अनोखी परंपरा: बच्चे होते है पुजारी, मिट्टी का घरकुल्ला और सत्अन्नजा भुंजा का प्रसाद
अनोखी परंपरा: बच्चे होते है पुजारी, मिट्टी का घरकुल्ला और सत्अन्नजा भुंजा का प्रसाद
न्यूज डेस्क
दीपावली का पावन त्यौहार दीपक का त्योहार माना जाता है। दीपोत्सव के रूप में लोग इसे मनाते हैं। अपने घरों में दीपक जलाते हैं। परंतु एक अनोखी परंपरा भी दीपोत्सव पर देखने को मिलती है । पारंपरिक ढंग से मिट्टी के घरकुल्ला घरों में बनाने की परंपरा रही है। बच्चे इसे मिट्टी से बनाते हैं । और फिर मिट्टी के बर्तन, मिट्टी के दीपक और मिट्टी के दियाबरनी से इसे सजाया जाता है। बच्चों के द्वारा ही यहां विधिवत पूजा अर्चना की जाती है। पूजा अर्चना में 7 तरह के अनाज का प्रसाद बनता है। 7 तरह के अनाज का भुंजा प्रसाद के रूप में बच्चे हैं चढ़ाते हैं और फिर घर के लोगों में इसका वितरण होता है।
सत्अन्नजा भुंजा का प्रसाद
मिट्टी के घरौंदा – घरकुल्ला मनाने की परंपरा काफी पुरानी है। इसको लेकर जानकार बताते हैं कि यह परंपरागत चली आ रही है। मिट्टी के घरौंदा बच्चे बनाकर यहां पूजा अर्चना करते हैं। वहीं पूजा में किसी पंडित की उपयोगिता नहीं होती है। विधिवत दीपावली की शाम पूजा अर्चना बच्चे करते हैं। सात अनाज का भुंजा इसमें उपयोग में लाया जाता है। जिसमें चावल, गेहूं, चना, मटर, मकई, मसूरी, चुड़ा शामिल होता है। पूजा अर्चना के बाद इसी का प्रसाद वितरण किया जाता है। गांव में ऐसी भी मान्यता है कि इस प्रसाद के ग्रहण करने पर दांत दर्द नहीं करता है।
अब धीरे-धीरे खत्म हो रही है परंपरा
बदलते जमाने के साथ धीरे-धीरे घरौंदा बनाने की परंपरा भी बदल रही है। घर में मिट्टी के घरौंदा बनाकर बच्चे उसे खुद मेहनत से रंगते है और अपनी अपनी प्रतिभा का प्रदर्शन होता हैद्ध परंतु धीरे-धीरे अब रेडीमेड घरौंदा बिकने लगा। बाजार में चदरा, खखड़ा कार्टन इत्यादि के घरौंदा मिलते हैं। शहर में अब इसी का चलन है। इसे ही खरीद कर घरों में लोग पूजा करने लगे। बदलते दौर में इस में भी बदलाव देखा गया।
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