• Sunday, 24 November 2024
देश भक्ति बेचने की चीज नहीं है.. स्वतंत्रता सेनानी लाला बाबू की जयंती पे विशेष

देश भक्ति बेचने की चीज नहीं है.. स्वतंत्रता सेनानी लाला बाबू की जयंती पे विशेष

DSKSITI - Small

अरुण साथी बरिष्ठ पत्रकार के ब्लॉग चौथाखंभा से साभार

आज उस महान स्वतंत्रता सेनानी श्रीकृष्ण मोहन प्यारे सिंह उर्फ लाला बाबू की जयंती है जिन्होंने स्वतंत्रता सेनानी का पेंशन यह कहते हुए ठुकरा दी थी कि ‘‘ देश भक्ति बेचने की चीज नहीं है, मैंने जेल में यंत्रणाएं इसलिए नहीं सही थी कि कभी इसका दाम बसूलूंगा।’’ गांधी जी के सच्चे भक्त वही थे और गांधीवाद को अपने जीवन में उतार कर सादगी और जनसेवा को जीवन का मूल बना लिया।

वे अनगिनत छात्रों को पढ़ाई के लिए प्रतिमाह निश्चित राशि देते थे और जब उनके शुभचिंतकों ने उनसे एक ट्रस्ट बना कर ऐसा करने की बात कही तो वे इसका विरोध करते हुए बोले ‘‘यही षड़यंत्र बनाते है आपलोग। मैं उपकार की दुकान खुलबाउं और यश बटोरू! कैसे सोंच लिया आप सब ने यह सब। मुझे अपने तरह से जीने दिजिए।’’
उनके द्वारा बरबीघा का श्रीकृष्ण रामरूची कॉलेज सहित पूरे बिहार में कई हाई स्कूल और अस्पताल की स्थापना की गई। आज उनके द्वारा स्थापित श्रीकृष्ण रामरूची कॉलेज का जो हाल है निश्चित ही उनकी आत्मा रोती होगी, क्यांेकि वे कहते थे ‘‘ मेरे मरने के बाद मेरी लाश फेंक दी जाय, मुझे दुख नहीं होगा। उसे कुत्ते ले जायें, मुझे शोक नहीं होगा पर यदि मेरी यह प्यारी संस्था लड़खड़ा जायेगी तो मरणोपरांत भी मेरी आत्मा को शांति नहीं मिलेगी।’’
लाला बाबू ने अपनी सारी संपत्ति अपने भाई को दान में दिया और राज्य सभा सदस्य रहकर भी फकीर ही रहे और अंतिम समय में उनकी मुफलिसी के किस्से सुन कर आंखों से आंसू आ जाते है। कैसे कोई ऐसे दधीची के लिए निष्ठुर हो सकता है? खैर लाला बाबू आज भी इसलिए ही अमर है। नमन है उस सच्च संत को..

लाला बाबू को बरबीघा का दधीचि कहा जाता है।

अंग्रेजों से लड़ाई लड़ने में अग्रणी रहने वाले महान स्वतंत्रता सेनानी, शिक्षाविद श्री कृष्ण मोहन प्यारे सिंह उर्फ लाला बाबू की आज जयंती विभिन्न शैक्षणिक और सामाजिक संस्थानों के द्वारा धूमधाम से मनाई जाएगी। लाला बाबू को बरबीघा का दधीचि कहा जाता है। इन्होंने दर्जनों शैक्षणिक संस्थानों की स्थापना की। समाज सेवा को प्रथम कर्तव्य मान निभाते थे। लाला बाबू स्वतंत्रता के आंदोलन में बढ़ चढ़ कर हिस्सा लिया और अंग्रेजों के दांत खट्टे करते रहे।

लाला बाबू का जन्म 4 जनवरी 1901 को बरबीघा प्रखंड के तेउस गांव में हुआ था। उनके पिता नाम द्वंद बहादुर सिंह था। गांधी जी के आह्वान पे पढ़ाई छोड़ आज़ादी की लड़ाई में कूदे 1911 में बी एन कॉलेजिएट हाई स्कूल से इन्होने मैट्रिक की परीक्षा पास की तथा बीएन कॉलेज में नामांकन कराया। पुनः महात्मा गांधी के आह्वान पर स्वतंत्रता संग्राम में कूद पड़े। 1928 में पुनः बीएन कॉलेज में वकालत की पढ़ाई प्रारंभ की। लाला बाबू ने 1933 में मुंगेर जिला परिषद के सदस्य चुने गए। 1948 में मुंगेर जिला परिषद के उपाध्यक्ष बने। 1950 में उपाध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया।

बरबीघा के पहले विधायक

बरबीघा के पहले विधायक रहे 1952 से 1957 तक बरबीघा विधानसभा क्षेत्र के पहले विधायक रहे। जबकि 1957 से 1958 में 1 वर्ष तक राज्यसभा के सदस्य रहे। 1958 से 12 वर्षों तक लगातार बिहार विधान परिषद के सदस्य के रूप में लाला बाबू ने अपनी सेवा प्रदान की। 1955 से 1960 तक बिहार विश्वविद्यालय के सीनेट एवं सिंडिकेट सदस्य रहे। 1961 से 1971 तक लगभग 10 वर्षों तक भागलपुर विश्वविद्यालय के सिंडिकेट के सदस्य रहे। कई बार अंग्रेजों ने जेल में डाला | लाला बाबू अंग्रेजों से लोहा लेते हुए कई बार जेल गए। 1930 में लगभग 5 महीने तक जेल में रहे। जबकि 1932 में 6 माह अंग्रेजों ने जेल में रखा। 1941 में 4 महीने, 1942 में 6 महीने और 1943 में 1 वर्ष 5 महीने तक अंग्रेजों ने लाला बाबू को कैद करके रखा।

DSKSITI - Large

दर्जनों शैक्षणिक संस्थान खोले

लाला बाबू ने कई शैक्षणिक संस्थानों की स्थापना भी की जिसमें आर डी कॉलेज शेखपुरा, के के यस कॉलेज जमुई, के के एस कॉलेज लखीसराय, गोड्डा कॉलेज, देवघर कॉलेज, श्री कृष्ण राम रुचि कॉलेज बरबीघा, उच्च विद्यालय बरबीघा, उच्च विद्यालय कटारी, उच्च विद्यालय मालदह, उच्च विद्यालय बभनबीघा इत्यादि प्रमुख है। 9 फरवरी 1978 को लाला बाबू का निधन हो गया। अपने सच्चे सपूत को बरबीघा की धरती नमन करती है।

new

SRL

adarsh school

st marry school

Share News with your Friends

Comment / Reply From