स्लमडॉग मिलेनियर ऑस्कर अवार्ड फिल्म की कहानी से अलग ABCD सुनिए कचरा BOY की जुबानी
स्लमडॉग मिलेनियर ऑस्कर अवार्ड फिल्म की कहानी से अलग ABCD सुनिए कचरा BOY की जुबानी
बरबीघा, शेखपुरा
भारत के स्लम में रहने वाले बच्चों की जिंदगी पर 2008 डैनी बॉयले ने जब फिल्म बनाई और उसका नाम स्लमडॉग मिलेनियर रखा और फिर उसमें कौन बनेगा करोड़पति से पूरे कहानी को जोड़ा तो उसने कई ऑस्कर अवार्ड जीत लिए परंतु इस तरह के स्लम डॉग मिलेनियर के चरित्र वाले बच्चे हर शहर में दिख जाते हैं।
देशभर में शिक्षा का अधिकार कानून लागू है। कांग्रेस की सरकार ने इसे लागू किया परंतु शिक्षा के अधिकार का क्या हाल है इसकी दुर्दशा आप यहां देखिए । शिक्षा के अधिकार कानून के तहत हर एक बच्चे को निशुल्क शिक्षा और आवश्यक शिक्षा दी जानी है परंतु कचरे में अपनी जिंदगी को बर्बाद करते बच्चे के लिए शिक्षा का अधिकार की बात बेमानी है। दरअसल इन बच्चों को पढ़ने की ललक तो है परंतु जिस झोपड़पट्टी में ये बच्चे अपने मां बाप के साथ रहते हैं उसके आसपास कोई स्कूल नहीं है।
स्कूल दूर होने की वजह से ये बच्चे स्कूल नहीं जा पाते हालांकि इन बच्चों में कचरा चुनकर पैसे कमाने की लत भी लग गई है। इस वजह से भी बच्चे स्कूल नहीं जा पाते माता-पिता भी बच्चों के भविष्य से खिलवाड़ करते हैं और बच्चों से काम लेकर इसकी कमाई रखते हैं और बच्चों का जीवन बर्बाद होता है। ऐसा ही एक बच्चा है देव कुमार। यह बरबीघा प्रखंड के पशुपालन अस्पताल परिसर के झोपड़पट्टी में अपने माता पिता के साथ रहता है। देव कुमार पढ़ने की इच्छा रखता है। एबीसीडी भी आराम से सुना देता है सुनिए देव कुमार क्या कह रहा।
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