• Tuesday, 01 July 2025
स्वामी विवेकानंद के लिए महापुरुषों के इस कथन को पढ़कर आप होंगे प्रेरित

स्वामी विवेकानंद के लिए महापुरुषों के इस कथन को पढ़कर आप होंगे प्रेरित

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स्वामी विवेकानंद के लिए महापुरुषों के इस कथन को पढ़कर आप होंगे प्रेरित

 

न्यूज डेस्क 

 

मैंने उनके द्वारा सृजित साहित्य का आद्योपान्त अध्ययन किया है और तत्पश्चात् अपने देश के प्रति मुझे जो प्रेम था वह हजार गुना बढ़ गया है। नौजवानो! मैं तुमको आह्वान करता हूँ कि जहाँ स्वामी विवेकानन्द जिए और मृत्यु को प्राप्त हुए उस स्थान के कुछ प्रभाव को धारण किए बिना खाली मत चले जाना।

 

निश्चित रूप से, स्वामी विवेकानन्द के लेखों को किसी से भी किसी परिचय की आवश्यकता नहीं है, वे स्वयं अपने आप को स्थापित करते हैं तथा निर्विरोध रूप से चित्त को आकर्षित करते हैं।

–महात्मा गाँधी

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 उनकी जड़ें अतीत में थीं तथा भारत के सम्मान के प्रति उनमें पर्याप्त अभिमान था, तथापि जीवन की समस्याओं के समाधान हेतु विवेकानन्द आधुनिक थे तथा अतीत एवं वर्तमान भारत के बीच एक सेतु थे ... स्वामीजी ने जो कुछ लिखा और कहा वह कल्याणकारी है, हितकारी है और वह आनेवाले लम्बे समय तक हमें प्रभावित करता रहेगा। साधारण शब्द के अर्थ में वे राजनीतिज्ञ नहीं थे, तथापि मेरे विचार से वे महान संस्थापकों में एक थे, आंशिक या सम्पूर्ण रूप से भारत के आधुनिक राष्ट्रीय आन्दोलन में भाग लेने वालों ने स्वामीजी से प्रेरणा प्राप्त की थी। प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष रूप से स्वामी विवेकानन्द ने भारत को सम्पूर्ण शक्ति से प्रभावित किया है। स्वामी विवेकानन्द द्वारा विवेक, उत्साह एवं अग्नि का जो उद्गम प्रवाहित किया गया है, मैं समझता हूँ युवा पीढ़ी उससे सम्पूर्ण लाभ प्राप्त करेगी।

 

-पंडित जवाहरलाल नेहरू

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स्वामी विवेकानन्द की अमेरिका यात्रा और उनके द्वारा उत्तरोत्तर कार्यों ने भारत के लिए लंदन में आयोजित सौ कांग्रेसों से अधिक प्रभावशाली कार्य किया।... हमारी अनुभूति है कि उनका प्रभाव अलौकिक रूप से अब भी कार्यरत है और हम कहते हैं "स्वामी विवेकानन्द को देखो जो अब भी अपनी भारत माँ और भारत माँ की सन्तति की आत्मा में विद्यमान हैं।"

 

- श्री अरविन्द

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यदि आप भारत को जानना चाहते हैं तो विवेकानन्द को अध्ययन करें। उनमें सब कुछ सकारात्मक है, कुछ भी नकारात्मक नहीं... राष्ट्र के प्रत्येक व्यक्ति को सम्बोधित करते हुए उन्होंने कहा कि प्रत्येक के अन्दर ईश्वर की शक्ति है, दीन व दुःखी के अन्दर का ईश्वर तुमसे अपनी सेवा की अपेक्षा करता है। उनके इस सन्देश ने नवयुवकों के हृदय को पूर्ण व्यापकता के साथ झकझोरा । यही कारण है कि यह सन्देश राष्ट्र की सेवा में विविध प्रकार एवं बलिदान की विभिन्न शक्लों के रूप में फलदायी सिद्ध हुआ।

 

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-रवीन्द्रनाथ टैगोर

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स्वामी विवेकानन्द की बहुमुखी प्रतिभा का वर्णन करना कठिन है। स्वामी विवेकानन्द ने अपनी कृतियों एवं व्याख्यानों से हमारे समय के छात्रों को जितना प्रभावित किया वह देश के किसी भी नेता को काफी पीछे छोड़ गया है। स्वामीजी ने इसकी आशाओं एवं आकांक्षाओं को पूर्णरूपेण अभिव्यक्त किया है। (किन्तु) स्वामीजी का अध्ययन स्वामी रामकृष्ण परमहंस देव जी के साथ किए बिना, उन्हें यथोचित रूप से समझना कठिन है। वर्तमान स्वतन्त्रता आन्दोलन की आधारशिला अपने उद्भव के लिए स्वामीजी के सन्देश की ऋणि है। यदि भारत को स्वतंत्र होना है, तो वह मात्र हिन्दुवाद अथवा इस्लाम की एकल भूमि नहीं हो सकता इसे राष्ट्रवादी आदर्शों से अभिप्रेरित विभिन्न धार्मिक समुदायों को संगठित भूमि होना चाहिए। (और उसके लिए) भारतवासियों को धर्मों की समता के उपदेश को पूर्ण हार्दिकता से स्वीकार करना चाहिए, यही रामकृष्ण विवेकानन्द का उपदेश है।

 

स्वामीजी ने पूर्व और पश्चिम को, धर्म और विज्ञान को. अतीत एवं वर्तमान को समन्वित किया और इसलिए वे महान हैं। हमारे देशवासियों ने उनकी शिक्षाओं से अभूतपूर्व आत्म-सम्मान, आत्म विश्वास एवं आत्माभिव्यक्ति को प्राप्त किया है।

 

- नेताजी सुभाष चन्द्र बोस

 

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स्वामी विवेकानन्द ने हमें मात्र अपने पौरुष के प्रति जागरूक ही नहीं बनाया वरन् हमारे दोषों और कमजोरियों को भी रेखांकित किया ... उन्होंने हमें सिखाया, "सभी में एक ही आत्मा का वास है, यदि तुम इससे आश्वस्त हो तो सभी को भाई की भाँति मानना एवं मानवता की सेवा करना। " अतः उन्होंने हमें 'दरिद्रानारायण' की सेवा में स्वयं को समर्पित करने का आह्वान किया। ईश्वर भूखों और असंख्य अनाथों में दृष्टिगोचर है एवं उनकी प्रगति एवं नैतिक उत्थान के लिए ईश्वर ने उनकी संरचना की है। स्वामी विवेकानन्द द्वारा 'दरिद्रनारायण' शब्द गढ़ा गया एवं गाँधी जी द्वारा उसे जन-जन तक पहुँचाया गया। - आचार्य विनोबा भावे

 

सम्पूर्ण शरीर में बिजली के झटके की भाँति रोमांच पाए बिना मैं उनके इन वचनों को, जो तीस वर्ष पूर्व लिखी गई पुस्तकों के पृष्ठों पर बिखरे पड़े हैं, स्पर्श नहीं कर सकता। और कैसे झोंखे एवं तूफान उत्पन्न हुए होंगे, जब वे ज्वलन्त शब्द उस नायक के अधरों से प्रस्फुटित हुए होंगे।

 

- रोमाँ रोला

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