• Sunday, 24 November 2024
बच्चों को पहाड़ा कहां तक रटवाया जाय, सवैया और ड्योढ़ा भी याद कराया जाए: एक शिक्षक का विमर्श

बच्चों को पहाड़ा कहां तक रटवाया जाय, सवैया और ड्योढ़ा भी याद कराया जाए: एक शिक्षक का विमर्श

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सुधांशु शेखर
बच्चों को पहाड़े कहां तक रटवाया जाय, यह विमर्श का विषय है। सामान्य तौर पर हम 20 से कम पर नहीं रुकते और कभी-कभी तो 30 पर भी पहुंचा देते हैं। अब सवाल यह है कि 30 ही क्यों ? 40, 50 या 60 क्यों नहीं ? आखिर कुछ तो इसका सर्वमान्य लिमिट हो !
लोग तो इतने पर भी संतुष्ट नहीं होते। अपने फ्लॉप अकैडमिक कैरियर का शानदार मॉडल प्रस्तुत करने का अनूठा अवसर होता है यह जब वे यह बताते गर्व महसूस करते हैं कि हमलोग तो सवैया और ड्योढ़ा भी याद करते थे। हमारे इलाके में गढ़ा भी खूब सिखाया जाता था।
इन सब चर्चाओं का सार यह है कि ऐसी रटंत विद्या प्रणाली में पाठ्यक्रम अनंत होता है। ऐसे में एक शिक्षक के रूप में इसकी लिमिट तय करना आपकी स्वयं के समझ पर निर्भर करता है। अगर बच्चे दस तक के पहाड़े रट लेते हैं तो क्या वे 11, 12 या 18, 28, 68 से किसी संख्या को गुणा नहीं कर सकते ? आप बच्चों को अधिक-से अधिक पहाड़े रटा कर कैलकुलेशन में लगने वाले समय को कुछ हद तक बचा सकते हैं, पर क्या इस बात का हमने कभी आंकलन किया कि ऐसा करने में बच्चों का जितना महत्वपूर्ण वक़्त और जितनी ऊर्जा खर्च हुई, फायदा उस अनुपात में नहीं होता। 
इतनी ऊर्जा खर्च कर आप बच्चों को अन्य कई महत्वपूर्ण बातें बता सकते हैं, याद करा सकते हैं। इतने मेहनत में बच्चों के अंग्रेजी के शब्द भंडार में अच्छी वृद्धि हो सकती है, जो अधिक महत्व का होगा। हिन्दी में पहाड़े तो फिर भी लयबद्ध हुआ करते थे, पर इंग्लिश में इसे याद करना और उन्हें याद रखना दुनिया के कुछ चुनिंदा मुश्किल कामों में से एक है।
हमारी अध्यापन प्रणाली का सबसे बड़ा दोष है कि एक शिक्षक के रूप में हम कट्टर पारंपरिक हो जाते हैं। हम तथ्यों की जानकारी बाद में देते, परिभाषा पहले रटवाते हैं, कांसेप्ट बाद में देते और फॉर्मूला पहले रटवाते हैं। बातें कई हैं और इन तमाम बातों का सार यही है कि एक शिक्षक के रूप में आप अपने अंदर परंपराओं को तोड़ने की हिम्मत विकसित करें। ऐसी प्रणाली विकसित करें जो बच्चों को तोताराम बनने से रोके।
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…विमर्श हेतु !!!
लेखक बरबीघा के प्रसिद्ध डिवाइन लाइट स्कूल के प्राचार्य है। आलेख उनके FACEBOOK  से साभार
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