• Saturday, 21 December 2024
गोयठा के लह लह आग में तप कर निकले बिहारी लिट्टी का है अनोखा स्वाद

गोयठा के लह लह आग में तप कर निकले बिहारी लिट्टी का है अनोखा स्वाद

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गोयठा के लह लह आग में तप कर निकले बिहारी लिट्टी का है अनोखा स्वाद

 

अरुण साथी, वरिष्ठ पत्रकार 

 

गोयठा जोर दिया गया। #लिट्टी भरा हुआ है। आग धीरे धीरे लहक गया। फिर उसके थोड़ा शांत होते ही उसमें लिट्टी डाल दिया गया। अब लह लह आग में लिट्टी पक रहा।

 

बिहारी #लिट्टी_चोखा। यह एक शब्द मात्र नहीं है। इसमें है अपनेपन का बिहारी स्वाद।

 

 साथ साथ औषधीय गुणों का खान। बिहार में ठंड के गिरते ही लिट्टी चोखा का मौसम आ जाता है। रात थाली यही व्यंजन मिला। सुस्वादु। अति सुस्वादु। खास बात यह कि लिट्टी कुछ अधिक ही खस्ता थी। हालांकि इसे बनाने में मेरा योगदान नहीं रहा। गृहणी और बच्चे का परिश्रम रहा।

 

#बिहारी_लिट्टी_चोखा कई प्रकार से बनाए जाते है। लकड़ी के कोयला पर सेंक कर। आम चलन में है। अब तो गैस पर बनाने वाला कुकर नुमा बर्तन भी आ गया है। 

 

खैर, असल स्वाद #गोयठा (गोबर का #उपला) के आग में घुसेड़ कर पकाने में मिलता है। लह लह करती आग और उसने पकता लिट्टी। ऐसे लगता है जैसे अग्नि की ऊष्मा लिट्टी में घुल रही है। मिल रही है।

 

खैर, लिट्टी में चना का #सत्तू भरा जाता है। यह सहज जानकारी है। पर औषधीय गुणों वाला #जमाइन, मंगरोल लिट्टी का सबसे मूल मसाला है। और इसी से असल स्वाद भी है। फिर लहसुन भी इसमें प्रमुख मसाला है। अदरक, नींबू, हरा मिर्च भी स्वाद को बढ़ाता है। भुना हुआ गोलकी, जीरा इसके स्वाद को लाजवाब बना देता है। और, घर के आचार का मसाला मिल जाए तो क्या कहना..!

 

अब आते है इसके चोखा पर। बैगन, टमाटर, आलू को भी लह लहाते आग में पका कर ही स्वादिष्ट बनाया जाता है। इसमें भी लहसुन, प्याज, अदरख की प्रमुखता है। और हां, बैगन में खड़ा कच्चा मिर्चाई और लहसुन को घुसेड़ कर तब आग में पकाया जाता है। 

 

हालांकि इस साल लहसुन पर मंहगाई की मार भी है। काजू की कीमत के बराबर है।

 

लिट्टी और चोखा के लिए शुद्ध कड़ुआ तेज का स्वाद और झांस खास है। 

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फिर शुद्ध देसी गाय का घी तो अनिवार्य तत्व माना जाता है। उसके बिना तो स्वाद ही अधूरा है। 

 

घी का एक उपयोग आटा सनाने में घी को मिलना है। इसी से यह खस्ता और मुलायम पकता है। 

 

अब समझिए। बिहारी लिट्टी चोखा सभी को लिए शायद हाइजीनिक नहीं लगे। क्योंकि पकने के बाद जब इसे निकालते है तो बानी (राख) का अंश रहता है। उसे हमलोग सूती के कपड़ा में कई लिट्टी को रख कर रगड़ कर साफ करते है। 

 

मतलब की। बिहारी लिट्टी चोखा बहुत सहज बनने वाला व्यंजन नहीं है। यह बहुत खास है। बनाना भी मेहनत का काम है। और फिर स्वाद का आनंद आता है। 

 

तो अपना तो शुरू हो चुका है। लगातार चलेगा ही। बिहारी लिट्टी चोखा यदि दोस्तों के साथ हंसी, ठिठोली के साथ पके तो इसका स्वाद लाख गुना बढ़ जाता है। और हां, थाली में कच्चा प्याज, ओल का गांजा, आंवले का अचार भी है..

 

बस, जिंदाबाद।

 

आलेख अरुण साथी से फेसबुक से साभार लिया गया है।

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