• Monday, 09 June 2025
इंजीनियरिंग की नौकरी छोड़ गांव में लगा दिया फैक्ट्री, पहले हंसते थे लोग अब कहते वाह..

इंजीनियरिंग की नौकरी छोड़ गांव में लगा दिया फैक्ट्री, पहले हंसते थे लोग अब कहते वाह..

stmarysbarbigha.edu.in/

इंजीनियरिंग की नौकरी छोड़ गांव में लगा दिया फैक्ट्री, पहले हंसते थे लोग अब कहते वाह..

 

शेखपुरा

 

 

यह सच्चाई है, आपदा को अवसर में बदलने की। यह सच्चाई है, जिद्द को पूरा करने की। यह सच्चाई है, गांव को गढ़ने की। यह सच्चाई है, बिहार से पलायन के कलंक की कालिख को साफ करने की। यह सच्चाई है, शेखपुरा जिले के सदर प्रखंड के मेहुस गांव के राम माधव की।

 

राम माधव ने 2013 में कोल्हापुर से टेक्सटाइल इंजीनियरिंग की पढ़ाई की। फिर सामान्यतः निजी कम्पनी में नौकरी की। उसके बाद 2019 में कोरोन ने दस्तक दी और नौकरी के साथ साथ भविष्य के सपने भी छिन गए।

 

उसके बाद राम माधव गांव आ गए। अब प्रधान मंत्री के रोजगार योजना और आपदा को अवसर में बदलने के संकल्प से प्रेरणा ली। उसके बाद अपने टेक्सटाइल इंजीनियरिंग की नौकरी से मिले अनुभव से गांव में ही सिलाई की कंपनी लगाने का संकल्प की। सरकारी सहायता से पंद्रह सिलाई मशीनों और कामगारों के साथ शुरू की गई यात्रा आज 150 मशीनों और 150 कामगारों को रोजगार दाता, डेढ़ करोड़ का वार्षिक कम्पनी टर्न ओवर वाली कंपनी बन गई। आज यहां घरेलू महिलाओं को रोजगार मिला है। हरियाणा, दिल्ली से लौट कर लोग घर में काम कर रहे।

 

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राम माधव ने बताया कि यहां बिहार के पूर्णिया, नालंदा, पटना, नवादा सहित कई जिलों के प्रशिक्षित कामगारों को रोजगार मिला है। यहां आवासीय रहकर वे पहले कामगारों को प्रशिक्षण देते है। फिर काम पर लगाते है। हालांकि गांव में कुछ मुश्किलें भी है। यहां जल्दी लोग काम छोड़ देते है। पर्व त्योहार, खेती इत्यादि के लिए छुट्टी बहुत लेते है , इससे परेशानी है।

 

 अभी यहां के लोग शुद्ध प्रोफेशनल नहीं हुए है। धीरे धीरे हो जाएंगे। बताया कि यहां 80 प्रतिशत महिलाओं को रोजगार मिला है। साथ ही बताया कि आदित्य बिड़ला कम्पनी का बड़ा सहयोग रहा जिससे वह टिक सके। शुरुआत में नुकसान हुआ। फिर बिड़ला कम्पनी में अधिकारी, नवादा जिला निवासी धर्मेंद्र कुमार से बातचीत हुई। वे बिहार को आगे बढ़ाने के संकल्प में सहयोग किया। कम्पनी से समझौता हुआ। कम्पनी ही कपड़ा, सेंपल देती है। सिल कर कम्पनी को भेज देते है। यहां कुछ मुश्किलें है। बिहार में छोटा काम करने के लिए डाय मशीन नहीं है। डाय (कपड़ा, पट्टी इत्यादि रंगने) का कम कोलकाता से कराना पड़ता है। 

 

बिजली की परेशानी के बारे में कहां की कम्पनी में सर्वाधिक खर्च जेनरेटर का है। बिजली प्रचुर नहीं है। वहीं बिजली विभाग के सहयोग पर वे चुप हो जाते है। बाद में पता चला कि बिजली विभाग कंपनी को एक ट्रांसफार्मर लगा कर नहीं दे रही। नियम कानून पढ़ाया जा रहा। गांव की बिजली से काम चल रहा।

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