यात्रा वृतांत:1: जो कहते हैं आजादी अभी अधूरी है उनको जालियांवाला बाग आना चाहिए
यात्रा वृतांत:1: जो कहते हैं आजादी अभी अधूरी है उनको जालियांवाला बाग आना चाहिए
अरुण साथी
यात्रा वृतांत की शुरुआत चौथे दिन से कर रहा हूं। पीछे का वृतांत अगली कड़ी में पेश करूंगा ।
चौथे दिन बुधवार को हम लोग अमृतसर शहर में थे। अमृतसर शहर दो हिस्सों में बंटा हुआ दिखाई दिया। एक हरमंदिर साहिब के आसपास का अंतरराष्ट्रीय दृश्य का मनमोहक अमृतसर तो दूसरा बाहरी बाजार में आम भारतीय बाजार जैसा गंदगी और कांय-किच।
सबसे पहले जालियांवाला बाग की बात। बहुत ही रोमांचक और भावुक। हालांकि पर्यटकों को लुभाने के लिए जालियांवाला बाग को एक अत्याधुनिक साज-सज्जा भी दिया गया है परंतु अंदर में जाने के बाद हर कोई भावुकता से भर जाता है।
हालांकि हर कोई कहना उचित भी नहीं होगा। कुछ नए कपल यहां केवल पिकनिक स्पॉट के रूप में घूमने के लिए आए हुए नजर पड़े। कुछ-कुछ पार्क के जैसा।
वर्तमान के बदलते दौर में ऐतिहासिक स्मरण के स्थल हो या धार्मिक स्थल। मोबाइल, सेल्फी और दिखावा इससे अलग नई पीढ़ी के लिए यहां कुछ भी नहीं होता। धार्मिक स्थलों पर भी पहली प्राथमिकता सेल्फी और फोटो खिंचवाने के दिखाई पड़ती है। हरमंदिर साहिब में भी यही कुछ रहा और जालियांवाला बाग में भी। मन को मारते हुए भी कई तस्वीरें खींचनी ही पड़ी। कुछ तस्वीर अपनी भी।
खैर, जालियांवाला बाग आजादी के दीवानों के कुर्बानियों की जीवंत निशानी है। जिन्होंने देश के आजादी में योगदान देने के लिए हंसते-हंसते अपना बलिदान दे दिया।
संकीर्ण रास्ते से आए जनरल डायर ने गोलियों की तड़तड़ाहट से सैकड़ों लोगों को भूंजा दिया। जान बचाने के लिए कई लोग जिस कुआं में कूदे। वहां जाकर कौन भावुक नहीं होगा। लाशों से वह कुआं भर गया था।
हमारी भावना और आस्था देशभक्ति को भी धर्म से कम नहीं मानती तभी तो हम लोग भारत माता की प्रतिमा स्थापित कर पूजा भी करते हैं ऐसा ही कुछ कुछ जालियांवाला बाग में दिखा।
कुएं को सजा संवार कर खूबसूरत बना दिया गया है परंतु भावनात्मक लोग यहां पहुंच कर सेल्फी तो लेते ही हैं यहां आस्था से प्रभावित होकर रुपये भी कुएं में गिरा देते हैं। आसपास नोट भी पड़े हुए दिखाई पड़े और कुआं के अंदर भी नोट गिरे हुए हैं मिलते हैं।
जालियांवाला बाग की दीवारों पर गोलियों के निशान को चिन्हित कर दिया गया है। इस निशानी को देख कर किसकी आंखें नहीं भर आएगी। बेरहम गोलियों ने सब को छलनी कर दिया।
एक म्यूजियम जैसा बनाया गया है। वहां जालियांवाला बाग कांड का फिल्मांकन कर उसकी प्रदर्शनी लगातार होती रहती है। एक चौंकाने वाली बात यह भी नजर आई कि म्यूजियम में प्रभावित लोगों के परिवार वालों के बयान को लिखित रूप से उद्धृत किया गया है। सोचने की बात यह कि उसमें बयान देने वालों के नाम के साथ जाति का जिक्र किया गया है। पता नहीं इसके संयोजकों ने ऐसा क्यों किया? जाति का विवरण मुझे असहज ऐसा लगा।
“डायर की गोलियों ने हिंदू और मुसलमानों में कोई भेद नहीं किया।” टी एस कार
सबसे पहले इसी पर नजर पड़ी। शायद देश की अखंडता और एकता के संदेश को लेकर यह बोर्ड जालियांवाला बाग में लगाया गया है। इसके साथ ही कई महापुरुषों के वक्तव्य को जगह-जगह बोर्ड में लगाया गया है। इसके माध्यम से यह भी बताने की शायद कोशिश की गई हो कि मुसलमानों का योगदान भी देश की आजादी में रहा है।
देशभक्ति या आस्था कहिए कि यहां बुजुर्ग लोग भी नजर आए। हालांकि पिकनिक के लिए घूमने आए परिवार और न्यू कपल के लिए यह एक पार्क जैसा सुखद एहसास देने वाला है। उनके लिए कुर्बानियों के ऐतिहासिक महत्व का कोई महत्व साफ दिखाई नहीं पड़ा।
जालियांवाला बाग को सुसज्जित भले बना दिया गया है परंतु दीवारों पर गोलियों के वर्तमान निशान हर देशभक्त को अपने शरीर पर लगे होने जैसा एहसास देने लगता है और जो लोग कहते हैं आजादी अभी अधूरी है उन्हें इस एहसास का अनुभव यहां आकर अवश्य करना चाहिए..
अगली कड़ी शीघ्र
आलेख वरिष्ठ पत्रकार अरुण साथी के ब्लॉग चौथा खंभा http://chouthaakhambha.blogspot.com से साभार
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