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                शेखपुरा में पराली जलाने का मुद्दा: प्रशासन मौन, पर्यावरण संकट गहराया
बिहार के शेखपुरा जिले में इन दिनों धान की पराली जलाने की घटनाएं तेजी से बढ़ रही हैं। जिले के सभी प्रखंडों में किसान खुलेआम पराली जला रहे हैं, जिससे पर्यावरण पर गंभीर असर पड़ रहा है। स्थिति इतनी भयावह हो गई है कि हाल ही में शेखपुरा बिहार में वायु गुणवत्ता सूचकांक (AQI) में सबसे प्रदूषित जिला बनकर सामने आया।

AQI में शेखपुरा की स्थिति चिंताजनक
शेखपुरा में AQI का स्तर खतरनाक रूप से बढ़ गया है, जो 350 से ऊपर तक पहुंच गया है। यह स्थिति ‘गंभीर’ श्रेणी में आती है, जिससे सांस लेने में कठिनाई, हृदय रोग और अन्य स्वास्थ्य समस्याएं बढ़ने का खतरा है। विशेषज्ञों का कहना है कि पराली जलाना इस बढ़ते प्रदूषण का प्रमुख कारण है।
अधिकारियों की उदासीनता
हालांकि पराली जलाने पर रोक लगाने के लिए कड़े कानून और जुर्माने का प्रावधान है, लेकिन शेखपुरा में कृषि विभाग के अधिकारियों की निष्क्रियता ने इस समस्या को बढ़ा दिया है। जिले के किसी भी प्रखंड में पराली जलाने वालों पर अब तक कोई जुर्माना नहीं लगाया गया है। अधिकारी मौन हैं, और फसल अवशेष प्रबंधन की दिशा में कोई ठोस कदम नहीं उठाए जा रहे हैं।
कृषि सलाहकारों की विफलता
सरकार द्वारा नियुक्त कृषि सलाहकारों का काम किसानों को पराली प्रबंधन के वैकल्पिक उपाय सुझाना और उन्हें जागरूक करना है। जलाने पर विभाग को रिपोर्ट देना है। लेकिन दबंग के डर या दबाव के कारण वे सही रिपोर्ट नहीं दे रहे हैं और अपनी जिम्मेदारियों से पीछे हट रहे हैं।
पराली जलाने से होने वाले खतरे
 
                                
                                
                                                1. वायु प्रदूषण: पराली जलाने से हवा में हानिकारक गैसें और पीएम 2.5, पीएम 10 जैसे कण बढ़ जाते हैं।
2. मिट्टी की उपजाऊ शक्ति में कमी: आग से खेत की मिट्टी की गुणवत्ता खराब होती है।
3. स्वास्थ्य समस्याएं: प्रदूषित हवा से सांस, फेफड़े और दिल की बीमारियां बढ़ रही हैं।
4. जलवायु पर असर: ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन से ग्लोबल वॉर्मिंग में योगदान होता है।
समाधान के उपाय
1. जुर्माने की सख्ती: पराली जलाने वालों पर तत्काल जुर्माना लगाया जाए।
2. जागरूकता अभियान: किसानों को पराली जलाने के नुकसान और वैकल्पिक उपयोग, जैसे बायोगैस, खाद निर्माण या मशीनों का उपयोग करने के लिए प्रेरित किया जाए।
3. सरकारी सहयोग: फसल अवशेष प्रबंधन के लिए उपकरण और सब्सिडी दी जाए।
4. स्थानीय निकायों की भागीदारी: पंचायत स्तर पर निगरानी और नियंत्रण के लिए विशेष समितियां बनाई जाएं।
 
            
            
                                    
                 
            
            
                                    
                 
            
            
                                    
                 
            
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