढ़ जाता है, लेकिन इसके लिए कोई भी जिलाधिकारी द्वारा या नगर प्रशासन द्वारा मास्टर प्लान तैयार नहीं किया गया ।
आलम यह है कि सरकारी भूमि पर अतिक्रमण हो रहा है,अवैध कालोनियां बन रही है , प्रशासन देख भी रही है लेकिन उस अतिक्रमण को हटाकर वृक्षारोपण करने तथा जंगल क्षेत्र को बढ़ाने की कवायद नहीं की जा रही है जो बहुत ही खेद का विषय है ।यह आलेख पर्यावरण दिवस के अवसर पर मैं इसलिए लिख रहा हूं कि हो सके तो स्थानीय प्रशासन की नींद खुले और पहाड़ के खाली पड़े भू भाग में साथ ही जिन पहाड़ों के इर्द-गिर्द खनन नहीं होते हैं उस पहाड़ को हरियाली में तब्दील करने के लिए कोई मास्टर प्लान तैयार करें और इस पर कार्य प्रारंभ कर दें।
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  • आलेख लेखक के FACEBOOK वाल से साभार
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