एमएलसी चुनाव: अंदर की बात-तो क्या तेजस्वी यादव का भूमिहार-यादव समीकरण साबीत होगा तुरूप का इक्का
एमएलसी चुनाव: अंदर की बात-तो क्या तेजस्वी यादव का भूमिहार-यादव समीकरण साबित होगा तुरूप का इक्का
- शांतिभूषण मुकेश/संपादक मंडल
बिहार की राजनीति में एमएलसी चुनाव के नतीजे ने इस बार तमाम राजनीतिक पंडितों की चूले हिलाकर रख दी है। निकाय चुनाव के तहत चुनकर आए विधान पार्षदों में जातिगत फैक्टर बहुत ज्यादा हावी रही। चुनाव के नतीजों ने सभी दल को सोचने पर मजबूर कर दिया चाहे वह क्षेत्रीय दल हो या राष्ट्रीय दल इस चुनाव में जो सबसे बड़ी बात रही वह यह की स्वर्ण उम्मीदवारों ने लगभग आधी से अधिक सीट पर कब्जा कर लिया । कहा तो यह जाता ही है कि बिहार में जाति की राजनीति होती है और इस बार जाति की राजनीति में भूमिहार और राजपूतों ने कमाल सा कर दिया ।
जाति की राजनीति में सबसे अधिक बिहार में बदनाम राष्ट्रीय जनता दल पार्टी थी जिसके बारे में कहा जाता था कि वह अगड़ों में भूमिहार को तवज्जो नहीं देती है लेकिन इस बार तेजस्वी यादव के नेतृत्व में टिकट बंटवारे के समीकरण ने बिहार में राजनीतिक भूचाल ला दिया ।
राजनीतिक रूप से लगातार हाशिए पर रही भूमिहार जाति इस बार करिश्माई परिणाम देने में सफल रही है । वैसे तो इस बार के विधान परिषद चुनाव में कुल छह भूमिहारों ने परचम लहराया है । जिसमें राष्ट्रीय जनता दल की बात करें तो उसके जीते हुए छह सीटों में पचास फ़ीसदी सीटों पर अर्थात तीन सीट भूमिहारों के पाले में गई है और सीट बंटवारा के हिसाब से अगर देखें तो राष्ट्रीय जनता दल ने कुल पांच भूमि हारों को एमएलसी चुनाव में टिकट दिया था जिसमें साठ फ़ीसदी अर्थात तीन उम्मीदवारों ने परचम लहराने का काम किया है। इस चुनाव परिणाम ने आने वाले भविष्य के लोकसभा और विधानसभा समेत अन्य चुनाव में एक नए समीकरण का आगाज किया है।
2019 के लोकसभा चुनाव से ठीक पहले बिहार की राजनीति के पुरोधा कहे जाने वाले बिहार के प्रथम मुख्यमंत्री डॉ श्रीकृष्ण सिंह के प्रपौत्र अनिल शंकर को राष्ट्रीय जनता दल में शामिल करा कर एक पटकथा की शीर्षक तैयार कर दी थी जिसकी कहानी अब धीरे-धीरे सामने आ रही है । इस बार के 24 विधान परिषद सीटों के लिए हो रहे चुनाव में पटना एवं मुंगेर की सीट काफी हॉट सीट रही। हॉट सीट हम इसलिए कह सकते हैं की सत्ताधीशों की केंद्र रही पटना सीट और सत्ता पर काबिज जदयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष की प्रतिष्ठा की सीट मुंगेर रही थी । संजय प्रसाद जदयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष ललन सिंह के काफी करीबी माने जाते रहे हैं । संजय प्रसाद पिछले दो बार से राजद की राजनीति करके इसी मुंगेर सीट से चुने गए थे लेकिन विधानसभा चुनाव से ठीक पहले जदयू ने उन्हें चकाई से जदयू के कद्दावर नेता सुमित सिंह को साइड कर दिया और जदयू के टिकट पर वहां से संजय सिंह को लड़ा दिया लेकिन सफलता नहीं मिली ।
उसके बाद संजय सिंह के खिलाफ बगावत के स्वर उनके अपने विधान परिषद क्षेत्र मुंगेर में भी चुनाव परिणाम के रूप में देखने को मिली और यहां जदयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष ललन सिंह का कोई भी फैक्टर काम नहीं आ पाया अब बात करें पटना की तो वहां भी यह माना जाता था कि राजधानी के नजदीक होने के चलते इस पर सत्तासीन जदयू की ही धाक रहेगी लेकिन राष्ट्रीय जनता दल के कद्दावर नेता छोटे सरकार उर्फ अनंत सिंह के नजदीकी कार्तिक सिंह को टिकट देकर राष्ट्रीय जनता दल ने एक मजबूत उम्मीदवारी पेश कर दी थी। हालांकि इसका विरोध उनके ही दल के इस सीट पर विधान पार्षद रहे दानापुर विधायक रीत लाल यादव कर रहे थे और वह अपने नजदीकी को इस सीट पर से लड़ाना चाह रहे थे । लेकिन यहां भी तेजस्वी यादव का भूमिहार फैक्टर कामयाब रहा।
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