यह रोहंगिया की नहीं बल्कि बिहारी के पलायन की दर्दनाक कहानी है, पढ़िए तो
न्यूज़ डेस्क/श्री निवास
अंधेरी रात में चुपके से अपने बीबी-बच्चों के साथ माथे पर बड़े-बड़े गट्ठर लिए पलायन करते ये मजदूर रोहंगिया या बांग्ला देशी घुसपैठिये नही है ।ये आपके और मेरे समान बिहार के नवादा जिले के बोनाफाइड नागरिक है। लेकिन आप कहेंगे के ये रात में क्यों पलायन कर रहे हैं।
मैं भी जानना चाहा।पता चला ये ईंट भट्ठे पर काम करने बाले सीजनल मजदूर है जो यू पी,बंगाल आदि जगहों पर काम करने अक्टूबर महीने में ले जाये जाते हैं और अप्रैल-मई तक काम कर घर वापस आ जाते है।इस बीच जब इन्हें काम नही रहता तब ये लोग कई मजदूरों को ले जाने बाले ठेकेदारों से खुराकी के नाम पर हजारों रुपए कर्ज ले लेते है और उसे आश्वासन देता है कि अगली सीजन में उनके बताए इट भट्ठे पर काम करने जायेगे।
जब दुबारे काम पर वापस जाने की बारी आती है तो जिस -जिस से कर्ज लिया रहता है सभी उसे अपने साथ ले जाने के लिए दवाव बनाता है कभी -कभार मार पीट भी करता है ।अब एक बार आदत से मजबूर ये सीजनल मजदूर किसी नए मजदूर ठेकेदार से काम पर जाने के लिए मोटी रकम उठा लेते है और चुपके से उसके साथ पलायन कर जाते है। पलायन के दौरान ये मजदूर जिन -जिन ठेकेदारों से एडवांस लिए रहते है उनके डर से अपने घर मे कुछ भी नही छोड़ते ,यहां तक कि अपने दुधमुहे बच्चे को भी अपने साथ ले जाते है।ट्रेन में चढ़ते वक्त कई बार इनके बच्चे प्लेटफार्म पर भी छूट जाते है जो ट्रैफिकिंग के शिकार हो जाते है।
बताया तो यह जाता है कि इट भट्ठों पर इन्हें सिर्फ खाना और दवा का ही पैसा दिया जाता है क्योंकि जो एसवांस लिया रहता है पहले उसे एडजस्ट किया जाता है ,शेष रकम ठेकेदार का मुनाफा हो जाता है।जब सीजन ऑफ होने पर ये मजदूर वापस लौटते हैं तो फिर खाली के खाली रहे जाते है ऊपर से उन ठेकेदारों का भय सताता है जिससे पूर्व में एडवांस ले रखा था।
अक्सर देखा गया है कि ये घुमन्तु मजदूरों की स्थिति अत्यंत दयनीय हो जाती है ,जिंदगी भर कर्ज में डूबे रहे है साथ ही शराब और टी बी जैसे बीमारी की वजह से 50-55 साल होते-होते काल के गाल में समा जाते है ।
इनके लिए न मनरेगा के कोई मायने है न चाइल्ड प्रोटेक्सन,शोशल सिक्युरिटी न लेबर ला की। सरकार की सारी कल्याण कारी योजनाओं की न इन्हें जानकारी है न सरकार कभी इन तक पहुंच पा रही है।
लेखक बरिष्ठ पत्रकार है
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