12वीं सदी की मिली थी देवी प्रतिमा: रखवाली कर रहे हैं गांव वाले
शेखपुरा
शेखपुरा जिले के पचना गांव में 11 वीं -12वीं सदी की प्राचीन प्रतिमा मिलने पर इसको लेकर जहां बिहार सरकार के पुरातात्विक विभाग भी हरकत में आ गई है वहीं इसकी सुरक्षा गांव वाले मिलकर कर रहे हैं।
प्रतिमा गांव के पहाड़ी बाबा मंदिर के पास मिली थी परंतु गांव वालों ने इसे असुरक्षित महसूस करते हुए गांव के देवी मंदिर में प्रतिमा को लाकर सुरक्षित रखा है। कई ताले लगाकर मंदिर में प्रतिमा को रखा गया है। इस प्रतिमा की सुरक्षा में ग्रामीणों की टीम बनाकर इसकी देखभाल की जा रही है।
रात्रि में भी करते हैं देखभाल
बताया जाता है कि गांव के युवाओं की टोली मंदिर में चार ताले लगाकर इसकी सुरक्षा कर रहे हैं दिन में रूटीन के हिसाब से इसकी देखभाल होती है वहीं देर रात तक भी ग्रामीण युवक मंदिर के पास रहकर इसकी सुरक्षा कर रहे हैं।
करोड़ों की है देवी प्रतिमा
यह देवी प्रतिमा करोड़ों की बताई जा रही है। प्राचीन प्रतिमा को बौद्ध धर्म से जोड़कर विशेषज्ञ इसे महत्वपूर्ण मान रहे हैं। पुरातात्विक विशेषज्ञ एवं हरिद्वार के गुरुकुल कांगड़ी विश्वविद्यालय के 115 साल पुराने संग्रहालय के अध्यक्ष मनोज कुमार ने बताया कि प्रतिमा पौराणिक है और बौद्ध धर्म से जुड़ा हुआ। बज्र तारादेवी की यह प्रतिमा है। भारत सरकार और राज्य सरकार को उनके द्वारा सूचना दी गई है। इस क्षेत्र का पर्यटन के रूप में विकसित करने का काम किया। इसको लेकर शेखपुरा विधायक रणधीर कुमार सोनी के द्वारा भी पुरातात्विक विभाग को सूचना दी गई है।
लिखावट का किया गया विश्लेषण
पुरातात्विक विशेषज्ञ मनोज कुमार ने बताया कि प्रतिमा के निचले भाग में लिखावट का विश्लेषण किया गया है। नागरी लिपि में लिखे इस लिपि को विशेषज्ञों ने पढ़ा है और उसे विश्लेषण किया है।
देव धर्मोयं दान पञकाय स्थि नीपुण धा काया: लिखा हुआ है। जिसका अर्थ होता है जिसके काया में प्रज्ञा (मतलब बुद्धि स्थित हो) और इसको जो निपुणता सेधारण करता हो। अर्थात पुनः अपनी काया में निपुणता धारण करने का जिक्र है। मूर्ति के दानदाता के द्वारा मन्नत पूरी होने पर पौराणिक मंदिर में मूर्ति को दान दिया गया हो सकता है।
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