जिस दिन चांद को देखना है अशुभ, उसी दिन बिहार में होती है पूजा, जानिए
जिस दिन चांद को देखना है अशुभ, उसी दिन बिहार में होती है पूजा, जानिए
प्रियदर्शन शर्मा, संपादकीय मंडल/मोकामा
चौथ का चांद तो लोग देखते भी नहीं और हम बिहारी उसे पूजते हैं। हम बिहारी हर डूबते को सहारा देने वाले हैं। शायद यही कारण है कि जहां पूरी दुनिया उगते सूरज को पूजती है वहीं हम बिहारी छठ में डूबते सूर्य को पूजते हैं। इसी तरह जहां भारत में चौथ का चांद देखना भी अशुभ माना जाता है, हम बिहारी उस रात भी चांद के टेढे मुंह को पूजकर अपनी शुभता तलाशते हैं।
खूबसूरती और शीतलता का समागम चांद अपने अहंकार के लिए भी जाना जाता है। शायद इसलिए किसी शायर ने चांद की तुलना निष्ठुर प्रेमिका से की।
चांद का अभिमान कहा जाए या अहंकार कि उसने प्रथम पूजनीय गणेश की अजीबोगरीब काया का भी उपहास उड़ा दिया था। अब भला जिस चांद की खूबसूरती का जिक्र करते लोग अपनी प्रेमिका और प्रेयसी के रूप की तुलना करते हों उस चांद को अपनी काया और चमक पर गुमान तो होगा ही। कहते हैं पहले चांद का आकार कभी घटता बढ़ता नहीं था बल्कि हर रात अपनी चांदनी से रात को रोशन करता था। लेकिन अपनी खूबसूरती के गुमान में जब चांद ने गणेश जी का उपहास उड़ाया तब गणेश जी ने चांद को श्राप दे दिया कि जा तेरी चमक ही गायब हो जाये। कहते हैं चांद ने अपनी गलती स्वीकार की और गणेश ने कहा कि जा चांद अब से हर रात तेरा आकार बदल जायेगा लेकिन मैंने तुम्हें चौथ के दिन श्राप दिया है इसलिए चौथ को लोग तुम्हें नहीं देखेंगे क्योंकि देखने वालों के लिए तुम अशुभ प्रभाव वाले बन जाओगे।
खैर गणेश जी ने उपाय भी बताया कि अगर कोई भाद्र शुक्लपक्ष चतुर्थी को चांद की पूजा करेगा तो वही चांद उसके लिए भाग्यशाली बन जायेगा। हालांकि देश के अधिकांश राज्य चतुर्थी के श्रापित चांद को अपना नहीं पाए। वे अपने यहाँ गणेश की पूजा जरूर करते हैं लेकिन चांद को भूल गए। शायद, यह बिहार का स्वभाव है कि जिसे कोई नहीं स्वीकारता उसे बिहार गले लगा लेता है। तो आज बिहार में चौठचंद्र या चकचन्दा (चौरचन) एक ऐसा त्योहार है, जिसमें चांद की पूजा बड़ी धूमधाम से होती है।
बिहार की संस्कृति में हमेशा ही प्रकृति संरक्षण और उसके मान-सम्मान को बढ़ावा दिया जाता रहा है। यही कारण है कि छठ, संक्रांति और चौठचंद्र जैसे त्योहार हम मनाते हैं। ये पर्व हम बिहारियों की सभ्यता , संस्कृति, भेदभाव विहीन पुरातन परम्परा , प्रकृति के प्रति निष्ठा, आस्था और आराध्य के प्रति समर्पण , पवित्रता एवं स्वच्छता का समागम है। छठ और चौठचंद्र हमें हमारी मिट्टी से जोड़कर रखता है ।
पूजा के करबै ओरियान गै बहिना,
चौरचन के चंदा सोहाओन।
तो आज गणेश चतुर्थी के साथ पूजा जाए श्रापित चांद को।
लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं। बेंगलुरु में हिंदी दैनिक में काम करते हुए संप्रति पटना में कार्यरत हैं। आलेख फेसबुक से साभार
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