• Sunday, 24 November 2024
सवर्णों के घर-घर दलितों की टोली का होता है स्वागत , लोगों को लांघ कर गुजरते हैं दलित

सवर्णों के घर-घर दलितों की टोली का होता है स्वागत , लोगों को लांघ कर गुजरते हैं दलित

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सवर्णों के घर-घर दलितों की टोली का होता है स्वागत , लोगों को लांघ कर गुजरते हैं दलित

बरबीघा

शेखपुरा जिले के बरबीघा के पिंजड़ी गांव में दशकों पुरानी एक प्रथा में सवर्णों के घर-घर दलितों की टोली की का स्वागत होता है। रास्ते में लोग लेटे रहते हैं और दलितों की टोली उन्हें लांघ कर पार करती है। टोली के सदस्य एक घड़ा लिए एक अगुआ रहते हैं जबकि अन्य लोग हाथों में ग्रामीण परंपरा के हथियार रखते हैं और बलि बोल का नारा लगाते हैं।

यह परंपरा 300 साल से भी अधिक पुरानी बताई जाती है। इस परंपरा में दलितों की टोली सवर्णों के घर घर जाती है। जहां उनका स्वागत होता है और दान में सहयोग राशि और अनाज भी दिया जाता है।

कई पीढ़ियों से श्रवण कुमार के खानदान मना रहा परंपरा

दरअसल यह परंपरा श्रवण पासवान के कई पीढ़ियों से चलता रहा है । जिसमें विधिवत पूजा करने के बाद दलित टोले से एक दलितों की टीम निकलती है। जिसमें 50 से अधिक संख्या में लोग होते हैं। हाथों में हथियार, भाला, लाठी, गड़ासा इत्यादि लेकर बलि बोल का नारा लगाते हुए सवर्णों के पूरे गांव में ढाई चक्कर टीम के लोग लगाते हैं।

दरवाजे पर सभी का स्वागत होता है और दान भी दिया जाता है। इसी क्रम में घर के आगे झाड़ू, लाठी, भाला इत्यादि रख देते हैं जिसे लांघ कर दलितों की टोली गुजरती है। माना जाता है कि इस परंपरा से सुरक्षा की गारंटी मिलती है और इसीलिए यह परंपरा वर्षो से चली आ रही है। वहीं कई लोग भी गलियों में लेट जाते हैं और बलि बोल की टीम इसे लांघ कर गुजरती है फिर दुर्गा मंदिर के आगे इसका समापन होता है। बलि बोल टीम के अगुवा श्रवण पासवान घड़ा वहां फोड़ देते हैं और उस घड़ा के टुकड़े को ग्रामीण ले जाकर अपने अपने मवेशियों के स्थल पर रखते हैं। बताया जाता है कि यह एक परंपरा है। रास्ते में लेटे हुए लोगों को लांघ कर जब टीम गुजरती है तो मान्यता है कि इससे बीमारी दूर होती है और लोगों को शक्ति मिलती है।

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