पहले पैदल मांगते थे वोट, चंदा से निकलता था चुनाव का खर्च
पहले पैदल मांगते थे वोट, चंदा से निकलता था चुनाव का खर्च
शिवकुमार:
(समाजवादी नेता के फेसबुक से साभार)
चुनाव में कितना अंतर आ गया
मुझे अच्छी तरह याद है । 77 में बरबीघा विधानसभा चुनाव में जनता पार्टी प्रत्याशी बन लड़ने मुंगेर के पूर्व सांसद रह चुके स्वर्गीय नयनतारा दास आये । उन्होंने हमलोगों के सामने छ: हजार रुपए रख दिया और कहा कि हमारे पास कूल यहीं पूंजी है ।अब जैसे आप लोग पार लगाइए ।
हम सब समझ नहीं पा रहें थे कि कैसे क्या किया जाए । नौजवान साथी हतोत्साहित हो रहें थे ।मैने बैठक बुलाया और कहा कि यहीं तो हमलोगों की परीक्षा है ।हर हाल में जीतना है ।एक वोट और एक नोट का नारा लेकर बरबीघा बाजार में निकल गये ।
बाल्टी रूपये से भर गई ।प्रयोग सफल रहा ।तोईगढ़ के मुखिया स्वर्गीय रामबिलास बाबू , साकेत बाबू , रमणीकी सिंह और बहुत से लोग कार्यकर्ताओं के लिए भोजन का प्रबन्ध कर बैलगाड़ी पर चावल ,दाल आलू ले आये ।आफिस खुल गया । तीन -चार दिन उम्मीदवार और हम सब अगल बगल के गांव पैदल ही घुमे । स्वर्गीय पंडित श्यामनंदन मिश्र बेगुसराय से सासंद चुने गये थे ,वे और समाजवादी नेता स्वर्गीय कपिलदेव बाबू ने थोड़े रूपये का इंतजाम कराया तब उम्मीदवार के लिए एक जीप का प्रबन्धन हुआ था।
बाकि साथी पैदल या साइकिल से प्रचार कार्य करते थे । विपक्ष में कांग्रेस से श्री रामेश्वर पासवान पूर्व पी डब्लू डी मिस्टर थे । उनके पास साधन की कोई कमी नहीं थी । गाड़ी पर घुमिये और होटल में खस्सी -मुर्गा तोड़िए । फिर भी नयनतारा दास अच्छे वोट से जीत हासिल किये थे । लोकशक्ति की ताकत ने जीत दिलाया था ।
खिंच खांच कर 2000ई के चुनाव तक यह चला कि जो भी उम्मीदवार हमलोगों का होता था ,उसे कार्यकर्ता के भोजन पर खर्च नहीं करना पड़ता था ।हम साथी सब मिल कर प्रबंध कर देते थे । उस समय तक बहुत सारे गांवों के साथी बुथ खर्च लेना अपना अपमान मानते थे ।वह आपसी सहयोग से व्यवस्था कर लेते थे ।
यहीं कारण था कि जब कोई साथी अपने नेता से , विधायक या सांसद से भिड़ जाता था तो उन्हें पसीना चुला देता था । कार्यकर्ता स्वाभिमानी , ईमानदार और कर्मठ होते थे । नेता को उसे आदर , सम्मान देना ही पड़ता था ।जब से राजनीति और चुनाव में असीमित धन का प्रवाह बढ़ा तबसे राजनीति मे ठीकेदार,दलाल ,महाभ्रष्ट ,चोर ,लंगपट का बोलबाला बढ़ा है ।
कोई भी राजनीतिक दल ईमानदार ,कर्मठ ,योग्य ,जनता की सेवा करने वाला उम्मीदवार नहीं खोजता है ।उसे जीताऊ उम्मीदवार चाहिए चाहें वह महाभ्रष्ट ही क्यों न हो ।छोटी सभी पार्टियां तो अब खुले आम टिकट बेचती है । कोई लाज शरम नहीं ।
संसद और विधान मंडल में अब जनता के रोजमर्रा जीवन से जुड़े सवाल नहीं उठते । संसद और विधानमंडल अब गुंगा और बहरा होता जा रहा है ।अगर यहीं हालात बना रहा तो लोकतंत्र दम तोड़ देगा । इसका सबसे बड़ा खामियाजा गरीबो को भुगतना पड़ेगा ।
इस राजनीति और चुनाव से अब कर्पूरी ठाकुर ,रामानंद तिवारी ,भोला पासवान शास्त्री ,कपिलदेव सिंह ,सूरज सिंह जैसे अनेक विभूति पैदा नहीं होगे ।उस कोख को ही बांछ बना दिया गया ।
(लेखक, 74 के जेपी आंदोलन के अगुआ रहे है। राजनीति का लंबा अनुभव रहा है।)
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