• Tuesday, 24 June 2025
नालंदा विश्वविद्यालय: 5वीं शताब्दी में गुप्त सम्राट कुमार गुप्त प्रथम ने की थी स्थापना, आक्रमणकारी बख्तियार खिलजी ने जलाया

नालंदा विश्वविद्यालय: 5वीं शताब्दी में गुप्त सम्राट कुमार गुप्त प्रथम ने की थी स्थापना, आक्रमणकारी बख्तियार खिलजी ने जलाया

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नालंदा विश्वविद्यालय: 5वीं शताब्दी में गुप्त सम्राट कुमार गुप्त प्रथम ने की थी स्थापना, आक्रमणकारी बख्तियार खिलजी ने जलाया 

 

AI DESK

 

नालंदा विश्वविद्यालय प्राचीन भारत का एक प्रमुख शिक्षा केंद्र था, जो वर्तमान बिहार राज्य के नालंदा जिले में स्थित था। यह विश्वविद्यालय विश्व के सबसे पुराने विश्वविद्यालयों में से एक माना जाता है और इसका इतिहास 5वीं से 12वीं शताब्दी तक फैला हुआ है। नालंदा विश्वविद्यालय बौद्ध धर्म के अध्ययन और शिक्षा का प्रमुख केंद्र था।

 

स्थापना

नालंदा विश्वविद्यालय की स्थापना 5वीं शताब्दी में गुप्त सम्राट कुमार गुप्त प्रथम (415-455 ई.) द्वारा की गई थी। इसकी स्थापना का उद्देश्य उच्च शिक्षा और बौद्ध धर्म के अध्ययन को बढ़ावा देना था। विश्वविद्यालय का नाम 'नालंदा' इस क्षेत्र के एक नाग वंशीय राजा के नाम पर रखा गया था।

 

संरचना और परिसर

नालंदा विश्वविद्यालय का परिसर विशाल और अत्यंत व्यवस्थित था। इसमें कई मठ, मंदिर, पुस्तकालय और अध्ययन कक्ष थे। विश्वविद्यालय में एक विशाल पुस्तकालय था, जिसमें लाखों पांडुलिपियाँ और पुस्तकें थीं। इसे तीन मुख्य भवनों में विभाजित किया गया था: रत्नसागर, रत्नोदधि और रत्नरंजक।

 

शैक्षिक जीवन

नालंदा विश्वविद्यालय में शिक्षा की गुणवत्ता उच्चतम थी और यहाँ विश्वभर से छात्र और विद्वान अध्ययन के लिए आते थे। इसमें प्रवेश पाने के लिए कड़ा चयन प्रक्रिया थी और केवल योग्य छात्रों को ही प्रवेश मिलता था। यहाँ बौद्ध धर्म के अलावा, संस्कृत, वेद, गणित, खगोलशास्त्र, तर्कशास्त्र, चिकित्सा, और अन्य विषयों की भी शिक्षा दी जाती थी।

 

प्रमुख विद्वान

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नालंदा विश्वविद्यालय में कई प्रसिद्ध विद्वान और शिक्षक थे, जिन्होंने शिक्षा के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान दिया। इनमें नागार्जुन, धर्मकीर्ति, शीलभद्र, और दीपनकर श्रीज्ञान (अतिश) शामिल हैं। ये विद्वान न केवल भारतीय उपमहाद्वीप में, बल्कि अन्य देशों में भी प्रसिद्ध थे।

 

विनाश और पतन

नालंदा विश्वविद्यालय का पतन 12वीं शताब्दी के अंत में हुआ। 1193 ई. में, तुर्क आक्रमणकारी बख्तियार खिलजी ने नालंदा विश्वविद्यालय पर आक्रमण किया और इसे जला दिया। इस विनाशकारी घटना के कारण विश्वविद्यालय का पुस्तकालय और शैक्षिक संरचनाएँ नष्ट हो गईं। इसके बाद, नालंदा विश्वविद्यालय कभी भी अपने पूर्व गौरव को पुनः प्राप्त नहीं कर सका।

 

पुनरुद्धार

21वीं शताब्दी में, नालंदा विश्वविद्यालय के पुनरुद्धार के प्रयास किए गए और इसे फिर से स्थापित करने का निर्णय लिया गया। 2010 में, भारतीय संसद ने नालंदा विश्वविद्यालय विधेयक पारित किया और 2014 में विश्वविद्यालय ने पुनः अपने दरवाजे खोले। नया नालंदा विश्वविद्यालय अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर उच्च शिक्षा का केंद्र बनने के उद्देश्य से कार्यरत है।

 

निष्कर्ष

नालंदा विश्वविद्यालय प्राचीन भारत का एक महान शिक्षा केंद्र था, जिसने विश्वभर में शिक्षा और ज्ञान का प्रसार किया। इसके पतन के बावजूद, इसका इतिहास और योगदान आज भी शिक्षा और संस्कृति के क्षेत्र में महत्वपूर्ण माने जाते हैं। इसके पुनरुद्धार से यह उम्मीद की जा रही है कि नालंदा फिर से एक बार शिक्षा के क्षेत्र में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकेगा।

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