पुलिसिया चालबाजी: FIR करने गया कोई और FIR दर्ज कर लिया किसी और के नाम से, वाह रे बिहार पुलिस
बरबीघा
शेखपुरा जिले के बरबीघा प्रखंड के मिशन ओपी पुलिस के द्वारा एक पुलिसिया चालबाजी का अलग ही नमूना पेश किया गया और इस नमूने में एक गरीब दलित परिवार उजड़ गया। अनपढ़ होने का फायदा पुलिस चालबाजी में इस रूप में सामने आई कि जिस गरीब दलित परिवार का एक दर्जन जानवर जहर देकर मार गया दिया गया और वह रोते-रोते थाना पहुंचा वहां पर प्राथमिकी दर्ज करने की आरजू मिन्नत की । पुलिस ने सादे पेपर पर उसका बयान दर्ज किया और कहा कि f.i.r. हो गया है। घर चले जाओ। अनपढ़ परिवार वहां से घर आ गया। दूसरे दिन पोस्टमार्टम के लिए भी वह पुलिस को लगातार फोन करता रहा। पुलिस मवेशी जानवर भेजकर मृतक जानवर का पोस्टमार्टम भी कराया और फिर आरोपी युवक को पकड़ने के लिए पीड़ित परिवार लगातार पुलिस से मिलता भी रहा और पुलिस उसे आश्वासन भी देती रही। परंतु इसमें पुलिस ने बड़ी चालाकी से पुलिसिया चालबाजी कर दी और इस पीड़ित परिवार के नाम से एफ आई आर दर्ज नहीं करके मैनेज का खेल खेलते हुए एक दूसरे व्यक्ति के नाम से फरार दर्ज कर दिया। अब पीड़ित दलित परिवार पुलिस के इस चालबाजी से काफी दुखी और पीड़ित है। और न्याय की गुहार लगा रहा है।
तो क्या गरीब को नहीं मिलेगा न्याय
दरअसल यह पूरा मामला बरबीघा के मोहल्ला पर एक दर्जन सूअर के मरने से जुड़ा हुआ है। इन सूअरों की मौत जहर मिला खाना खाने से हो गया। सभी सूअर शेरपर गांव निवासी विनोद मल्लिक का था। विनोद पूरा परिवार मौके पर पहुंचा और उसे तीन लाख से अधिक का इस मामले में नुकसान हुआ। इसमें मिशन ओपी पर पूरा परिवार पहुंच कर दो चिन्हित किए गए युवक पर जहर देकर मारने का आरोप लगाते हुए एफ आई आर दर्ज करने की गुहार लगाई। इसमें फैजाबाद के पप्पू मल्लिक और सिनेमा के पास रहने वाला जुगल मल्लिक को नामजद अभियुक्त बनाया गया।
पुलिस ने कहा चले जाओ घर, हो गया काम
सब कुछ पुलिस ने उसके सामने दर्ज कर लिया और उसे घर जाने के लिए कहा। 4 दिन के बाद जब एफ आई आर का नकल किसी ने निकाला तो देखा कि विनोद के नाम से FIR दर्ज नहीं किया गया है। बल्कि FIR करने वाले की जगह जितेंद्र का नाम दर्ज है। अब यह जितेंद्र कौन है इसकी छानबीन शुरू हुई तो पता चला कि जिस आरोपी को नामजद अभियुक्त बनाया गया है उसी का रिश्तेदार है। जहर देकर सूअर के मरने में इसका भी एक सूअर मरा था। अब जिसका 12 सूअर मरा उसका नाम f.i.r. में कहीं जिक्र ही नहीं है। आब इस मामले में जितेन्द्र और मारने वाले में समझौता होने की बात हो रही है। इस मामले में पूछे जाने पर थानाध्यक्ष ने कहा कि जिसके द्वारा आवेदन दिया गया। उसी का एफ आई आर दर्ज हुआ है। अब भला बताइए कि पुलिसिया चालबाजी से कोई तेजतर्रार आदमी भी जब नहीं निपट सकता तो एक अनपढ़, दलित ,गरीब परिवार कैसे निपटेगा। और कौन इसे न्याय दिलाएगा।
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