राष्ट्रीय बालिका दिवस: 40 दिनों से अनशन पर एक बेटी और पुरुषवादी समाज का उपहास
अरुण साथी
आज राष्ट्रीय बालिका दिवस है। बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ का स्वांग भले ही चलता हो पर समाज आज भी बेटी को अनपढ़ रखने और उसे मार देने की प्रवृत्ति में ही विश्वास रखता है। बेटियों की आजादी, उसके स्वाबलंबन, उसकी नौकरी, उसकी उच्च शिक्षा, उसकी भावना, उसके देह, उसकी स्वतंत्रता, उसकी मौलिकता, पारिवारिक स्थितियों में उसके स्वयं के विचार को लेकर यह समाज आज भी ढोंगी है।
ऐसा नहीं करने पर बेटी को कलंकिनी, बना दिया जाता है। उसे बदनाम किया जाता है। उसे तिरस्कृत किया जाता है। उसे प्रताड़ित किया जाता है।
यह एक सच है और बहुसंख्यक समाज यही कर रहा है।
इस सच का सामना 10 दिन पूर्व तब हुआ जब दैनिक जागरण के द्वारा मुझे यह सूचना मिली कि आपके आसपास के गांव की ही कोई बेटी है जो हरिद्वार में पद्मावती के नाम से गंगा बचाने के लिए पिछले 26 दिनों से अनशन कर रही है।
उस बेटी के माता-पिता और घर का पता नहीं लग रहा। मैंने इसकी जानकारी अपने व्हाट्सएप ग्रुप बरबीघा चौपाल में दिया। जहां से शाम में हमारे करीबी डॉ दीपक कुमार मुखिया के द्वारा बताया गया कि लड़की का घर नालंदा जिले के मलामा गांव है। जो कि हमसे 8 या 10 किलोमीटर दूर है। इसकी जानकारी मैंने अपने उच्च अधिकारियों को दे दी। फिर उनके द्वारा निर्देश दिया गया कि आपको बेटी के गांव जाना है।
इस सूचना के बाद शाम हो गया। फिर भी मैं एक अपने साथी रितेश कुमार के साथ उस बेटी से मिलने के लिए चल पड़ा। रास्ते में जानकारी नहीं होने से कुछ परेशानी उठानी पड़ी। फिर भी उस गांव तक जैसे तैसे पहुंच गया। शाम के 8:00 बजे होंगे । गांव में एक तरह से सन्नाटा पसरा हुआ ही था । इस समय तक सभी लोग खाना खाकर सोने की तैयारी में जा चुके थे। पूछते पूछते पद्मावती के पिता के घर पहुंचा। कई लोग पूछने पर मुस्कुरा कर जवाब देते थे। पद्मावती के पिता के घर के पास पहुंचने पर उसके पिता संकोच पूर्वक मुझसे मिले और जल्दबाजी में हम सब को घर के अंदर लेकर चले गए और एक कमरे में ले जाकर धीरे-धीरे बात करने लगे। पद्मावती के माताजी काफी गुस्से में थी और वह सामने नहीं आई।
पिता से बातचीत कर स्टोरी पर काम करने लगा और सारी जानकारी अपने वरिष्ठ श्री प्रशांत सर को दे दिया। इस दौरान पता चला कि रामकृष्ण परमहंस के वैचारिक धाराओं को आगे बढ़ाते हुए पद्मावती के पिता स्थानीय एक आश्रम में ध्यान करते थे। जहां पद्मावती भी जाती थी और फिर अचानक वह सन्यासिनी हो गई और हरिद्वार चली गई।
अब बेटी के सन्यासिनी होने का दंश समाज ने माता-पिता को अपमानित और प्रताड़ित करके दिया। गांव और आसपास के लोगों ने उसका चरित्र हनन किया। युवा पीढ़ी के लोगों ने फेसबुक पर गंदे गंदे शब्द लिखें।
हालांकि पद्मावती के पिता को भले ही कुछ दिनों तक अपमानित और प्रताड़ित होना पड़ा परंतु समाज में अच्छाई भी सामने आयी। दिनकर न्यास से जुड़े नीरज कुमार और जल पुरुष राजेंद्र प्रसाद पद्मावती के समर्थन में आगे बढ़े और दैनिक जागरण का यह अभियान रंग लाया। नालंदा में बृहत सभा हुई जहां पद्मावती के पिता को भी बुलाया गया और जल पुरुष राजेंद्र प्रसाद ने कहा कि उनके लिए यह गौरव की बात है कि जो पद्मावती गंगा को बचाने के लिए आमरण अनशन पर 36 दिनों से बैठी हुई है उसके पिता मेरे बगल में बैठे हुए हैं। यह मेरे लिए गौरव का क्षण है।
हमारा समाज आज भी पुरुषवादी है। स्त्री का सम्मान तब तक है जब तक वह जीने के लिए समझौता वादी रहती है। उचित मुद्दे पर भी मुंह नहीं खोलती। समर्पण कर देती है। अथवा विद्रोह करने वाली स्त्रियों का समाज चरित्र हनन भी कर देता है। यह दुखद है। बेटी के बाप होने पर शर्मिंदगी होने लगती है..।
इस मुद्दे में हिंदुत्ववादी पार्टियों और उनके समर्थकों के छद्म होने का सच भी सामने आता है। पद्मावती से पहले तीन सन्यासियों ने गंगा को बचाने में अपने जीवन का त्याग कर दिया है। पद्मावती भी जिद पर अड़ी हुई है। परंतु केंद्र सरकार इस पर ध्यान नहीं दे रहा। धन्यवाद है नीतीश कुमार जी को कि उन्होंने एक बेटी को बचाने के लिए प्रधानमंत्री को पत्र लिखा है और नालंदा के सांसद ने पद्मावती को जाकर मुख्यमंत्री के समर्थन का पत्र भी दिया है।
वरिष्ट पत्रकार अरुण साथी के ब्लॉग
से साभार
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