तीन दिवसीय दीदियों का वर्कशॉप सम्पन्न
बरबीघा
तीन दिवसीय आवासीय प्रशिक्षण होटल राज,बरबीघा में जिला परियोजना प्रबंधक अनिशा गांगुली की अगुआई में सम्पन्न कराई गई।
सतत जीविकोपार्जन योजना के अंतर्गत बरबीघा के एक होटल में वैसे अत्यन्त निर्धन गरीब परिवार को प्रशिक्षण दिया गया जिसने अपने वयवसाय एंटरप्राइज में चयन किया जिसके फलस्वरूप संबंधित सदस्यों के ग्राम संगठन में सतत जीविकोपार्जन का फण्ड दिया जा चुका है जिसके लिए उनके क्षमता वर्धन तथा स्वरोजगार को चलाने हेतु बेहतर प्रबंधन का प्रशिक्षण आज सम्पन्न किया गया।
इस अवसर पर तीन वैसे लाभुकों ने अपनी छः महीने का अनुभव सभी लाभार्थियों के साथ साझा किया जिसमें
श्याम देवी (विधवा) है तथा सात बेटी है ,तीन की शादी कर दी है और चार बेटी को पालने की जिम्मेवारी है।
ये बताती है,पहले भीख मांग कर गुजारा करते थे,जबसे सतत जीविकोपार्जन से जुड़े है मेरी जीवन ही बदल गयी है,अभी मैं चौमिंग और अंडे की दुकान मिलकीचक,क्यूटी पंचायत में खोली हूँ।रोज 500 रु से 800 रु की बिक्री होती है ,तीसरी बेटी की शादी मैने इन्ही पैसों को बचाकर किया है,तथा चार बच्चियों को पढ़ा लिखा रही हूं।पहले सुखा चावल खाते थे अब खाने में अंडा,सब्जी और दाल का उपयोग कर रहे है।महीने की आमदनी नौ से दस हज़ार रु हो जाती है।
सुमित्रा देवी (दिव्यांग)इनकी दो बेटी है तथा काजी फत्तू चक,पांक पंचायत की रहने वाली है,इनकी स्तिथि बहुत दयनीय थी,खुद इतनी अस्वच्छ थी कि कोई इसे भीख भी नही देता था कोई दो रोटी दे दिया तो कोई कुछ पैसे इसी से गुजारा कर रही थी पति भी मंदबुद्धि है,कुछ काम नही करते है। ऐसे में सतत जीविकोपार्जन योजना से मुझे जोड़ा गया तथा इन्होंने श्रृंगार का दुकान किराया के मकान में खोला, आज उनकी बिक्री आठ हाज़र से बारह हजार तक है,अब साफ सुथरा स्वयं भी रहती है और अपने बच्ची को भी स्वच्छ रखती है,समय से दुकान खोलती है और बैंड करती है आज इसके चेहरे पर मुस्कान है ये बाकी दीदियों को प्रेरणा देती है ये कहती है जैसे मुझे पंख लग गए है।
संतुला देवी(दिव्यांग)इसके पति भी दिव्यांग है तथा इनका परिवार पहले खेत मे कटनी और रोपनी का काम करता था तथा इनसे जो अनाज और पैसा आता था उसी से जैसे तैसे गुजारा होता था इनका 6 वर्ष का छोटा बेटा है।
ये बताती है पहले नुन चावल खाते थे जब से सतत जीविकोपार्जन योजना से जुड़े है एक सब्जी का दुकान बरबीघा बाजार में किया है रोजाना दो हज़ार रु की सब्जी लाते है और शाम होते होते ढाई हजार से तीन हज़ार की बिक्री हो जाती है,बाजार होने के कारण ग्राहक ज्यादा है,रोज की आमदनी लगभग पांच सौ से छः सौ रुपये हो जाती है,सुबह सवेरे खेत से सब्जी खरीदकर लाते है और शाम सात बजे तक बेचते है,अब बेटा विद्यालय जाता है ,घरवाले नए वस्त्र पहनते है,अब रोटी और कपड़े की दिक्कत कम हो गयी है,काम करने में बहुत अच्छा लगता है,कोई भी दिन दुकान बंद नही करते है,मेरे काम मे मेरे पति भी हाथ बटाते है,मैं मानो कहाँ से कहाँ आ गयी।ऐसा लगताहै भगवान मुझपर बहुत मेहरबान है।
सभी प्रशिक्षु सदस्यों ने इनके छः से सात महीने के अनुभव को जाना ।सभी प्रशिक्षुओं ने खूब ताली बजाई तथा सभी ने तय किया की मैं भी रोजगार करूंगी और अपने परिवार में खुशहाली लाऊंगी।
इस अवसर पर जिला परियोजना प्रबंधक अनिशा के आंखों में आंसू आ गए,इन्होंने बताया आप एक दिन असाधारण व्यक्ति बनकर दिखाएंगी ऐसा मुझे आप के अनुभव सुनकर लगता है,आप सभी अपनी जिंदगी की नई शुरुआत कर और जग में नाम रौशन करे।महिला शसक्तीकरण की दिशा में ये छोटा प्रयास एक नया रंग निखार रहा है।
इस अवसर पर जिला सतत जीविकोपार्जन नोडल मो.आफताब आलम,प्रियदर्शनी कुमारी,राहुल कुमार,एम आर पी सियासरण पासवान,अजित पासवान तथा अरमान कुमार उपस्तिथ थे।
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