गुमनाम मंदिर का रहस्य: यहां सास-बहू का मंदिर है और उसके बाहर दहेज़ दानव की मूर्ति
मुंगेर
- मुंगेर का दक्षिणेश्वर काली स्थान
- दहेज़ दानव(स्टोमाफिल!) की मूर्ति है
- सास- बहू का मंदिर है
सात लपेटा, तीन फेरा, एक गाँठ!
मैं एक अधकचरा आस्तिक हूँ। पूरा नास्तिक बनने की हिम्मत नहीं है और पूरा आस्तिक मन होने नहीं देता। जीवन मे न जाने कितने प्रसंग आते हैं जहाँ आस्तिकता ढह जाती है और कभी कभी नास्तिकता भी। थोड़ा बहुत पूजा पाठ, थोड़ा बहुत मंदिर दर्शन, थोड़ा बहुत शास्त्र अध्ययन से परहेज नहीं है। मंदिर जाता हूँ तो चाहता हूँ कि मेरे और भगवान की मूर्ति के बीच कोई न हो। पूजा करता हूँ तो चाहता हूँ कि कोई जटिल विधि विधान न हो। दान करूँ तो मेरी स्वेच्छा हो।
आज मुंगेर का दक्षिणेश्वर काली स्थान गया था। मंदिर शान्त, साफ सुथरा और पंडों के हस्तक्षेप से प्रायः मुक्त है। परिसर में अनेक संतों, देवियों, देवताओं की प्रतिमाएँ हैं। इनके साथ शहीद स्मारक है, भारत माता की प्रतिमा है, पीपल के पेड़ के नीचे नागदेवता की आकृति बनी है। किन्तु सबसे दिलचश्प सास- बहू का मंदिर है, जिसके बाहर दहेज़ दानव(स्टोमाफिल!) की मूर्ति है। मंदिर में सरसों के तेल और तिल के तेल से पूजा की हिदायत है।
मंदिर के अंदर प्रसाद सामग्रियों की एक दुकान है। दुकानदार ने एक काला धागा देते हुए कहा- इसे आज के दिन बायें हाथ में सात लपेटा, तीन फेरा, एक गाँठ देकर बांधिए। मनोकामना सिद्ध होगी। श्रीमती ने धागा (बांधने का फार्मूला) सहित ले लिया।
मैं भक्ति का यही लपेटा, फेरा और गाँठ वाला हिस्सा नहीं पचा पाता हूँ।
यह आलेख मुंगेर विश्वविद्यालय के प्राध्यापक और प्रख्यात साहित्यकार डॉ भावेश चंद्र पांडेय के फेसबुक वॉल से साभार है
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