सामाजिक तानों से भी नहीं रुकी संध्या और खेलते खेलते बन गई दरोगा
सामाजिक तानों से भी नहीं रुकी संध्या और खेलते खेलते बन गई दरोगा
बरबीघा, शेखपुरा
पढ़ोगे लिखोगे बनोगे नवाब,
खेलोगे कूदोगे होगे खराब।
देहात में इस मुहावरे को अक्सर लोगों के मुंह से सुनना पड़ता है । यह मुहावरा अब झूठा साबित हो रहा है। बिहार सरकार के द्वारा अभी मेडल लाओ और नौकरी पाओ नियम बनाकर इसे और झूठा साबित कर दिया। अब खेल-खेल में दरोगा और डीएसपी जैसे बड़े अधिकारी भी बन जा सकता है।
ऐसी ही एक बेटी बिहार सरकार में दरोगा बन गई। यह बेटी शेखपुरा जिला के बरबीघा नगर क्षेत्र के बुल्लाचक मोहल्ला निवासी संध्या है।
सात बहन और तीन भाई में बृजमोहन मिस्त्री और सुशीला देवी की सबसे छोटी संतान संध्या की पढ़ाई आर्थिक तंगी में जैसे तैसे सरकारी स्कूल में हुई।
पिता लोहार हैं। लोहे के काम में मजदूरी कर परिवार का भरण पोषण करते गए।आठवीं में पढ़ाई के दौरान संध्या की दोस्ती एथलीट की तैयारी करने वाली बरबीघा छोटी संगत की नीतू से हुई ।
बस वहीं से आगे जाने का मार्ग मिल गया। खेल शिक्षक विशाल कुमार ने इसके हौसले को देखा तो उसके मदद के लिए आगे बढ़े बारह वर्ष की आयु से रग्बी की तैयारी कर आगे रग्बी की श्रेष्ठ खिलाड़ी बनी ।
2015 से 2023 तक प्रदेश के लिए पंद्रह मैच खेले। जहां से स्वर्ण पदक विजेता बनी।
मां सुशीला ने बताया कि पहले समाज के लोग काफी ताना देते थे। पहली बार जब दैनिक जागरण में बेटी की फोटो छपी थी तो तरह तरह की बाते करने वाले और बेटी को बढ़ावा नही देने जैसी बात करने वाले लोगों के मुंह पर ताला लग गया। घर के सभी सदस्यों ने पूरा समर्थन उसे दे दिया। आज अपने फैसले पर सभी खुश हैं।
संध्या बताती है कि वह जब खेल के लिए जाने लगी तो समाज के तानों का भी कष्ट झेलना पड़ा । उसकी परवाह नहीं किया।आगे बढ़ते गई । परिवार का भी सहारा मिला। मंझले भाई कहते थे कि खेलने से क्या होगा , पढ़ाई करने से नौकरी मिलेगी। परिवार का सदस्य सहयोग करते गए। आज खेलने की वजह से ही वह दरोगा बन गई।
आर्थिक रूप से कमजोर होने की वजह से उसे काफी कष्ट का भी सामना करना पड़ा परंतु उसने कभी हौसला नहीं हरा।
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