
सौ साल पुरानी श्रीराम-जानकी की प्रतिमा 'कैद', नई प्रतिमा से फिर जागी श्रद्धा –

सौ साल पुरानी श्रीराम-जानकी की प्रतिमा 'कैद', नई प्रतिमा से फिर जागी श्रद्धा –
शेखपुरा, माफो गांव से रिपोर्ट
सौ साल से भी अधिक पुरानी आस्था आज भी अदालत के दस्तावेज़ों में फंसी हुई है, जबकि गांव की धरती पर भगवान श्रीराम और माता जानकी की नई प्रतिमा को नई ऊर्जा के साथ प्रतिष्ठित किया जा रहा है।
माफो गांव के ऐतिहासिक ठाकुरबाड़ी मंदिर में इन दिनों उल्लास और उत्सव का माहौल है। मंगलवार को भव्य कलश यात्रा के साथ नई प्रतिमा की प्राण प्रतिष्ठा की शुरुआत हो चुकी है, जिसमें 151 महिलाओं ने पारंपरिक वेशभूषा में पूरे गांव की परिक्रमा कर गंगा जल से युक्त कलश लेकर मंदिर परिसर तक पहुंचीं।
परंपरा लौटी, पर पुरानी प्रतिमा अब भी पुलिस की कैद में
लेकिन इस भव्य आयोजन के बीच एक सवाल अब भी गांववालों के मन को कुरेद रहा है – भगवान अभी भी 'कैद' में क्यों हैं?
दरअसल, करीब 9 साल पहले ठाकुरबाड़ी से भगवान श्रीराम, माता जानकी और अन्य देवी-देवताओं की अष्टधातु निर्मित बहुमूल्य प्रतिमाएं चोरी हो गई थीं। गांव के ही विपिन सिंह बताते हैं कि नालंदा जिले के अस्थावां से पुलिस ने न केवल चोर को पकड़ा, बल्कि मूर्तियां भी बरामद कर ली गईं।
मगर चौंकाने वाली बात यह है कि कानूनी पेचिदगियों में चोर तो जमानत पर छूट गया, लेकिन भगवान की प्रतिमा अब भी अस्थावां थाना के मालखाना में 'कैद' है।
गांववालों ने मूर्तियों की वापसी के लिए कोर्ट में याचिका भी दाखिल की, लेकिन न्यायालय ने इसे यह कहते हुए खारिज कर दिया कि उनके पास प्रतिमाओं पर दावा करने के पर्याप्त साक्ष्य नहीं हैं।

नई प्रतिमा, नई आस –
इस न्यायिक निराशा के बावजूद माफो गांव ने हार नहीं मानी। ग्रामवासियों ने एकजुट होकर मंदिर का जीर्णोद्धार कराया, और अब नई प्रतिमा को विधिवत प्रतिष्ठित कर पुनः आस्था का दीप जलाया जायेगा।
इस पुनर्निर्माण और आयोजन में बिपिन कुमार, राजद नेता संजय कुमार, सतीश कुमार, सुजीत कुमार, संवेदक मुकुल जी, शिक्षक मृत्युंजय कुमार सहित अनेक ग्रामीणों ने योगदान दिया।
आयोजन समिति ने बताया कि आगामी 5 जून को प्राण प्रतिष्ठा का मुख्य समारोह होगा। इससे पूर्व प्रतिमा पूरे गांव का भ्रमण करेगी, ताकि हर घर में पुण्य की बौछार हो।
श्रद्धा और न्याय के बीच फंसी एक कहानी
यह कहानी सिर्फ आस्था की नहीं है, बल्कि न्याय की प्रतीक्षा की भी है। जहां गांववाले नई शुरुआत से खुश हैं, वहीं मन के किसी कोने में यह सवाल अब भी जीवित है – “क्या भगवान अपने ही मंदिर लौट पाएंगे?”




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