• Friday, 01 November 2024
दुअरे पर बैठकर टुकटुक ताको ही, अपन मन के दुख अपने मन में बांटो ही

दुअरे पर बैठकर टुकटुक ताको ही, अपन मन के दुख अपने मन में बांटो ही

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बरबीघा 

समग्र विकास के तत्वधान में बरबीघा श्री नवजीवन अशोक पुस्तकालय में हिंदी दिवस के उपलक्ष में संगोष्ठी व कवि सम्मेलन का आयोजन किया गया । समग्र विकास के सचिव कुंदन सिह संस्था की ओर से अगाथ अतिथियों का स्वागत किया। कार्यक्रम के मुख्य अतिथि शिव कुमार, आर लाल कॉलेज के पूर्व प्रचार्य प्रोफेसर परमानंद , विजय राम रतन एवं अन्य लोगों ने दीप प्रज्वलित कर कार्यक्रम का उद्घाटन किया। संगोष्ठी की अध्यक्षता आर लाल कॉलेज के पूर्व प्राचार्य प्रोफेसर परमानंद सिंह ने किया । संगोष्ठी के मुख्य अतिथि शिवकुमार ने अपने वक्तव्य में कहा कि हिंदी आज देश में सर्वाधिक बोली जाने वाली भाषा है। विश्व में भी कोई प्रगतिशील देश या विकासशील देश नहीं है जिसके विश्वविद्यालय में हिंदी नहीं पढ़ाई जाती है ।  हमारे यहां गुलाम मानसिकता से ग्रसित लोग आज भी अंग्रेजी को सर्वोच्च बनाए हुए हैं।

अपनी भाषा को छोड़कर नहीं बन सकते महान

दुनिया का कोई भी देश अपनी भाषा को छोड़कर ना तो महान बन सकता है और ना ही तरक्की कर सकता । एक तरफ हम आजादी का अमृत महोत्सव मना रहे हैं दूसरी ओर इन 75 वर्षों में भी राजकाज की भाषा हिंदी नहीं बन पाई। यह बहुत ही अफसोसजनक स्थिति है। आज भी सरकारी दफ्तरों के काम, न्यायालयओ के काम काज अंग्रेजी में ही निपटाए जा रहे हैं।  उच्च शिक्षा कि अधिकांश किताबें मेडिकल, इंजीनियरिंग और यूपीएससी   की तैयारी आज भी अंग्रेजी भाषा में ही किया जाता हैं ।  इतने वर्षों में ना तो मेडिकल न ही टेक्निकल किताबों का हम हिंदी अनुवाद करा सकें । देश के नौजवानों को जो चाहते हैं राष्ट्रभाषा हिंदी उन्नत हो और उसी में पढ़ाई -लिखाई ,सरकारी कामकाज की भाषा हिंदी हो उनको एक आंदोलन का रूप देना चाहिए । संगोष्ठी को प्रभाकर त्रिवेदी , गणनायक मिश्र ,रविशंकर सिंह,अभय शंकर एवं मोहन कुमार ने भी संबोधित किया।

हिंदी प्रदेश में ही हिंदी की गुम

संगोष्ठी के उपरांत कवि सम्मेलन प्रोफेसर विजय राम रतन के अध्यक्षता में शुरू हुई विजय राम रतन ने अपनी कविता “हिंदी प्रदेश में ही हिंदी की गुम होती पहचान

 जो हिंदी से जितनी दूर वह उतना महान ” और मगही कविता “दुअरे पर बैठकर टुकटुक ताको ही
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अपन मन के दुख अपने मन में बांटो ही पर खूब वाहवाही लूटा।  वहीं गणनायक मिश्र की गजल “जो भी कहता हूं मैं तो कमाल कहता हूं लोग भी कहते हैं कुछ तो कमाल कहता हूं” पर खूब तालियां बजी । बांके बिहारी   “परदेस छोड़ छाड़ आजा सजनवा” को भी श्रोताओं ने खूब वाहवाही दिया। अभिषेक सागर की मां कविता को भी लोगों ने खूब सराहा महेश प्रसाद ने भी अपनी कविताओं से श्रोताओं ने सराहा।
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