सोशल मीडिया अफवाह पे भारत बंद.. खतरनाक
सोशल मीडिया की ये आग कब बुझेगी! आरक्षण, दलित, सवर्ण, मुस्लिम, हिन्दू.. आग ही आग जिस समय सोशल मीडिया कॉल पे भारत बंद में नंगई हो रही थी ठीक समय फेसबुक के मालिक मार्क जुकरबर्ग से उनकी सरकार पूछताछ कर रही थी और वे माफी मांग रहे थे। बाद में जुकरबर्ग ने प्रेस में कहा कि कैंब्रिज एनालिटिका में लीक हुए डाटा का असर भारत के चुनाव में नहीं पड़ने देगा और उसी समय भारत जल रहा था। फेसबुक और व्हाट्सअप पर भारत बंद के बेनामी आह्वान को हाथों में स्मार्ट मोबाइल रखने वाले कम उम्र के नौजवानों ने हाथों हाथ लिया। इस बेनामी आह्वान पर कम उम्र के नौजवान सड़क पर उतरे और मेरे यहां बिहार के बरबीघा में जम कर आतंक मचाया। युवाओं में इतना आक्रोश था कि वह मरने-मारने पर उतारू थे। यहां तक की जब पुलिस ने आंसू गैस के गोले छोड़े तो बंद समर्थकों की भीड़ की तरफ से गोलीबारी की गई! खैर! सोशल मीडिया इम्पैक्ट दस अप्रैल को भारत बंद ने साबित कर दिया कि भारत में सोशल मीडिया का गहरा इम्पैक्ट है। चुनाव को प्रभावित करने से कहीं ज्यादा। समाज को प्रभावित करने का। दो अप्रैल को हुए भारत बंद पर भी सोशल मीडिया इंपैक्ट रहा। सुप्रीम कोर्ट के एससी एसटी एक्ट में कोई बदलाव किए बिना पुलिस के अधिकारों के दुरुपयोग में हस्तक्षेप करने की बात को सोशल मीडिया पर एससी एसटी एक्ट में बदलाव करके प्रचारित किया गया। इस बदलाव को वोट बैंक की राजनीति करने वाले नेताओं ने हवा दे दी और फिर देश में नंगा नाच हुआ। दस लोगों की जानें गई। करोड़ों का नुकसान हुआ। ठीक उसी दिन फेसबुक और व्हाट्सएप पर दस अप्रैल को भारत बंद लिखकर एक पोस्ट को वायरल किया गया और फिर दस अप्रैल को भी नंगई सामने आए
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