कुपोषण के शिकार 66 प्रतिशत बच्चे। सुधार के लिए क्या हो रहा है..जानिए
शेखपुरा
Covid-19 मामलों की संख्या में पूरे भारत में जहां तीव्र वृद्धि हुई है और मामला 9 लाख आंकड़े को पार कर चुका है वही शेखपुरा जिले में भी अब तक कुल 224 से ऊपर मामले सामने आ गया है । इसका असर जहां एक ओर आम जनजीवन पर हुआ है वही इसका एक दूरगामी असर जन्म लेने वाले बच्चों , गर्भस्थ शिशुओं, गर्भवती माताओं के स्वास्थ्य और पोषण के संयंत्र पर भी हुआ है।
। सरकारी आंकड़ों की माने तो एनएफएचएस 4 के अनुसार शेखपुरा जिले में 6 महीने से 5 वर्ष तक के बच्चों में 66 परसेंट बच्चे ऐसे थे जिन में खून की कमी थी। वही 46 पॉइंट 4 परसेंट बच्चे ऐसे थे जो नाटापन के शिकार थे।
51 पॉइंट 7 परसेंट बचे अल्प वजन वाले थे और 28 पॉइंट 9 परसेंट बचे वेस्टिंग के शिकार थे। जहां गर्भवती माताओं के स्वास्थ्य की बात की जाए तो 61 परसेंट माताएं खून की कमी से जूझ रही थी और 15 वर्ष से 49 वर्ष की महिलाएं 66 पॉइंट 8 परसेंट ऐसी थी जिनमें खून की कमी थी।
कुछ आंकड़ों में जहां हम बिहार के स्तर से बहुत पीछे थे स्वास्थ्य और पोषण की इस कमी को दूर करने के लिए भारत सरकार द्वारा पोषण अभियान कार्यक्रम अंतर्गत राष्ट्रीय पोषण सर्वेक्षण से पता चला कि आज भी कुपोषण की व्यापकता एक चुनौती के रूप में बनी हुई है।
भारत सरकार ने पोषण अभियान के तहत किए गए निवेश और उपलब्धियों की सुरक्षा के लिए कोविड-19 के अंतर्गत कुछ महत्वपूर्ण कदम उठाए हैं जिससे कि गर्भवती माताओं गर्भ धात्री माताओं नवजात शिशु बच्चे और किशोर स्वास्थ और पोषण सेवाएं सबसे महत्वपूर्ण स्वास्थ्य हस्तक्षेप में से हैं।
स्वास्थ्य विभाग ने इस संकट के दौरान इन सेवाओं की निरंतर डिलीवरी सुनिश्चित करने के लिए विस्तृत मार्गदर्शन जारी किया राज्य सरकार ने कोविड-19 के संदर्भ में भोजन पोषक अन्नपूर्णा के वितरण निरंतर स्तनपान और कुपोषित बच्चों के उपचार सहित आजीवन पोषण संबंधी हस्तक्षेप वितरण के लिए परिचालन मार्गदर्शन भी जारी किया।
मातृ शिशु और युवा बाल पोषण सेवा स्वास्थ्य सेवाओं की निरंतरता पर सरकार द्वारा जारी दिशा निर्देशों का पूर्ण कवरेज निरंतरता तीव्रता के साथ पालन किया जाए इसके लिए अधिकतम गुणवत्ता सुनिश्चित किया जाए।
विशेषज्ञों का मानना है कि कोविड-19 महामारी ने कुपोषण के प्रबंधन के मामले कई कमजोर परिवारों के लिए पौष्टिक भोजन की उपलब्धता और पहुंच को कम कर दिया है जिसके परिणाम स्वरूप छोटे बच्चों में कुपोषण में वृद्धि होगी।
जहां बिहार में भी मातृ मृत्यु दर और शिशु मृत्यु दर में औसतन गिरावट आई है वहीं कुपोषण के कारण बाल मृत्यु में 18 से 23% की मृत्यु का अनुमान विश्व स्तरीय लैंसेट के रिपोर्ट में अनुमान किया गया।
यह देखते हुए कि पोषण अभियान के तहत तीव्र कुपोषण को संबोधित करना एक महत्वपूर्ण प्राथमिकता है और तीव्र कुपोषण का पता लगाने और इसका इलाज करने के लिए मौजूदा तंत्र को मजबूत अनिवार्य है।
चिकित्सा मूल्यांकन परामर्श सप्ताहिक ट्रैकिंग और पोषक तत्व घने पदार्थो सहित सेवाओं के 1 पैकेट द्वारा समर्थित प्रारंभिक पहचान को प्राथमिकता और उचित कोविड-19 सुरक्षा उपायों का उपयोग करके वितरित किया जाना है। इसी को ध्यान में रखते हुए जहाँ खून की कमी और अनीमिया मुक्त भारत के उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए स्वास्थ्य विभाग द्वारा 6 से 5 वर्ष तक के बच्चों के लिए आशा के माध्यम से आयरन सिरप। 5 वर्ष से 9 वर्ष तक के बच्चों के लिए पिंक गोली और 10 वर्ष से 18 वर्ष तक के बच्चों के लिए ब्लू टेबलेट का वितरण घर-घर किया जा रहा है।
शिशु मृत्यु दर को बढ़ावा देने में का मुख्य घटक डायरिया। इससे लड़ने के लिए घर-घर ओ0आर0एस0 का वितरण किया जाने का प्रावधान है।
पोषण की कमी को दूर करने के लिए ही आंगनवाड़ी केंद्रों में बच्चों को हॉट मील एवं विद्यालयों में मिड डे मील की व्यवस्था की गई है जो कहीं ना कहीं कोविड-19 महामारी के कारण अभी तक बंद पड़ी हुई है। जिसकी राशि लाभुकों के अभिभावकों को डीवीटी के माध्यम से दिया जा रहा है।
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