दक्षिण भारत का तंजौर पेंटिंग बिहार में बना दंपत्ति बनी मिशाल
दक्षिण भारत का तंजौर पेंटिंग बिहार में बना दंपत्ति बनी मिशाल
शेखपुरा
शेखपुरा मन में हो कुछ करने की तमन्ना तो आसमा भी कम पड़ जाए। उक्त कहावतों को चरितार्थ कर रहे हैं जिले के सदर प्रखंड के गुनहेशा गांव निवासी प्रवीण कुमार व उनकी पत्नी कृष्णा देवी।
दोनों मिलकर सूदूर देहात में दक्षिण भारत की प्रसिद्ध कला तंजौर पेंटिंग के माध्यम से जिले में एक अपनी पहचान कायम कर रहे है ।
प्रवीण बताते हैं कि 2005 में रोजगार कि तलाश में चेन्नई पहुंचा जहां तंजौर पेंटिंग के प्रमुख विक्रेता लोकनाथन के पास रह कर नौकरी करने लगा वहां तंजौर पेंटिंग से बने कलाकृतियों को बेचने व आपूर्ति करने का काम दिया गया। इस बीच जब भी प्रवीण को समय मिलता तो स्थानीय चित्रकारों के समीप बैठकर उस कला के बारे में जानना व समझना शुरू किया । धीरे धीरे तंजौर पेंटिंग के संबंध में सारी जानकारी ले लिया। बाजार में बेहतर मांग को देखते हुए प्रवीण का मन चित्र विक्री करने के जगह कला सीखने की इच्छा जागृत हो गई। कुछ दिनों के बाद अपनी पत्नी कृष्णा को भी चेन्नई ले जाकर उन महिला चित्रकारों के साथ हेल्पर के रुप में कार्य करने को लगा दिया।
इस बीच लगातार काम करते 13 वर्ष बीत गया और दोनों पति-पत्नी कलाकृतियां निर्माण करने की कला को सीख लिया । प्रवीण बताते हैं कि बचे समय में घर पर ही कुछ कलाकृतियां का निर्माण करना शुरू किया जिसे स्थानीय चित्रकारों ने काफी सराहा और धीरे धीरे बचे समय में घर पर चित्र बनाने का काम करने लगा।
इस बीच मार्च 18 में करोना देश में फैल गया परेशान पति पत्नी मायूसी के साथ चेन्नई से वापस अपने घर को लौट आए । लेकिन यहां किसी तरह का रोजगार नहीं रहने के कारण दोनों परेशान रहने लगे । इस बीच पत्नी कृष्णा को जीविका से जोड़ने को कहा दो-तीन माह गुजरने के बाद जीविका के माध्यम से कृष्णा को 30 हजार का ऋण उपलब्ध कराया गया। अब पति पत्नी दोनों मिलकर चेन्नई से सामान मंगवाकर चित्र निर्माण का कार्य शुरू कर दिया । जब कलाकृतियां बनकर तैयार हो गया तो विक्री करने का प्रयास किया लेकिन स्थानीय स्तर पर विक्री नहीं होने के कारण दोनों हतोत्साहित होने लगे ।
इसी बीच प्रवीण ढांढस बांधते हुए अन्य शहरों में विक्री करने की योजना बनाई इस बीच जीविका के द्वारा पटना ,रांची व सरस मेले दिल्ली में निशुल्क स्टॉल उपलब्ध कराया गया । तीनों मेले में चित्र विक्री व डिमांड पर दोनों काफी उत्साहित होकर पुनः चित्र बनाने का कार्य शुरू कर दिया । कृष्णा बतातीं है कि जीविका के द्वारा उपलब्ध कराए गए ऋण को समय के अनुरूप भुगतान कर दिया । लेकिन आर्थिक मजबूरी से काफी परेशान चल रही हूं ।
पत्नी कृष्णा बतातीं है कि दिल्ली सरस मेले मे बेहतर डिमांड रहा और वहां एडवांस में कई चित्रों का आर्डर भी मिला जिसे निर्माण कर आपूर्ति भी कर दिया गया है । उन्होंने कहा कि अगर सरकारी स्तर पर 5 लाख तक ऋण मिले तो इस कला को बिहार में एक अलग पहचान दिलाने का काम करूंगी।
क्या है तंजौर पेंटिंग और कहां इसकी उत्पत्ति हुई
तंजौर कला की उत्पत्ति विजयनगर काल (1500-1600 ईस्वी) के भित्ति चित्रों से हुई है। तंजौर कला को समृद्ध, सपाट और चमकीले रंगों द्वारा चित्रित किया जा सकता है। सरल प्रतिष्ठित रचना, पेंटिंग के काम में चमचमाती 22 कैरेट सोने की पन्नी का उपयोग और तंजौर पेंटिंग्स को ज्यादातर अर्ध-कीमती पत्थरों का उपयोग करके सजावट, संरचनाओं आदि को उजागर करने के लिए चमक लाने के लिए सजाया जाता है। 22 कैरेट सोने और असली तंजौर पत्थरों का उपयोग किया जाता है । पेंटिंग में चमकती चमक और सोने की पत्तियों की चमक हमेशा बनी रहती है।
चित्रकारों को सरकार का सकारात्मक सहयोग मिले तो
बिहार में मधुबनी पेंटिंग, टेराकोटा शिल्प, टिकुली कला, सिक्की शिल्प, सुजनी कला, के बाद तंजौर पेंटिंग भी एक समृद्ध रोजगार का साधन हो सकता है ।
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