• Friday, 01 November 2024
विश्व संगीत दिवस पर खास: हनुमान चालीसा उठाया तो पन्ना पलटते ही लिखा था Because my grandfather got well

विश्व संगीत दिवस पर खास: हनुमान चालीसा उठाया तो पन्ना पलटते ही लिखा था Because my grandfather got well

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विश्व संगीत दिवस पर खास: हनुमान चालीसा उठाया तो पन्ना पलटते ही लिखा था Because my grandfather got well 
 
प्रियदर्शन शर्मा : वरिष्ठ पत्रकार
 
 
 
दुर्भाग्य से जन जन के जीवन के हर हिस्से में बसे राम को आज कुछ लोग/संगठन इस प्रकार पेश करने में लगे हैं जो राम के नाम पर घृणा, हिंसा, द्वेष बढ़ाते हैं। जीवन का सुर संगीत सुरीला बना रहे तभी तो ईश्वर का आशीष दिखेगा। हनुमानजी से मैंने भी यही मांगा संगीत के सात सुरों सा समाज को सरगम सा सुरीला बनाए रखें प्रभु !
 
 
विश्व संगीत दिवस पर आज अजब संयोग हुआ। पटना में जब महावीर मंदिर से सुंदरकांड के दोहे के बोल कानों में मिश्री से घुले तो सहसा मन भी महावीर जी के दर्शन को मचल उठा।
ऐसे भी संगीत और स्वर को दुनिया में सबसे बड़ी सम्मोहक शक्ति कहा गया है। इसलिए सद्, चित से आनंद की ओर उठती लौ की अलौकिकता का नाम संगीत दिया गया है। ऐसे गीत संगीत में मनुष्य क्या पशु-पक्षियों और जीव-जंतुओं को मुग्ध कर देने की क्षमता रहती है। कुछ ऐसी ही स्वर साध्यता है हमारे रामचरित मानस जैसे ग्रन्थों में।
 
उन्हें सुनते, बांचते हुए एक जादू जैसा असर है। एक ऐसी ऋचा जिस पावस की लाजवंती संध्याओं को श्वेत-श्याम मेघ मालाओं से नन्हीं-नन्हीं बूंदों का रिमझिम-रिमझिम राग सुनते ही कोयल कूक उठती हैं। पपीहे गा उठते हैं। मोर नाचने लगते हैं तथा मजीरे बोल उठते हैं।
 
 लहलहाते हुए खेतों को देखकर किसान आनंद विभोर हो जाता है और वह अनायास राग अलाप उठता है। यही वह समय होता है जबकि प्रकृति के कण-कण में संगीत की सजीवता विद्यमान होती है। इन चेतनामय घडिय़ों में प्रत्येक जीवधारी पर संगीत की मादकता का व्यापक प्रभाव पड़ता है। फिर चाहे उसे आप जो भी नाम दें। गीत, भजन, स्तोत्र, मंत्र, शास्त्रीय, हिंदुस्तानी, कर्नाटक, सूफी या पॉप- सबका जादू एक सा ही छाता है।
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संगीत सुनना हृदय में झरता है। संवेदनाओं में उतरता है।इसलिए तो स्वर साधना एक तरह से ईश्वर साधना है। राग-विराग से अनुभूति घनीभूत हो जाती है।
और ऐसे हिंदुस्तान में जहां जन्म पर सोहर, मरण पर निर्गुण गाया जाता हो। जहां तीज, त्योहार ही नहीं सुबह से रात के हर पहर में , हर मौसम के लिए अलग अलग गीत-संगीत वहां ईश्वर की भक्ति बिना गीतों के कैसे पूरी होगी। तभी तो रामचरित मानस की स्वीकार्यता सर्वाधिक है क्योंकि यह गीत की शैली में रचित है। हिंदुस्तान की इसी गायन शैली का प्रभाव रहा कि इस्लाम भी यहां सूफी संतों के मार्फ़त बढ़ा जबकि कई इस्लामी देशों में सूफी गायन नहीं होता है।
 
और राम तो हमारे रग रग में बसते ही हैं। तभी तो आक्रांताओं के कई हमलों को झेलने के बाद भी आम जनमानस में राम कालातीत रूप में हैं। सुख, उन्नति में भी राम साथ रहते हैं और गम, पीड़ा, विकार भी राम संग ही दूर होता है। इसी राम का नाम लेकर लोग आजकल राजनीति भी चमका रहे हैं ।
 
खैर महावीर मंदिर में हनुमान चालीसा पढ़ने के लिए पुस्तक उठाया तो पन्ना पलटते ही लिखा था ... Because my grandfather got well . किसी के दादा स्वस्थ हुए होंगे तो हनुमान जी से मांगी उसकी मनौती पूरी हुई होगी। दुर्भाग्य से जन जन के जीवन के हर हिस्से में बसे राम को आज कुछ लोग/संगठन इस प्रकार पेश करने में लगे हैं जो राम के नाम पर घृणा, हिंसा, द्वेष बढ़ाते हैं। जीवन का सुर संगीत सुरीला बना रहे तभी तो ईश्वर का आशीष दिखेगा। हनुमानजी से मैंने भी यही मांगा संगीत के सात सुरों सा समाज को सरगम सा सुरीला बनाए रखें प्रभु !
 
वरिष्ठ पत्रकार के फेसबुक से साभार आलेख प्रकाशित । लेखक मोकामा निवासी हैं एवं पटना में न्यूज़ फॉर नेशन के लिए पत्रकारिता कर रहे हैं।
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