जी ये हैं मौजा रविदास ! थरथराती उम्र में 75 बसंत देख चुके पारंपरिक कामगार के संघर्ष की कहानी पढ़िए
अतिथि कॉलम/Nks Tuttu
सोशल मीडिया को जातीय भेदभाव और धार्मिक उन्माद का एक मंच बनते हुए देखा जा रहा है। या यूं भी कहा जा सकता है कि यह आज के समय में उसी का मंच है । वर्तमान समय में इसी उन्मादी सोशल मीडिया के मंच से एक युवक के द्वारा मौजा रविदास की जीवंत संघर्ष कथा की प्रस्तुति की गई है। इसे पढ़कर आप हौसला भी पाएंगे और संत रविदास के चरित्र चित्रण को भी देख और समझ सकेंगे। यह आलेख फेसबुक से साभार लिया गया है।
जी ये हैं मौजा रविदास !
हाल मुकाम कर्मस्थली- पैन स्कूल के पीछे की गली। जिसे हमलोग छोटकी राह भी बोलते हैं। उम्र कितनी हुई पूछने पर बस इतना बताते हैं कि जिस साल भयानक दाहा(बाढ़) आया था उसी वर्ष उनका गौना हुआ था। और आगे की जीवटता और मेहनत आप उनके छायाचित्र में देख ही सकते हैं। लगभग 75 बसंत देख चुके इस पारंपरिक कामगार का जीवन संघर्ष इस थरथराती उम्र में भी जारी है। रोज उम्मीद की सुबह के साथ कर्म की गठरी बिछने के साथ खुले आसमान की तपिश में ग्राहकों की टकटकी और कार्य व्यवहार में समय बीतता है।
फिर कल की आस के साथ एक नीरस शाम को समेटने का क्रम मुसलसल जारी है। देवनबीघा से पैन में आकर बसे इस मेहनतकश इंसान का काम के प्रति जोश अभी भी जवां है। पैसे न होने पर यूंही काम कर देने की मंशा और सेवा भाव भी है।
आज भले ही चप्पल इत्यादि टूट जाने के बाद उसे जुड़वाने या सिलवाने के बजाय नया ले लेने का चलन हो गया हो पर इस परंपरागत पेशे को जिंदा रखना भी हम सबका कर्तव्य है। मंहगाई के इस दौर में कुछ जोड़कर कुछ सिलाकर काम चलाना बुरा नहीं है। हर घर में कुछ जोड़े चप्पल-जूते सिलाई के अभाव में बिखरे पड़े होते हैं। दस – बीस में उसे उपयोग में लाएं। इससे यैसे जीवट सज्जन का जीवन व्यवसाय चलता रहेगा और समाज का ताना-बाना भी मजबूत होगा।
इस खबर को अपनों के बीच यहां से शेयर करें
Comment / Reply From
You May Also Like
Popular Posts
Newsletter
Subscribe to our mailing list to get the new updates!