• Saturday, 04 May 2024
नागपंचमी पर किस तरह करते हैं  नाग देवता की पूजा, नीम के पत्ते क्यों लगाते है घरों में जानिए

नागपंचमी पर किस तरह करते हैं  नाग देवता की पूजा, नीम के पत्ते क्यों लगाते है घरों में जानिए

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  • नागपंचमी पर किस तरह करते हैं  नाग देवता की पूजा, नीम के पत्ते क्यों लगाते है घरों में जानिए
  • धान का लावा और दूध से नाग देवता की होती है पूजा
  • नीम के पत्ता से बढ़ती है प्रतिरोधक क्षमता
  • शेखपुरा: रीना सिंह की रिपोर्ट
देश भर में नागपंचमी सावन के शुक्ल पक्ष की पंचमी को मनाया जाता है परंतु बिहार के एक बड़े हिस्से में सावन के कृष्ण पक्ष की पंचमी को ही नाग पंचमी मनाने की परंपरा है। नाग पंचमी मनाने की यह परंपरा मुंगेर, लखीसराय, नवादा, जमुई, बेगूसराय, शेखपुरा, नालंदा इत्यादि जिलों में है । इस दिन नाग की विशेष पूजा की जाती है। परंपरागत रूप से नाग की पूजा की परंपरा गांव-गांव होती है।
गोबर से घर की दीवाल पर घेराबंदी
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माना जाता है कि नाग की पूजा धार्मिक आस्था की वजह से होती है। जिसमें भगवान शिव के धारण करने वाले नाग की पूजा आस्था के तौर पर की जाती है। इसी तरह से जीव जंतुओं के प्रति स्नेह को लेकर भी यह पूजा की जाती है जिसमें खतरनाक जंतु सांप की पूजा होती है। एक पक्ष भी कहता है कि सांप भी पर्यावरण में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका रखता है और पारिस्थितिकी में बदलाव को लेकर इसकी भी भूमिका है। सांप चूहे को आहार बनाता है। जिससे संतुलन बना रहता है इसलिए इसकी भी उपयोगिता सिद्ध करने को लेकर पूजा की जाती है।
घर में लगा नीम का पत्ता

धान का लावा और दूध से नाग देवता की होती है पूजा

शेखपुरा सदर प्रखंड के लोदीपुर गांव निवासी ओमकार पांडे बताते हैं कि धान का लावा और दूध से  गृहणियां परंपरागत रूप से नाग देवता की पूजा करती हैं। जगह-जगह धान का लावा बिखरा दिया जाता है। शेरपर निवासी गृहणी रीना देवी कहती हैं कि घर के बाहरी दीवारों पर गोबर से घेराबंदी की परंपरा चली आ रही है। मान्यता है कि इससे नाग देवता घर के अंदर प्रवेश नहीं करते हैं। इस दिन कई गांवों में नाग देवता के मंदिर विषहरी स्थान में भी परंपरागत पूजा का आयोजन होता है। वहीं अरियरी प्रखंड के बेलछी गांव निवासी बुजुर्ग मुंद्रिका सिंह कहते हैं कि नाग देवता की पूजा, नीम के पत्ते का प्रयोग और कबड्डी खेलने की परंपरा गांव-गांव है।

नीम के पत्ता से बढ़ती है प्रतिरोधक क्षमता

नाग पंचमी की सुबह खाली पेट में नीम के पत्ते को पीसकर अथवा नीम के पत्ते को चबाकर ग्रहण करने के परंपरा है। इसको लेकर बरबीघा के मालदह प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र के आयुष चिकित्सक डा जेके प्रियदर्शी कहते हैं कि यह रक्तशोधक, प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने और शीतलता प्रदान करती है। बरसात में अनेक तरह के संक्रमण फैलने का खतरे को नीम के पत्ते के से कम किया जा सकता है। नीम के पत्तों को अत्यधिक गुणकारी माना गया है। पत्तों को घरों में लगाने की परंपरा सांप के घर में प्रवेश को रोकने के लिए भी मान्यता के अनुसार की जाती है। एक मान्यता यह भी है कि घरों में नीम के पत्ते होने से पर्यावरण और हवा साफ सुथरा  हो जाता है जबकि कीट पतंगे भी घर में प्रवेश नहीं करते हैं। गांव में सांप के काटने पर झाड़-फूंक के लिए नीम के पत्ते का ही प्रयोग करने की परंपरा रही है। ओझा गुनी के द्वारा झाड़-फूंक में नीम के पत्ते के सहारे ही इसे किया जाता है। इसलिए नीम के पत्ते की उपयोगिता हर तरह से है।
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