खास नहीं, आम गरीबों को कानूनी मदद और रिहाई दे बिहार सरकार: RLJD
खास नहीं, आम गरीबों को कानूनी मदद और रिहाई दे बिहार सरकार: RLJD
शेखपुरा:
डीएम हत्याकांड में आनंद मोहन की रिहाई का फैसला पूरी तरह से वोट की राजनीति पर आधारित है। मौजूदा सरकार के ही दोनों धड़ों ने आनंद मोहन को जेल भेजने और सजा दिलाने का काम किया। अब राजनीतिक लाभ का गुना गणित किया जा रहा है। आरएलजेडी के प्रदेश महासचिव सह प्रवक्ता राहुल कुमार ने ये बातें कहीं। उन्होंने कहा कि सरकार को खास नहीं आम गरीब कैदियों के बारे में सोचना चाहिए। राज्य के सैकड़ों गरीब मामूली मामलों में वर्षों से जेल में बंद हैं। सरकार राज्य में एक आयोग बनाकर उन गरीबों की पहचान करे जो पैसे की तंगी की वजह से कानूनी प्रक्रिया से वंचित रह जाते हैं या बेल हो जाने के बाद भी लंबे समय तक बेलर का जुगाड़ नहीं होने से छूट नहीं पाते हैं।
उन्होंने यह भी कहा कि कानून गरीबों के साथ भेदभाव न करने वाला हो। लेकिन दुर्भाग्य से सरकार की नीतियां गरीब विरोधी हो जाती हैं। उन्होंने बिहार सरकार को राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू की भावनाओं को याद करने की नसीहत देते हुए कहा कि राजा के लिए सारे कानून बदले जा रहे हैं, लेकिन गरीब, असहाय बना हुआ है। आरएलजेडी के प्रदेश प्रवक्ता ने याद दिलाते हुए कहा कि पिछले दिनों राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू जी ने भी जमानत के बावजूद छोटे.मोटे अपराधों में जेलों में बंद लोगों की दुर्दशा को लेकर बहुत ही भावुक भाषण दी थीं। उनका भाषण देश भर के उन गरीबों की मार्मिक कहानी को दर्शाता है जो छोटे मोटे अपराध में बिना किसी कानूनी सहायता के दशकों जेल में बंद रहते हैं। कई बार तो जमानत मिल जाने के बाद भी वे जेल से बाहर नहीं आ पाते हैं। राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू जी सुप्रीम कोर्ट में अपने पहले संविधान दिवस संबोधन में झारखंड के अलावा अपने गृह राज्य ओडिशा के गरीब आदिवासियों की दुर्दशा पर प्रकाश डालते हुए कहा था कि जमानत राशि भरने के लिए पैसे की कमी के कारण वे जमानत मिलने के बावजूद जेल में हैं और गंभीर अपराधों के आरोपी मुक्त हो जाते हैं, लेकिन गरीब कैदियों, जो हो सकता है कि किसी को थप्पड़ मारने के लिए जेल गए हों, को रिहा होने से पहले वर्षों जेल में बिताने पड़ते हैं।
आरएलजेडी प्रवक्ता राहुल कुमार ने कहा कि निश्चित तौर पर हमारी पार्टी यह समझती है कि सरकार नियमित अंतराल पर जेल में बंद कैदियों और उनके मामलों की वास्तविक स्थिति की समीक्षा करती रहे ताकि गरीबी और कानूनी सहायता नहीं मिलने की वजह से अनावश्यक जेल में रहने वाले किसी भी कैदी को मुक्त किया जा सके। इसका फायदा न सिर्फ जेल में कैदियों की संख्या में कमी लाने में मिलेगी बल्कि न्यायपालिका पर से भी बोझ को कम किया जा सकेगा।
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