• Thursday, 21 November 2024
यहां दलितों की टोली के आगे लेट जाते है भूमिहार, बलि बोल का लगता है नारा

यहां दलितों की टोली के आगे लेट जाते है भूमिहार, बलि बोल का लगता है नारा

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यहां दलितों की टोली के आगे लेट जाते है भूमिहार, बलि बोल का लगता है नारा

 

शेखपुरा

 

देश में जातीय गणना और अगड़े , पिछड़े, दलित की राजनीति को लेकर वोट बैंक साधने के लिए कड़ा संघर्ष लगातार होता रहा है ।

 

 

वर्तमान में यह राजनीतिक गर्म है। ऐसे समय में शेखपुरा जिले बरबीघा के पिंजड़ी गांव की की परंपरा अगड़े, पिछड़े और दलितों की राजनीति के भेदभाव को आगे करने वालों के मुंह पर तमाचा है।

 इस गांव में दलित जाति के लोग भूमिहार सहित अन्य जातियों के घरों के आगे से निकलते हैं।

 

लोग इसे शुभ मानते हैं । टोली के आगे कोई झाड़ू , कोई लाठी , कोई भला, कोई अन्य हथियार भी रखता है ।

 

लोगों की मान्यता है कि इससे शुभ होता है । वहीं यह भी मान्यता है कि इस गुजरती हुई टोली के आगे कोई बीमार यदि लेट जाए तो उसका भी शुभ होता है । ऐसे में बड़ी संख्या में बच्चे और बड़े टोली के आगे लेट जाते हैं और टोली का जो मुख्य पुजारी इसे लांघ कर आगे बढ़ता जाता है ।

 

 

इस प्रथा को बलि बोल कहते हैं। एक घड़ा को टोली का मुख्य पुजारी लेकर आता है और इसे अगड़ी जाति के भूमिहार टोला में निश्चित जगह पर आकर फोड़ दिया जाता है।

 

उसके टुकड़े लूटने के लिए आपाधापी होती है । इस टुकड़े को मवेशियों के लिए काफी शुभ माना जाता है।

 

 

 उसे अपने मवेशी रखने वाले जगह पर लोग ले जाकर रखते हैं। नवमी के दिन यह परंपरा की जाती है।

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 इसी परंपरा के तहत शुक्रवार को बरबीघा के पिंजडी गांव में पुजारी श्रवण पासवान के द्वारा बलि बोल की टोली निकाली गई। गांव में भ्रमण किया गया।

 

 जगह-जगह बच्चे, बड़े लेटे हुए रहे और उसके ऊपर से लांघ कर पुजारी बलि बोल प्रथा के तहत गुजर गए। 

 

इसे स्वास्थ्यवर्धक मानने की परंपरा है । तीन सौ साल पुरानी इस परंपरा को लेकर ग्रामीण अजीत कुमार छोटू , कौशल किशोर, प्रभात कुमार इत्यादि ने बताया कि यह परंपरा काफी पुरानी है।

 

 दलित जाति से जुड़े लोग भूमिहार जाति के टोले में आते हैं । अन्य जातियों के टोले में भी जाते हैं। कहीं कोई टकराव नहीं होता।

 

 

 सभी लोग अपनी इच्छा से रास्ते में लेट जाते हैं और उसके ऊपर से टोली का मुख्य पुजारी गुजरता है। इस दौरान बलि बोल का जमकर नारा लगाया जाता है।

 

फिर घड़ा को लाकर फोड़ा जाता है। इसे काफी शुभ माना जाता है। इस परंपरा को तीन सौ साल पुराना माना गया है। देवी दुर्गा मंदिर के आगे घड़ा फोड़ने की परंपरा है।

 

उसके टुकड़े को लेने के लिए लोग आपाधापी करते हैं। इसको भी शुभ माना जाता है। हालांकि कुछ लोग इसे अंधविश्वास में मानते हैं।

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