तालाब-पोखर पर अतिक्रमण कर किया कब्जा, कैसे होगा वाटर रिचार्ज
शेखपुरा
शेखपुरा जिले में घटते भूजलस्तर से पेयजल की समस्या गंभीर होती जा रही है। इस समस्या को लेकर जिला प्रशासन परेशान है और आम आदमी सड़कों पर उतर कर प्रदर्शन कर रहा परंतु इस गंभीर समस्या को लेकर आज ही जागरूकता की कमी है और लोग इस तरफ ध्यान नहीं दे रहे। जमीन के नीचे पाताल की तरफ अग्रसर जलस्तर को बचाए रखने की व्यवस्था पौराणिक समय में गांव-गांव थी। आज यह व्यवस्था कई गांव में ध्वस्त हो गई। शहरों में यह पूरी तरह से खत्म हो गयी।
दरअसल पुराने लोग आज के समय से अधिक वैज्ञानिक थे।उनके द्वारा गांव में त्रिस्तरीय जल संचय की व्यवस्था थी। इसकी वजह से जलस्तर बना रहता था।
नहीं हो रहा ग्राउंड वाटर रिचार्ज
शेखपुरा जिले में पिछले दो-तीन सालों से वर्षा का अनुपात बहुत कम रहा है। पिछले साल शेखपुरा जिले को सूखा क्षेत्र घोषित किया गया और इस मद में 12 करोड़ 70 लाख की राहत राशि सरकार के द्वारा दी गई। प्रत्येक साल लाखों रुपए खेतों की सिंचाई के लिए सहायता दी जाती है परंतु सूखे की समस्या बनी हुई है।
दरअसल वर्षा नहीं होने से तालाबों में जलजमाव नहीं हो रहा और इसकी वजह से वाटर रिचार्ज नहीं हो रहा जिससे जल स्तर नीचे चला जा रहा।
वाटर हार्वेस्टिंग असफल
जमीन के नीचे घटते जलस्तर को रिचार्ज करने के लिए वाटर हार्वेस्टिंग की व्यवस्था होनी चाहिए थी। इसके लिए 2 साल पूर्व सरकारी स्तर पर प्रयास किया गया जिसमें स्कूलों के छतों पर जल संचय कर उसे जमीन में संचित करने की व्यवस्था की गई परंतु यह व्यवस्था सभी जगह ध्वस्त हो गई।
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क्या थी त्रिस्तरीय व्यवस्था
गांव में जल संचय को लेकर तीन स्तर पर ग्रामीणों के द्वारा व्यवस्था की गई थी। इसी त्रिस्तरीय व्यवस्था को आज के समय में ग्राउंड लेवल वाटर रिचार्जिंग कहा जाता है।
पहला जल संचय बड़े बड़े तालाब बनाकर किए गए थे। गांव के लोग अपनी जमीन दान में दे कर ऐसा करते थे दूसरे स्तर पर यह व्यवस्था पोखर अथवा डोभरा के रूप में की जाती थी जिसमें गांव के नाली से निकलने वाला जल संचित होता था और एक तरह से यह भी वाटर रिचार्जिंग का काम करता था। तीसरी तरह की व्यवस्था आहर के रूप में होती थी। यहां कई एकड़ में आहर बनाया जाता था और वहां पानी संचित कर सिंचाई की व्यवस्था होती थी।
खत्म हो गए तालाब, नहीं हो रहा वाटर रिचार्ज।
पुराने लोगों के द्वारा विकसित तीन स्तरीय वाटर रिचार्ज की व्यवस्था तालाब गांव-गांव विलुप्त कगार पर है। सरकारी जमीनों पर बने तालाब को भी लोगों ने कब्जा कर घर बना लिया है। बर्षा कम होने से एक तरफ जहां परेशानी है वहीं दूसरी तरफ थोड़ी बहुत वर्षा होने पर भी जल संचय की व्यवस्था नहीं होने से वाटर रिचार्ज नहीं हो रहा।
शहरों में वाटर रिचार्ज की समस्या गंभीर है
नगर परिषद शेखपुरा और नगर परिषद बरबीघा में वाटर रिचार्ज की व्यवस्था सबसे गंभीर है। शेखपुरा नगर परिषद में बड़े बड़े तालाव खत्म हो गए। जानकार बताते हैं कि बंगाली पोखर कई एकड़ में फैला हुआ था जिस पर कब्जा कर लोगों ने घर बना लिया। इसी तरह का बड़ा पोखर ननकू तालाब था जो आज स्तीत्व में नहीं हैं।
बताया जाता है कि इसे अतिक्रमण मुक्त करने के लिए कई बार प्रयास किए गए परंतु राजनीतिक दबाव में परिणाम कुछ भी नहीं निकला। बरबीघा नगर परिषद में यह स्थिति और गंभीर है। नगर परिषद के मुख्य बाजार में हिंद तालाब को भरकर वहां पार्क बना दिया गया। जिससे जल संचय की व्यवस्था खत्म हो गई। दूसरा बड़ा तालाब छोटी संगत बड़ी ठाकुरबारी के पास निर्मित था जिसे नगर परिषद के द्वारा ही भर दिया गया। वहां कचरा डंपिंग किया जाता है।
क्या कहते हैं अधिकारी
इस को लेकर जिला कृषि पदाधिकारी कहते हैं कि जिले में वर्षा का अनुपात पिछले कुछ सालों से कम होता जा रहा है जिसके वजह से कृषि पर प्रतिकूल असर पड़ा है और पिछले साल सूखा राहत में लोगों को 12 करोड़ 70 लाख की सहायता राशि दी गई।
तालाब में पानी जमा नहीं होने से वाटर रिचार्ज नहीं हो रहा और इसी वजह से जल स्तर नीचे जा रहा है। जल स्तर को मेंटेन करने के लिए वाटर रिचार्ज करना जरूरी होता है। अगर इस साल भी वर्षा नहीं हुई तो पीने के पानी की गंभीर समस्या हो जाएगी। हालांकि उन्होंने बताया कि इस साल मौसम वैज्ञानिकों के द्वारा अच्छी वर्षा का अनुमान लगाया जा रहा है।
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