किसान आंदोलन, किसान बिल और एमएसपी का सच
अरुण साथी
पंजाब और हरियाणा के संदर्भ में कुछ नहीं कह सकता परंतु बिहार के संदर्भ में सरकारी दर पर धान की खरीद का हालत बद से बदतर रहती है। प्रत्येक साल । इस साल 23 नवंबर से धान खरीद करने का आदेश सरकार का है। अभी तक एक सौ ग्राम धान कहीं से किसानों की खरीद नहीं हो रही है। खरीद व्यापारी कर रहे हैं। वह भी 1200 रुपए क्विंटल सरकारी दर 1888 रुपए क्विंटल है।
वही व्यापारी अब पैक्स अध्यक्ष को यही धान बेच देंगे और पैसे का बंदरबांट होगा। किसान के घर पैसा नहीं आएगा। जो किसान पैक्स अध्यक्ष की खुशामद करेंगे उसके धान की खरीद होगी। परंतु नमी के नाम पर, अधिकारियों के कमीशन के नाम पर, बोरा के नाम पर घपला होगा । 1 क्विंटल की जगह 5 किलो अधिक अनाज लिया जाएगा। नमी के नाम पर, बोरा के नाम पर पैसा लिया जाएगा। और सबसे बड़ी बात यह कि कॉपरेटिव बैंक से किसानों के पैसे का संचालन होगा। कॉपरेटिव बैंक घोटाले बाजों का अड्डा है।
फर्जी निकासी
एक भी किसान बैंक में पैसा निकालने के लिए नहीं जाते हैं और उसके खाते से पैसा निकल जाता है। धान खरीद करते वक्त ही पैक्स अध्यक्ष बैंक के निकासी स्लिप हस्ताक्षर करा कर खुद जाकर पैसा निकाल लेता है। इसकी जांच हो तो अरबों रुपए का घोटाला बिहार में निकलेगा।
इस पर अंकुश लगाने के प्रयास सभी असफल हो रहे हैं। इतना ही नहीं किसान के नाम पर पैसा निकालकर पैक्स अध्यक्ष लाखों करोड़ों रुपया सालों-साल यूज़ करता है और किसान पैक्स अध्यक्ष के पास आते जाते थक जाता है। इसी थकावट की वजह से 1200 रुपए ही सही, व्यापारी को धान दिया जा रहा है। किसान के हित में आंदोलन है अथवा नहीं, इस बात में नहीं पड़ना। परंतु किसान बिल में किसान को बाजार से भी जोड़ दिया गया है तो निश्चित रूप से किसानों को फायदा होगा। बाकी सब पॉलिटिक्स है,…
आलेख बरिष्ठ पत्रकार के ब्लॉग चौथाखंभा http://chouthaakhambha.blogspot.com से साभार
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