प्रेमचंद की कहानी हीरा मोती बैल वाले झूरी किसान से खास इंटरव्यू
शेखपुरा, बिहार
प्रेमचंद ने हीरा–मोती बैल और झूरी किसान के माध्यम से किसानों का मवेशी प्रेम, जानवरों की संवेदना को बहुत ही बारीकी से रच दिया था। समय के साथ सब कुछ बदल गया।
आधुनिक युग से निकलकर दुनिया डिजिटल और कृत्रिम बुद्धिमत्ता के युग में पहुंच गई। कई जगह मशीनों ने आदमी और जानवर, सभी को अलग–थलग कर दिया।
वैसे में बैल से खेती का स्थान ट्रैक्टरों ने ले लिया। ऐसे में कोई किसान बैल से खेती करता दिख जाएं तो कौतूहल होना स्वाभाविक है। और यदि कोई किसान झूरी के रूप में मिले तो यह आश्चर्य का विषय हो जाता है ।
ऐसे ही 70 वर्षीय झूरी रूपी एक किसान सकलदेव राउत, शेखपुरा जिला के बरबीघा प्रखंड के गंगटी गांव में मिले । एक जोड़ी हीरा–मोती बैल से खेत जोत रहे थे। फोटो खींचने पर आह्लाद और गर्व से कहा, पांच बीघा धान और तीन बीघा भिट्ठा (सब्जी खेत) ईहे बैल से खेती करो ही सर, ई महादेव हथिन।
उत्सुकता बस जब कुरेदा तो किसान ने जानवरों के साथ सहजीवन, गो वंश से प्रेम, प्राकृतिक खेती, प्राकृतिक खान पान और प्राकृतिक जीवन जीने की कला का अपना अनमोल अनुभव सुनाया।
सकलदेव राउत ने कहा कि इलाके में अब कोई बेल से खेती नहीं करता। मैं जब तक जीवित हूं , करूंगा ।
ट्रैक्टर से खेती करने में छोटे किसानों को बहुत परेशानी और खर्च होता है । मेरा एक बैल बूढ़ा हो गया तो उसे खरीदने कसाई आया। 75 सौ दे रहा था। मैंने भगा दिया।
कहा, बैल महादेव हैं। पता नहीं उस जन्म में मेरा कौन होंगे? यह मेरी गोरी ( बथान ) में ही मरेगा।
कहा कि ट्रैक्टर से खेती से अधिक लाभ बैल से है । बैल छोटे खेत भी बढ़िया जोत देता है। मैं खेत में बहुत कम उर्वरक उपयोग करता हूं। कीटनाशक बिल्कुल ही नहीं देता, तब भी उपज अच्छी होती है।
कहा कि उनके गांव में किसान शाम में जहरीला कीटनाशक और दवा देते हैं। सुबह में सब्जी तोड़कर बेच लेते हैं। यह जहर हम सभी खा रहे हैं और बीमारी का घर बन रहा है । कहा कि वह अपने मवेशी को भी घास अधिक खिलाते हैं। जिससे जड़ी बूटी उनके शरीर में जाता है।
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