• Friday, 29 March 2024
इमरजेंसी का आतंक :  जेल में रहने वाले एक मीसा कैदी और उनके परिवार  का दर्द, क्यों जार्ज फर्नांडिस को थी फांसी चढ़ाने की तैयारी 

इमरजेंसी का आतंक :  जेल में रहने वाले एक मीसा कैदी और उनके परिवार  का दर्द, क्यों जार्ज फर्नांडिस को थी फांसी चढ़ाने की तैयारी 

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इमरजेंसी का आतंक :  जेल में रहने वाले एक मीसा कैदी और उनके परिवार  का दर्द, क्यों जार्ज फर्नांडिस को थी फांसी चढ़ाने की तैयारी

शिवकुमार / समाजवादी नेता
आज सुबह आन्दोलन के साथी भगवान दास , गोपाल ,और मुंगेर अशोक सिंह ने कांल कर मेरा हाल चाल लिया और आन्दोलन की यादे ताजा की । अशोक भाई से ढेर सारी बातें हुई । आन्दोलन के बहुत सारे साथी तो अब जीवित भी नहीं हैं । आज की नई पीढ़ी को उस आन्दोलन और इमर्जेंसी की जानकारी कम ही है । हमारे जैसे हजारो लोगों ने उस आन्दोलन मे 74 से 77 मार्च के बीच कुख्यात कानून मीसा और डी आई आर में दो साल से भी लम्बा जेल जीवन जिया था । मेरी बहन ,पिता , मेरे चाचा , मेरे मित्रो की जेल में भेजी गई चिठ्ठी और मेरे जेल से भेजे गये पत्र पढ़ हमें रोमांच से भर देता है । पिता जी के एक पत्र ने मुझे भावुक कर दिया जिसमें उन्होंने लिखा है कि हमारा कसुर यहीं हैं कि हम तुम्हारे बाप हैं । मुझे भी जेल भेजने की तैयारी है प्रशासन की । हम छुट्टी लेकर भागे हुए है । बैठे क्या करते अब पी एच डी का शोध कर रहें । तुम्हारी मां ,बहन ,भाई सबको बरबीघा छोड़ना पड़ा । हम अपना हाल- मुकाम (पता) भी नहीं बता सकते । हमारे मां -पिताजी और भाई -बहन को शान्ति निकेतन (बंगाल) में गुप्तरूप से पुरी इमरजेंसी रहना पड़ा था ।
आज हमारे आलमारी के तहखाने में पड़े इन पत्रो को जब मैं पढ़ रहा था तो एक एक बातें और घटनाएं आंखों के आगे चलचित्र की तरह घुम रहा था । इन पत्रो में एक इतिहास छिपा हैं । प्रख्यात समाजवादी नेता मधुलिमय ,कपिलदेव बाबू , त्रिपुरारी बाबू , शिवनंदन झा ,लाडली मोहन निगम के भी पत्र शामिल है । कुछ पत्र तो जेल में के अंदर ड्युटी करने वाले सिपाही ,अन्य लोगो से प्राप्त होता था और हम जबाब भी इनके मार्फत दिया करते थे । अनेक साथी जो डाक से पत्र भेजते थे पत्र में अपना नाम और पता नहीं लिखते थे । उनकी लिखावट से समझते थे कि किसने भेजा हैं । हमें आने वाली कुछ चिठ्ठी जिसमें आन्दोलन के बारे मे लिखा होता था वह जप्त भी हो जाती थी । मेरे द्वारा भी लिखी गई चिट्ठी भी शक के आधार पर जप्त हो जाती थी । कुछ चिठ्ठी में आन्दोलन से संबन्धित चर्चा रहने पर कालिख पोत दी जाती थी ।

होशियारी से बीच के दो पन्नो को साट कर मैसेज भेजा जाता था

 हम घंटो उसे दुध से साफ कर पढ़ने की कोशिश में लगे रहते थे । जों घर से और दोस्तों से किताबे पढ़ने को भेजी जाती थी उसमें बड़ी होशियारी से बीच के दो पन्नो को साट कर मैसेज भेजा जाता था कि अधिकारी पकड़ नहीं पाये ।हम उसे आस्त -आस्ते खोलते और पढ़ते थे । आज की रात देश में 1975 में इमरजेंसी लगाकर पुरे देश को जेलखाना बना दिया गया था । 1974 में कांग्रेस सरकार की भ्रष्टाचार , बेरोजगारी , महंगाई के विरोध में पहले गुजरात और बिहार के छात्रो ने आन्दोलन छेड़ दिया था । पुलिसिया दमन से आन्दोलन को कुचलने की पुरी कोशिश हुई थी । जे पी ने आन्दोलन का नेतृत्व सम्भाल कर उसे एक सार्थक दिशा दे दिया तो आन्दोलन देश व्यापी हो गया । तमाम विरोधीदल भी इसमें शरिक हो गये ।इसी बीच इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने प्रधानमंत्री इन्दिरा गांधी के निर्वाचन को रद्द कर दिया । प्रधानमंत्री इन्दिरा गांधी के निर्वाचन के विरुद्ध में समाजवादी नेता राजनारायण ने चुनाव याचिका दायर की थी । प्रधानमंत्री इन्दिरा गांधी पर इस्तीफा देने का दवाव बढ़ने लगा था । घबरायी इन्दिरा गांधी ने देश में इमरजेंसी लगा दिया । आन्दोलन मे शामिल नेताओं और कार्यकर्ताओं को पकड कर जेल में बन्द कर दिया गया था ।
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जार्ज फर्नांडिस को बरौदा डेनामाईट कांड मे देशद्रोह का केस चला कर फांसी चढ़ाने की तैयारी

लोकतांत्रिक प्रधानमंत्री तानाशाह बन बैठी । जों कुछ लोग जेल जाने से बचे वे अंडरग्राउंड हो आन्दोलन चलाने का उपक्रम कर रहें थे । इसमें जार्ज फर्नांडिस ,सुब्रनियम स्वामी , कर्पुरी ठाकुर प्रमुख नेता थे । जार्ज फर्नांडिस और उनके साथियों पर बरौदा डेनामाईट कांड मे देशद्रोह का केस चला कर फांसी चढ़ाने की तैयारी कर ली गई थी । 74 आन्दोलन और इमर्जेंसी में लम्बे समय तक मै डी आई आर और मीसा का बन्दी मैं भी रहा । मुझे जेल में रहते तीन बार परीक्षा देने की अनुमति सरकार ने इसलिए नहीं दिया कि मै इन्दिरा गांधी के बीस सुत्री और संजय गांधी के पांच सुत्री का समर्थन करने से और उसपर हस्ताक्षर करने से इंकार कर दिया था पर हमारे अनेक जेल के साथी ने यह कार्य कर परीक्षा दिया ।ऐसे कई  मित्र विधायक ,सासंद और मंत्री भी हुए । तानाशाही के खतरे आज भी मडरा रहें है । सरकार और प्रशासन में लोकतंत्र के प्रति आस्था घटा है । असहिष्णु सता कभी लोकतंत्र के लिए हितकारी नहीं हो सकता । लोकतंत्र सिर्फ व्यवस्था का नाम नहीं है ।यह जीवन जीने का एक उच्च रास्ता भी है । हम जागरूक रहें । जहां कहीं सत्ता की मनमानी नजर आये वहां टोके ,रोके और विरोध दर्ज करे । हम उन सभी आंदोलनकारी साथियों को नमन करते हैं जो आज हमारे बीच नहीं है ।
  • आलेख लेखक के फेसबुक से साभार। लेखक बिहार के शेखपुरा जिले के बरबीघा निवासी है।
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